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20 Oct 2024, Sun

नई दिल्ली

ऐसे समय में जब दिल्ली हाल के वर्षों के ठंड के नए रिकार्ड क़ायम कर रही है, सैकड़ों महिलाएं ओखला क्षेत्र की शाहीन बाग़ कॉलोनी में खुले में बैठकर धरना दे रही हैं। नए नागरिकता क़ानून और एनआरसी के ख़िलाफ़ देश के अन्य हिस्सों में चल रहे उग्र प्रदर्शनों से एकदम अलग, यहाँ मौजूद महिलाएं देश और भारतीय संविधान की प्रशंसा में नारे लगा रही हैं।

इसी बीच मंच पर कोई बांसुरी से वही पुराना और लोकप्रिय देशभक्ति गीत ‘सारे जहां से अच्छा’ बजाने लगता है और दर्शकों में बैठे नौजवान और वृद्ध महिलाएं इस धुन पर झूमने लगती हैं। फिर सभी राष्ट्रगान गाने के लिए उठते हैं। बाद में उसी जगह बैठ जाते हैं। यह विरोध प्रदर्शन बीते 10 दिनों से कुछ इसी तरह लगातार चल रहा है।

विरोध प्रदर्शन के आयोजकों में कुछ पुरुषों को छोड़कर, अधिकतर प्रदर्शनकारी महिलाएं हैं जो नए नागरिकता क़ानून को वापस लेने की माँग कर रही हैं। साथ ही इनकी माँग है कि एनआरसी को देश में कभी लागू ना किया जाए। प्रदर्शन में आईं महिलाओं में कई गृहणियाँ हैं जो अपने घरों से बहुत कम ही बाहर निकलती हैं, देर रात में इस तरह किसी प्रदर्शन में बैठना तो दूर की बात है।

वे कहती हैं कि ये पहली बार है जब वे इस तरह के किसी धरने पर बैठी हैं। इनमें से एक हैं फ़िरदौस शफ़ीक़ जो कहती हैं कि “हमें सरकार द्वारा ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया है।” फ़िरदौस का सिर हिजाब से ढँका हुआ है। उनके बगल में बैठी एक अन्य महिला का सिर और चेहरा, दोनों ही ढँके हुए हैं।

वो कहती हैं, “मैं अकेले घर से बाहर नहीं निकलती। सब्ज़ी लेने पास के बाज़ार भी जाना होता है तो मेरा 15 साल का बेटा या पति मेरे साथ जाते हैं। और मैं हर समय हिजाब पहनती हूँ। इसलिए एक गृहिणी के रूप में मुझे यहाँ आकर बैठना बहुत मुश्किल लगता है। लेकिन बाहर आना और विरोध करना, अब मेरी मजबूरी बन गया है।”

फ़िरदौस को लगता है कि ये समय ठंड या शर्म के बारे में सोचने का नहीं है। वे कहती हैं, “अगर हम अपनी नागरिकता साबित करने में विफल हुए तो हमें या तो किसी डिटेंशन सेंटर में रखा जाएगा या देश में एनआरसी लागू होने पर देश से बाहर निकाल दिया जाएगा। इसलिए देश से बाहर निकाले जाने से बेहतर है कि हम अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करें।”

हाल ही में भारतीय संसद द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 पारित किए जाने के बाद देश के लगभग हर कोने में विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि सीएए के बाद नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) को लागू किया जाएगा जो देश से मुस्लिम आबादी को बाहर करने का एक ज़रिया होगा।

गृह मंत्री अमित शाह ने पहले कहा था कि देश भर में NRC तैयार किया जाएगा। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में अपने संबोधन में कहा कि ऐसी कोई योजना नहीं है। इसके बाद गृह मंत्री ने भी एक इंटरव्यू में कहा है कि कैबिनेट या संसद में NRC को लागू करने पर अब तक कोई चर्चा नहीं हुई है।

हालांकि प्रदर्शनकारी दोनों नेताओं के इन बयानों से आश्वस्त नहीं हैं। कई दिनों से जारी यहाँ विरोध का मतलब है कि दुकानें बंद हैं और कुछ मार्गों को मोड़ दिया गया है। विरोध के चलते कालिंदी कुंज और नोएडा जाने वाली सड़कें बंद हैं। प्रदर्शन स्थल से लगभग 50 मीटर दूर पुलिस कर्मी काफ़ी भारी संख्या में मौजूद हैं और किसी भी अप्रिय घटना के लिए तैयार दिखते हैं।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दावा किया कि स्थानीय लोग इस विरोध प्रदर्शन से परेशानी महसूस कर रहे हैं क्योंकि ना केवल सड़क और बाज़ार बंद हैं, बल्कि इससे स्कूल जाने वाले बच्चों सहित यात्रियों की आवाजाही भी बाधित हो रही है। वहीं यूनिवर्सिटी में दूसरे साल की छात्रा हुमैरा सैय्यद जिनके माता-पिता और भाई भी प्रदर्शनकारियों में शामिल हैं, कहती हैं- “इस विरोध प्रदर्शन का निशाना ना तो हिंसा है और ना ही किसी को परेशान करना।”

“यह क़ानून हमारे देश के संविधान का उल्लंघन है और इससे फ़िलहाल मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है। पर धीरे-धीरे अन्य समुदायों (ग़ैर-हिंदू) को भी टारगेट किया जाएगा।” यह पूछे जाने पर कि क्या इससे उनकी पढ़ाई प्रभावित नहीं होगी? तो वे कहती हैं, “अगर मुझे डिग्री मिलती भी है और मुझे ये पता नहीं कि मैं इस देश में रह पाउंगी या नहीं, तो मैं ऐसी डिग्री का क्या करूंगी।”

प्रदर्शन की इसी भीड़ का हिस्सा हैं रिज़वाना बानो जो एक दिहाड़ी मज़दूर हैं। रिज़वाना के पति ड्राइवर हैं। रिज़वाना कहती हैं, “हम इतना जानते हैं कि हमें दोनों वक़्त की रोटी कमाने के लिए रोज़ कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। हम नहीं जानते कि उन क़ागज़ों को कहाँ से और कैसे लाया जाएगा। नागरिकता साबित करने वाले क़ागज़ कौनसे होंगे, हमें नहीं पता। हमें धर्म के आधार पर विभाजित किया जा रहा है। हम पहले भारतीय हैं और बाद में हिंदू या मुसलमान।”

ठंड में प्रदर्शनकारियों को गर्म रखने के लिए कंबल से लेकर चाय तक की व्यवस्थाएँ हैं। यह सब इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि इस जगह प्रदर्शन रात भर चलता है। अगर किसी और चीज़ की ज़रूरत है तो माइक पर इसकी घोषणा की जाती है और यहाँ जुटे वॉलंटियर या स्थानीय लोग उसका इंतज़ाम करने की कोशिश में लग जाते हैं। 15 दिसंबर को जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों पर पुलिस की कार्रवाई के बाद शुरू हुआ यह शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन, विश्वविद्यालय के आस-पास देखी गई हिंसा के बिल्कुल विपरीत है।

पुलिस द्वारा विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश और बल के कथित रूप से इस्तेमाल के बाद विश्वविद्यालय से सटा हुआ इलाक़ा युद्ध के मैदान में तब्दील हो गया था। इससे हिंसा और आगजनी हुई जिसमें बसों और पुलिस वालों की मोटरसाइकिलों समेत कई वाहनों को क्षतिग्रस्त किया गया था।

इस प्रदर्शन में मंच का संचालन कर रहे कुछ वक्ता पुलिस की ‘बर्बर’ कार्रवाई का उल्लेख तो करते हैं, लेकिन लोगों को हिंसा से दूर रहने का आग्रह भी करते हैं। मंच पर मौजूद एक वक़्ता कहता है, “आइए यह सुनिश्चित करें कि यह विरोध हिंसक ना हो और हम उन्हें अपने ख़िलाफ़ बल प्रयोग करने का मौक़ा ना दें।” क़रीब 70 वर्षीय आस्मा ख़ातून कुछ ग़ुस्साए प्रदर्शनकारियों में से हैं।

यह पूछे जाने पर कि वो यहाँ क्यों हैं? वो जवाब देती हैं, “क्यों नहीं? मैं मर जाऊंगी लेकिन मैं इस देश को नहीं छोड़ूंगी। लेकिन मैं यह साबित नहीं करना चाहती कि मैं भारतीय हूँ। सिर्फ़ मैं ही नहीं, मेरे पूर्वज, मेरे बच्चे और पोते सभी भारतीय हैं। लेकिन हमें यह किसी को साबित नहीं करना है।”

 

By #AARECH