बसपा सुप्रीमो मायावती का मोहम्मद आजम खान के प्रति अचानक यूं ही रुख नहीं बदला है। इसके पीछे छिपे सियासी मर्म को देखा जाए तो मुस्लिम वोट बैंक पाने की चाहत ही सामने आएगी। आजम की प्रताड़ना का यह मर्मस्पर्शी मरहम लगाकर मायावती ने मिशन 2024 को साधने की कोशिश की है।
मुस्लिम-दलित एका की चाहत
बसपा सुप्रीमो मुस्लिम वोट बैंक का साथ पाना चाहती हैं। दलित की तरह मुस्लिम वोट बैंक भी असर रखता है। मायावती का मानना है कि दोनों जातियों का वोट बैंक, यानी मुस्लिम-दलित (MD ) फैक्टर चुनाव में जिसकी ओर होगा उसे सत्ता में आने से कोई नहीं रोक सकता। वर्ष 2007 में उनकी राज्य में सरकार बनाने में दलित-मुस्लिम मतों की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती रही है। उन्होंने यही सोच कर इस विधानसभा चुनाव में 89 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, लेकिन उनकी यह रणनीति फेल हो गई।
इस चुनाव में वह मात्र एक सीट जीत पाई। आंकड़ों को देखा जाए तो इस चुनाव में मुस्लिम मतदाता पूरी तरह से सपा के साथ गया। मायावती को इसे लेकर काफी मलाल है। वह कई बार मुस्लिमों के लिए कह चुकी हैं कि वे सपा के भ्रम में आकर अपने समाज का नुकसान करा चुके हैं। अब वह आजम के सहारे मुस्लिम वोट बैंक का साथ पाना चाहती हैं।
बसपा में मुस्लिम चेहरा नहीं
बसपा में मौजूदा समय कोई बड़ा मुस्लिम चेहरा नहीं है। नसीमुद्दीन सिद्दीकी किसी समय बसपा का बड़ा मुस्लिम चेहरा हुआ करते थे। वह बसपा छोड़ कांग्रेस में जा चुके हैं।
मायावती ने मुनकाद अली को बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया, लेकिन वह अधिक छाप नहीं छोड़ सके। उन्हें हटा दिया गया। आजम खान का साथ पाने के लिए प्रसपा मुखिया शिवपाल से लेकर कांग्रेस तक लगी है। ऐसे में मायावती का उनके पक्ष में ट्वीट आना यह संकेत दे रहा है कि बसपा कहीं न कहीं उनके जरिये मुस्लिमों को संदेश देना चाहती है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने आजम के पक्ष में रैली की थी।
मुस्लिमों को लेकर कुछ प्रमुख ट्वीट
-सपा मुखिया यूपी में मुस्लिमों का पूरा वोट लेकर जब सीएम नहीं बन पाएं तो दूसरों का पीएम बनने का सपना कैसे पूरा कर सकते हैं
-मुस्लिम महिलाओं द्वारा हिजाब पहनने का मामला अतिगंभीर व अतिसंवेदनशील। इसकी आड़ में राजनीति व हिंसा अनुचित
-विधानसभा चुनाव हार के बाद बयान दिया मुस्लिम समाज ने यूपी में बसपा से ज्यादा सपा पर भरोसा करके बड़ी भारी भूल की है।