राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) मुगल राजकुमार दारा शिकोह के जरिए मुसलमानों को खुद से जोड़ने का प्रयास कर रहा है। 2019 में राम मंदिर के फैसले की घोषणा से छह महीने पहले संघ ने शिकोह को ‘सच्चा मुस्लिम बुद्धिजीवी’ बताया, जिसने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच शांति और सौहार्द को बढ़ावा देने का प्रयास शुरू किया। अब दो साल बाद दारा शिकोह के जीवन और शिक्षाओं को बढ़ावा देने का प्रोजेक्ट शुरू हुआ है।
इस सप्ताह की शुरुआत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) ने अपने दारा शिकोह सेंटर फॉर इंटर-फेथ अंडरस्टैंडिंग एंड डायलॉग के तहत मुस्लिम विद्वानों, ईसाई पादरियों और शिक्षाविदों के के साथ ‘अंतर धर्म संवाद कार्यकर्ताओं’ के एक पैनल की घोषणा की, जिन्होंने हिंदू इतिहास और आस्था पर शोध किया है।
रिसर्च के लिए RSS ने बुद्धजीवियों को जोड़ा
जामिया मिलिया इस्लामिया, मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय (MANUU), दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जैसे विश्वविद्यालय भी इसी तरह के मंच स्थापित करने की प्रक्रिया में हैं। विशेष रूप से राष्ट्रीय उर्दू भाषा संवर्धन परिषद (NCPUL), AMU और MANUU को रिसर्च के साथ ही RSS की मदद करने के लिए जोड़ा गया है। इसके तहत दारा शिकोह के कार्यों का विस्तार से उल्लेख किया जाएगा और उनका विभिन्न भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद होगा। वहीं, भारत इस्लामिक कल्चरल सेंटर को इस मामले पर मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ संपर्क बढ़ाने का काम सौंपा गया है।
‘हिंदू-मुसलमान एक-दूसरे को बेहतर ढंग से समझते’
मुस्लिम विद्वानों से यह संपर्क आरएसएस की ओर से साधा जा रहा है। यह काम विशेष रूप से वरिष्ठ नेता कृष्ण गोपाल को सौंपा गया है, जिन्होंने इस संबंध में कई उच्च स्तरीय बैठकें की हैं। दारा शिकोह को बढ़ावा देने के लिए 2019 में कई कार्यशालाएं आयोजित की गईं। गोपाल ने कहा, “अगर दारा शिकोह अपने भाई औरंगजेब के स्थान पर मुगल सम्राट होते, तो भारत में इस्लाम अधिक फलता-फूलता और हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे को बेहतर ढंग से समझ सकते थे।”
शिकोह को उपनिषद-दर्शन की थी अच्छी जानकारी
शाहजहां का बड़ा पुत्र दारा शिकोह विद्वान था। वो भारतीय उपनिषद और भारतीय दर्शन की अच्छी जानकारी रखता था। इतिहासकारों का मानना है कि वो विनम्र और उदार ह्दय का था। दारा शिकोह की 1659 में 30 अगस्त के दिन उनके ही छोटे भाई औरंगजेब ने हत्या करा दी थी। दारा शिकोह को 1633 में युवराज बनाया गया था और शाहजहां उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में देखते थे, जो दारा के अन्य भाइयों को स्वीकार नहीं था। लिहाजा शाहजहां के बीमार पड़ने पर औरंगजेब ने दिल्ली में दारा की हत्या करा दी।