पश्चिम बंगाल की भाजपा इकाई ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता देने के कानून में बदलाव किया जाए। उन्होंने सुझाव दिया कि गैर मुस्लिम शरणार्थियों से छह साल भारत में रहने की शर्त हटाकर शपथपत्र लेकर नागरिकता दी जाए। माना जा रहा है कि अगले महीने से शुरू होने वाले शीतकालीन सत्र में सरकार फिर से नागरिकता (संशोधन) विधेयक को संसद की मंजूरी के लिए पेश कर सकती है। जनवरी में यह विधेयक लोकसभा में पारित हो गया था, लेकिन पूर्वोत्तर के राज्यों में विरोध के चलते इसे राज्यसभा में नहीं रखा गया था।
बंगाल भाजपा के महासचिव सत्यांत बसु ने कहा कि भारत की स्थाई नागरिकता के लिए यहां छह साल रहने की शर्त को हटा देना चाहिए। इसके स्थान पर सरकार शरणार्थियों से एक शपथ पत्र ले सकती है। पार्टी ने इस मुद्दे को गृह मंत्री अमित शाह के सामने उठाया है।
हाल में कोलकाता में लोगों को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस बारे में बात की। उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर तंज कसते हुए कहा कि ‘मैं सभी हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध और ईसाई शरणार्थियों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि उन्हें भारत छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। आप अफवाहों पर ध्यान न दें।
नागरिकता संशोधन विधेयक में क्या है प्रस्ताव?
- पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च (PRS Legislative Research) के अनुसार, नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 को 19 जुलाई 2016 को लोकसभा में पेश किया गया था।
- 12 अगस्त 2016 को इसे संयुक्त संसदीय समिति को सौंप दिया गया था। समिति ने इस साल जनवरी में इस पर अपनी रिपोर्ट दी है।
- अगर यह विधेयक पास हो जाता है, तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के सभी गैरकानूनी प्रवासी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई भारतीय नागरिकता के योग्य हो जाएंगे।
- इसके अलावा इन तीन देशों के सभी छह धर्मों के लोगों को भारतीय नागरिकता पाने के नियम में भी छूट दी जाएगी। ऐसे सभी प्रवासी जो छह साल से भारत में रह रहे होंगे, उन्हें यहां की नागरिकता मिल सकेगी। पहले यह समय सीमा 11 साल थी।
विधेयक पर क्यों है विवाद?
इस विधेयक में गैरकानूनी प्रवासियों के लिए नागरिकता पाने का आधार उनके धर्म को बनाया गया है। इसी प्रस्ताव पर विवाद छिड़ा है। क्योंकि अगर ऐसा होता है तो यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा, जिसमें समानता के अधिकार की बात कही गई है।