Breaking
21 Nov 2024, Thu

डॉ वेदप्रताप वैदिक

नई दिल्ली,
नया नागरिकता विधेयक अब जो जो गुल खिला रहा है, उसकी भविष्यवाणी हमने पहले ही कर दी थी। सबसे पहले तो मोदी और जापानी प्रधानमंत्री की गुवाहाटी-भेंट स्थगित हो गई। दूसरा, बांग्लादेश और पाकिस्तान में इस विधेयक की कड़वी प्रतिक्रिया हो रही है। बांग्लादेश के गृहमंत्री और विदेश मंत्री की भारत-यात्रा स्थगित हो गई। पाकिस्तान के एक हिंदू सांसद और एक हिंदू विधायक ने इस नए कानून की भर्त्सना कर दी है। अभी तक अफगानिस्तान की प्रतिक्रिया नहीं आई है, क्योंकि उसके राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री, दोनों ही भारत के पुराने मित्र हैं।

यह ठीक है कि वे इस नए कानून की इमरान खान की तरह भर्त्सना नहीं करेंगे और इसे संघ का हिंदुत्ववादी एजेंडा नहीं कहेंगे लेकिन उन्हें इमरान और शेख हसीना से भी ज्यादा अफसोस होगा, क्योंकि उन पर भी यह इल्जाम लग गया है कि वे हिंदू-विरोधी हैं। इन तीनों मुस्लिम राष्ट्रों को किसी मुद्दे पर एक करने का श्रेय किसी को मिलेगा तो वह हमारी मोदी सरकार को मिलेगा।

हमारी सरकार पता नहीं क्यों यह कानून ले आई है? इस कानून के बिना भी वह पड़ौसी देशों के हर सताए हुए आदमी को भारत की नागरिकता दे सकती थी। उनमें हिंदू तो अपने आप ही आ जाते लेकिन उस सूची में से शरणार्थी मुसलमानों को निकालकर भाजपा सरकार ने अपने गले में सांप्रदायिकता का पत्थर लटका लिया है। क्यों लटका लिया है, समझ में नहीं आता? जब वह विपक्ष में थी, तब उसका यह पैंतरा हिदू वोट पटाने के लिए सही था लेकिन अब वह सरकार में है। उसे अब पूरा अधिकार है कि वह किसी भी विदेशी को नागरिकता दे या न दे इस अधिकार के बावजूद उसे अपने आप को नंगा करने की जरुरत क्या थी?

उसने सिर्फ अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश का नाम ही क्यों लिया? क्या अफगानिस्तान भी 1947 के पहले भारत का हिस्सा था? श्रीलंका और बर्मा तो भारत के हिस्से ही थे। उनके यहां से आनेवाले शरणार्थियों के लिए इस नए कानून में कोई प्रावधान नहीं है। यह कानून भी नोटबंदी-जैसी ही भयंकर भूल है। इससे फायदा कम, नुकसान ज्यादा है। बंगाल सहित सभी पूर्वोत्तर प्रांतों से भाजपा ने हाथ धो लिये हैं। बेहतर होता कि राष्ट्रपति इस विधेयक पर दस्तखत नहीं करते तो संसद इस पर पुनर्विचार करती और सरकार को अपनी नादानी से मुक्ति का रास्ता मिल जाता।

By #AARECH