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22 Nov 2024, Fri

डॉ अशफाक अहमद

DR. ASHFAQ AHMAD SENIOR JOURNALIST

लखनऊ, यूपी
राजस्थान के अलवर में आतंकी गौरक्षक के सदस्यों ने जिस तरह सरेआम एक मुसलमान की हत्या की और कई लोगों को दौड़ा-दौड़ा कर मारा और गंभीर रूप से घायल किया। उससे एक बात तो बिल्कुल साफ हो गई है कि इंसाफ अब अदालत के ज़रिये नहीं होगा और कानून का पालन पुलिस की जगह गौरक्षक कराएंगे। इसे सत्ता का नशा कहें ये फिर कानून की विकलांगता… पूरे प्लान के साथ आतंकी भीड़ सामने आती है और सरेआम हत्या करती है। ये आतंकी भीड़ देश के किसी एक हिस्से में आतंक नहीं फैला रही है बल्कि यूपी से लेकर मणिपुर तक… हिमांचल प्रदेश से लेकर झारखंड। गौरक्येषकों का आतंकी खेल हर जगह जारी है।

पहलू खान… हरियाणा के नूह ज़िले का रहने वाला जानवरों का व्यापारी था। अपनी रोज़ी-रोटी की तलाश में वह दूसरे प्रदेशों में जाकर जानवरों की खरीद-फरोख्त करता था। पहलू खान खरीदे गए जानवरों की रसीदें भी साथ रखता था… पर उसे नहीं पता था कि आतंकी भीड़ तो बस उसके मुसलमान होने पर ही उसकी हत्या कर देगी। उन्हें रसीदों से कोई लेना-देना नहीं है। पहलू खान के साथी जानवरों के कारोबार में उसके साथ जुड़े थे। किस्मत थी कि बच गए… वरना उन्हें तो ज़िदा जलाने की तैयारी थी।

वैसे तो पूरे मुल्क में रोज़ दर्जनों हत्याएं होती हैं लेकिन राजस्थान के अलवर में पहलू खान को जिस तरह से सरेआम मारा गया… ये उन हत्याओं से बिल्कुल अलग मामला है। ये तालिबानी आतंकी हत्या उस अतिवादी हिंदुत्व के पाठ का नतीजा है, जो एक खास वर्ग के नौजवानों के दिमाग में भरा जा रहा है। उन्हें कानून से मतलब नहीं, संविधान की वो इज़्ज़त नहीं करते है। पुलिस का डर खत्म हो ही गया अब अदालत की परवाह ही नहीं रही। सिर्फ एक नारा उनके ज़ेहन में चल रहा है कि देश को बदलना है यानी ये बदलाव एक विशेष धर्म को सब पर लादने का है।

अलवर में गाय को लेकर की गई आतंकी हत्या कोई पहला मामला नहीं है। इसकी शुरुआत केंद्र में मोदी सरकार बनते ही हो गई थी। उस समय नारा भी लगाया गया था कि ये अभी शुरुआत है। गाय के मामले को लेकर ये 6वीं आतंकी हत्या है। इसकी शुरुआत यूपी के दादरी में एखलाक अहमद की हत्या से हुई थी। इसके बाद झारखंड में दो लोगों को ज़िंदा फांसी पर लटका दिया गया। हिमाचल प्रदेश, जम्मू में भी खुलेआम मारा गया और अब राजस्थान के अलवर में पहलू खान की हत्या की गई। इस सब जगहों पर लोग भले ही अलग-अलग रहे हो लेकिन हत्या एक ही समुदाय के लोगों की हुई और आतंकी हत्यारों का मकसद सिर्फ एक था… अल्पसंख्यकों में आतंक पैदा करना।

एक का विकास, दूसरे का विनाश
“सबका साथ-सबका विकास” की बात करने वाली बीजेपी आतंकी हत्या के मुद्दे पर ऐसे कन्नी काटती है जैसे ये मामला किसी अफ्रीकी देश में हुआ हो। हाल-फिलहाल बीजेपी की राजनीति ही बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक की हो गई है। यूपी के विधान सभा चुनाव में किसी भी मुस्लिम को टिकट न देकर बीजेपी ने ये साबित भी कर दिया। एक तरफ वह अल्पसंख्यकों के ऐसे मुद्दे उठा रही है, जिसका जमीनी हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है। दूसरी तरफ उसी के पालतू संगठन और आरएसएस अल्पसंख्यकों के खिलाफ आतंक का माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। पीएम मोदी को केंद्र में सरकार चलाते तीन साल हो गए। ऐसे दर्जनों आतंकी हत्याएं की गई… मणिपुर से लेकर राजस्थान तक। पीएम मोदी हर बार खामोशी अख्तियार किए रहे। हालांकि मोदी अफगानिस्तान की जीत पर भी वो ट्वीट कर देते हैं।

कांग्रेसी की चुप्पी
अपने को सेक्यूलरिज्म का सबसे बड़ा अलमबरदार बताने वाली कांग्रेस हमेशा ही ऐसे मौकों पर चुप्पी साथ लेती है। अलवर मामले में उसकी दबी हुई प्रतिक्रिया ही सामने आई है। राजस्थान कांग्रेस के नेता सचिन पायलट ने कुछ शब्दों में इसकी आलोचना कर दी है। कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी, केंद्रीय नेतृत्व या फिर दूसरे नेता का बयान सामने नहीं आया और उम्मीद है कि बयान आएगा भी नहीं। कांग्रेस की अपनी मजबूरी है, वो खुलकर विरोध नहीं कर सकती है। कांग्रेस के अंदर बैठे संघी मानसिकता वाले लोग ऐसा करने नहीं देंगे। दूसरी बात खुद कांग्रेस सरकार में ही हिमाचल में गाय के नाम पर यूपी के एक मुस्लिम की हत्या कर दी गई थी। अब कांग्रेस इसका क्या जवाब दे।

मायावती की खामोशी
बीएसपी सुप्रीमों मायावती ने यूपी के विधान सभा चुनाव में मुसलमानों को खूब रिझाया पर उन पर हो रहे अत्याचार पर वो हमेशा खामोश ही रहती है। दादरी में एखलाक की हत्या पर भी वो खामोश रही… बस ऐसे एक नेता को दादरी भेज दिया। ऊना में जब दलितों की पिटाई हुई तो मायावती भागी-भागी ऊना पहुंची थी। वहां उन्होंने रैली भी कर डाली थी। पर दादरी से लेकर राजस्थान के अलवर तक… जहां भी मुसलमान की सरेआम आतंकी हत्या हुई है, मायावती की खामोशी बनी रही है। हालांकि दलितों पर हुए अत्याचार पर मुसलमानों ने विरोध में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था।

सपा का किनारा
यूपी विधान सभा चुनाव में चारो खाने चित्त हुई सपा अभी इस सदमें से ही बार नहीं निकल पाई है। हालांकि पार्टी के युवा राष्ट्रीय अखिलेश यादव नें कई प्रदेश में अपनी पार्टी के नये अध्यक्ष बना दिए हैं, इनमें एक राजस्थान भी है। सपा से ऐसी आतंकी हत्याओं के खिलाफ बयान की उम्मीद करना ही बेमानी है। याद करिए… दादरी में जब एखलाक अहमद की हत्या हुई तो यूपी में सपा की ही सरकार थी। सपा जब अपनी सरकार रहते ही ऐसी आतंकी घटना नहीं रोक पाई तो फिर उसके नेताओं की बयानबाज़ी से मुसलमानों को कौन सा फायदा मिल जाएगा।

ओवैसी का सवाल
इस हादसे पर एमआईएम के अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने बड़ा सवाल उठाया है। ओवैसी ने दादरी के एखलाक की हत्या से लेकर अलवर तक… सभी मामले में खुलकर बोला है। यहीं नहीं उन्होंने इस सभी मुद्दों को संसद में भी उठाया है। हालांकि इसे (तथाकथित) सेक्यूलर चश्मे से देखेंगे तो ये सभी बयान सांप्रदायिक ही नज़र आएंगे। ये भी सच है कि ओवैसी अकेले हैं और उनकी आवाज़ बहुत दूर तक नहीं जा सकती। अब सवाल ये ही कि अगर ओवैसी भी खामोश हो जाए तो फिर पहलू खान… जैसे लोगों की हत्या को एक हादसा ही मान लेना ही बेहतर होगा।

बाकी बचे लोग
चाहे कम्युनिस्ट की बात करे या मुस्लिम संगठनों की… ये सिर्फ कागज़ों पर शेर रह गए हैं। हकीकत में इनकी हैसियत कुछ भी नहीं बची है। ये लोग लाख विरोध करें पर जो आतंक फैला रहे हैं, आतंकी हत्याएं कर रहे हैं या फिर अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश कर रहे हैं उन्हें इनकी हकीकत पता है। कुछ एनजीओ या फिर चुनिंदा लोग दिल्ली या फिर दूसरे मेट्रो में इन घटनाओं का विरोध तो करते हैं पर इसका असर न तो सरकारों पर हो रहा है और न ही कानून के रखवालों पर।

अन्त में…
सवाल ये है कि क्या ऐसी आतंकी हत्याएं जारी रहेंगी या इसे रोका जाएगा। हाल फिलहाल माहौल में एक डर समाया हुआ है। ये डर लोगों के बीच खाई बढ़ा रहा है। एक दूसरे पर शक बढ़ता जा रहा है। राजनीतिक दलों से उम्मीद करना बेमानी हैं। करीब हर नौजवान मुसलमान अपनों से सवाल करता नज़र आ रहा है कि आखिर ये कब तक होगा। एक तरफ आतंकवाद के नाम पर नौजवान जेल में सालों रहकर बेकसूर बाहर आ रहा है तो दूसरी तरफ अल्पसंख्यकों में आतंक का माहौल बनाया जा रहा है। इस सब के बीच रास्ता तलाशते नौजवान कहीं धैर्य न खो दें और अपने ही सिस्टम से न भिड़ने लगे या अपने बचाव में वो भी जवाब देने लगे। ऐसी स्थिति देश को गृहयुद्ध की तरफ ले जा सकती है, जो बहुत ही भयावह होगी। अदालतों, कानून के रखवालों और सरकार में बैठे ज़िम्मेदारों को ये बात जितनी जल्दी समझ में आ जाए उतना ही समाज और देश के लिए बेहतर होगा।