नई दिल्ली
दिल्ली में हिंसा थमने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने सोमवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी शांति की कामना करता है, लेकिन उसकी भी कुछ ‘सीमाएं’ हैं और वह ‘ऐहतियातन राहत’ नहीं दे सकता है। चीफ जस्टिस ने कहा कि अदालत के पास ऐसी घटनाओं को रोकने की ताकत नहीं है, हम पर प्रेशर है।
जस्टिस बोबडे ने यह टिप्पणी भाजपा नेताओं अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा, कपिल मिश्रा और अभय वर्मा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर 4 मार्च को सुनवाई करने पर सहमति जताने के बीच की। भाजपा के नेताओं पर नफरत फैलाने वाले भाषण देने का आरोप है जिसकी वजह से कथित तौर पर दिल्ली में हिंसा भड़की।
मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा के कारण रोजाना औसतन 10 लोग मर रहे हैं। ऐसे में इस मामले पर तुरंत सुनवाई की जरूरत है। इस पर सीजेआई ने कहा, ‘‘जिस तरह का हमपर प्रेशर है, आपको जानना चाहिये कि हम उससे नहीं निपट सकते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम भी शांति चाहेंगे, लेकिन आप जानते हैं कि कुछ सीमाएं हैं।’’
चीफ जस्टिस ने कहा, ‘‘हम यह नहीं कह रहे हैं कि लोगों को मरना चाहिये। इस तरह के दबाव से निपटने के लिये हम सक्षम नहीं हैं। हम चीजों को होने से नहीं रोक सकते। हम ऐहतियाती राहत नहीं दे सकते। पीठ ने कहा कि अदालत किसी स्थिति से कोई चीज होने के बाद निपट सकती है और उसे किसी चीज को रोकने की शक्ति प्रदान नहीं की गई है।
पीठ ने याचिका को बुधवार को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध करने पर सहमति जताते हुए कहा, ‘‘हम देखेंगे कि हम क्या कर सकते हैं।’’ पीठ में जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल हैं।
जब पीठ ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट पहले ही दिल्ली हिंसा से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है तो इसपर गोंजाल्विस ने कहा कि हाईकोर्ट ने करीब 6 सप्ताह के लिये सुनवाई स्थगित कर दी है और यह निराशाजनक है। मालूम हो कि नागरिकता संशोधन कानून को लेकर गत 23 फरवरी को उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा में कम से कम 45 लोगों की मौत हुई है और 200 से अधिक लोग घायल हुए हैं।