नई दिल्ली
हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच जारी विवाद शुक्रवार को आमने-सामने की जंग में तब्दील हो गया। केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट में जजों के खाली पदों को भरने के लिए कोलेजियम द्वारा बहुत कम नामों की सिफारिश किए जाने का आरोप लगाया। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार ने उसके द्वारा भेजे गए नामों को लटका कर रखा है।
जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने समक्ष अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल से कहा कि शीर्ष अदालत मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा के हाईकोर्ट में जजों की रिक्तियों के मामले पर विचार कर रही है लेकिन हकीकत यह है कि कोलेजियम ने बहुत कम नामों की सिफारिश कर रही है। सरकार पर सुस्ती का आरोप मढ़ रही है, जबकि रिक्तियों की संख्या काफी ज्यादा है।
कोलेजियम ने 19 अप्रैल को जस्टिस एम याकूब मीर को मेघालय हाईकोर्ट और जस्टिस रामलिंगम सुधाकर को मणिपुर हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनाए जाने की अनुशंसा की थी। मोदी सरकार ने अभी तक उनकी नियुक्तियों को मंजूरी नहीं दी है। दरअसल, 17 अप्रैल को एक शख्स ने सुप्रीम कोर्ट से अपने मुकदमे को मणिपुर हाईकोर्ट से गौवाहाटी हाईकोर्ट स्थानांतरित करने की गुहार लगाई थी। इस मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि जजों के खाली पदों के कारण मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा जैसे उत्तर पूर्वी राज्यों के हाईकोर्ट में हालात चिंताजनक हो गए हैं।
मणिपुर हाईकोर्ट में सात जजों के मुकाबले सिर्फ दो जज, जबकि मेघालय हाईकोर्ट में चार जजों की जगह सिर्फ एक जज काम कर रहे हैं। जजों की कमी के कारण वहां के लोग दिल्ली हमारे पास आते हैं कि उनका मामला दूसरे हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया जाए। इसके लिए उन्हें पैसे खर्च करने पड़ते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने वेणुगोपाल से 10 दिन में मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा के हाईकोर्ट में जजों की रिक्तियों के बारे में हलफनामा दायर करने का आदेश दिया। बता दें कि इससे पहले केंद्र सरकार ने कोलेजियम की सिफारिश को तीन महीने तक लटकाए रखने के बाद जस्टिस केएम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त करने की फाइल लौटा दी थी।