डॉ अशफाक अहमद
लखनऊ, यूपी
कोरोना संक्रमण के बीच देश की राजनीति में कई तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इसी काल में यूपी की राजनीति की बात करें तो यहां भी कई उतार-चढ़ाव नज़र आ रहे हैं। सत्तासीन बीजेपी के खिलाफ विपक्ष में नंबर एक बनने की लड़ाई में सपा, बीएसपी और कांग्रेस तीनों नज़र आ रहे हैं। कांग्रेस की बढ़ती सक्रियता से सपा और बीएसपी काफी परेशान दिख रहे हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में हाशिये पर गए विपक्ष अभी ऐसा कोई मुद्दा ही नहीं तलाश पाया जिससे वो सत्तापक्ष पर हमलावर हो सके और वोटर को अपनी तरफ खींच सके। वैसे मुद्दे तो बहुत हैं पर विपक्ष उसे भुनाने में कामयाब होता नहीं दिखता।
प्रियंका गांधी की सक्रियता
नये काल में उत्तर प्रदेश की सियासत में नए तरह के सियासी समीकरण देखने को मिल रहे हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की सूबे में राजनीतिक सक्रियता से बीएसपी अध्यक्ष मायावती काफी बेचैन दिखाई दे रही हैं। मायावती के अगर बयानों को देखा जाए तो वो केंद्र और राज्य में सत्तासीन बीजेपी से ज़्यादा कांग्रेस पर लगातार हमलावर हो रही है। राजनीति गलियारों में ये सवाल तैर रहा है कि क्या बीएसपी और बीजेपी के बीच कोई सियासी केमिस्ट्री है, जिसकी वजह से मायावती बीजेपी पर नरम तो कांग्रेस पर गरम हैं।
कांग्रेस द्वारा दी गई बस पर विवाद
प्रियंका गांधी ने जब फंसे मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए एक हज़ार बसों के यूपी में चलाने के लिए परमिशन मांगी तो राजनीतिक बखेड़ा खड़ा हो गया। इसके बाद कांग्रेस और बीजेपी एक दूसरे के खिलाफ जमकर आरोप प्रत्यारोप लगाने लगे। इस बीच इस विवाद में मायावती कूद गई। उन्होंने सत्तासीन बीजेपी की जगह कांग्रेस पर हमलावर हो गई। उन्होंने न सिर्फ कई ट्वीट किए बल्कि प्रेस को बयान भी जारी किया। उनके ट्वीट देखने के बाद लगता है कि वो यूपी योगी सरकार का पूरी तरह से बचाव करती नज़र आई। जवाब में कांग्रेस ने बीएसपी को बीजेपी का सहयोगा बताना शुरु कर दिया। कांग्रेस आईटी सेल ने तो इस ट्वीट को खूब वायरल किया।
मायावती ने कांग्रेस की राज्य सरकारों को घेरा
प्रियंका गांधी और योगी सरकार के बीच हुए बस विवाद के बीच मायावती ने कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा। बीएसपी सुप्रीमों ने कांग्रेस की राजस्थान और पंजाब सरकार पर कई इल्ज़ाम लगाए और मजदूरों की मदद न करने का आरोप लगाया। मायावती के इस आरोप के बाद बीजेपी का खेमा काफी खुश नज़र आया। दरअसल फंसे मजदूरों को उनके घर पहुंचाने को लेकर घिरी बीजेपी की सरकारों को कहीं न कहीं मायावती का सहारा मिल गया। जबकि बीजेपी के सहयोगी भी उसके साथ खड़े नज़र नहीं आ रहे थे।
कांग्रेस को लेकर अखिलेश नरम मायावती गरम
कांग्रेस से संबंध को लेकर अखिलेश यादव का बयान थोड़ा नरम रहता है। वहीं कांग्रेस नेता भी अखिलेश पर ज़्यादा बयान देने से बचते हैं। हाल ही में कई मीडिया चैनलों के दिए गए इंटरव्यू में अखिलेश यादव ने कांग्रेस पर निशाना तो साधा पर उनका फोकस बीजेपी ही था। कांग्रेस पर सपा के दूसरे नेता भी न के बराबर हमलावर होते हैं।
प्रियंका गांधी ही मायावती के निशान पर क्यों
दरअसल जबसे प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की सियासी जमीन पर आई हैं, उनकी नज़र ब्राहमणों, मुस्लिमों, दलितों पर ज़्यादा फोकस है। दलितों के कई मुद्दों पर वो खुलकर बोल रही है। इसका मतलब साफ है कि प्रियंका की नज़र सीधे-सीधे मायावती के वोट बैंक पर है। कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि ब्राहमण और मुसलमान कांग्रेस की तरफ देख रहे हैं। ऐसे में दलित अगर कांग्रेस की तरफ आए तो यूपी में राजनीतिक समीकरण बदल सकता है। मायावती की नाराजगी की एक वजह पार्टी से जुड़े नेता और बताते हैं। उनका कहना है कि प्रियंका गांधी और भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर रावण की मुलाकात और उसके बाद राजनीतिक नजदीकियों की वजह से मायावती ज़्यादा नाराज है। उधर राजस्थान में बीएसपी के विधायकों को तोड़कर कांग्रेस में शामिल करने पर भी मायावती नाराज़ हैं।
विपक्ष की नज़र मुस्लिम वोट बैंक पर
यूपी में 90 के दशक से पहले कभी मुस्लिम वोट बैंक पर कांग्रेस का कब्ज़ा हुआ करता था, लेकिन उसके बाद जनता दल और बाद में सपा और बसपा के बीच ये वोट बैंक तैरता रहा है। प्रियंका गांधी की नज़र यूपी में मुस्लिम वोटर्स पर बिल्कुल फोकस है। यहीं वजह है कि सीएए-एनआरसी विरोध प्रदर्शन के दौरान मारे गए लोगों के परिवारों के घर जाकर प्रियंका गांधी ने मुलाकात की थी और खुलकर योगी सरकार पर हमला बोला। यहीं नहीं प्रियंका गांधी अखिलेश के गढ़ आजमगढ़ भी पहुंची और मुस्लिम महिलाओं से मुलाकात करके एक मैसेज देने में कामयाब रहीं।
अगर मौजूदा दौर की बात करें तो विपक्ष में कांग्रेस और सपा भले ही बीजेपी पर हमलावर हो लेकिन मायावती वो रवैया कई सवाल खड़े करता है। इस बीच कोरोना संकट में मायावती को फोन कर सीएम योगी आदित्यनाथ ने धन्यवाद दिया तो राजनीतिक गलियारों में कई सवाल तैरने लगे। कई लोगों ने इसे बीजेपी और बीएसपी के बीच पनपता नया गठबंधन के तैर पर देखा।
दरअसल राजनीति संभावनाओं का खेल है। नये समीकरण, राजनीति संकेत के सहारे राजनीति की दिशा और दशा बदलती रहती है। बीएसपी प्रमुख मायावती इससे पहले भी बीजेपी से समझौता करके सरकार बना चुकी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा से समझौता के बाद बीएसपी ने 10 सीटें जीतीं। उसके बाद आनन-फानन में गठबंधन तोड़ दिया। यूपी की सियासत में प्रियंका गांधी की इंट्री के बाद जितनी उम्मीद की जा रही थी उसकी तुलना में कांग्रेस की प्रदर्शऩ काफी खराब रहा। ये भी सच है कि प्रिंयका गांधी जिस तरह से जमीनी मुद्दे उठाकर यूपी की सियासत में दांव चल रही हैं उससे कहीं न कहीं बीजेपी के साथ बीएसपी और सपा भी उसको निशाने पर ले रही है। दरअसल कांग्रेस के रणनीतीकार भी यहीं चाहते हैं। मायावती के हमलावर रुख से कहीं न कहीं कांग्रेस अपने फायदे तलाश रही है। अब देखना ये है कि प्रियंका गांधी बीजेपी के साथ बीएसपी और सपा के हमले से कैसे निपटती हैँ।