विभिन्न देशों के साथ व्यापार समझौते के मुद्दे पर केन्द्र की बीजेपी सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई है। बता दें कि केन्द्र की बीजेपी सरकार REGIONAL COMPREHENSIVE ECONOMIC PARTNERSHIP को लेकर बातचीत कर रही है, जो कि अंतिम चरण में हैं। बता दें कि RCEP में 10 आसियान देशों के साथ ही भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया,जापान भी शामिल हैं।
वहीं आरएसएस इस समझौते को लेकर आपत्ति जता रही है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी हाल ही में कहा था कि केन्द्र सरकार को व्यापार समझौतों से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए। हालांकि केन्द्र सरकार का पक्ष है कि भारत एक बंद अर्थव्यवस्था नहीं बन सकता और कई वर्ग देश को आगे बढ़ा रहे हैं।
बता दें कि आरएसएस की आर्थिक विंग स्वदेशी जागरण मंच ने ऐलान किया है कि वह RCEP और 16 देशों के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते का विरोध करेगा। गुरुवार से शुरू हुआ यह 10 दिवसीय विरोध राष्ट्रीय स्तर का होगा। इसके साथ ही एसजेएम देश के हर जिले में जिलाधिकारी के माध्यम से पीएम मोदी को ज्ञापन सौंपेंगे।
वहीं भाजपा के आर्थिक मामलों के प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने द इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में कहा कि “इंडस्ट्री में हर कोई RCEP का विरोध नहीं कर रहा है। वैश्विक, घरेलू इंडस्ट्री, देश की अर्थव्यवस्था के लिए RCEP, FTA और व्यापार संबंधों काफी महत्वपूर्ण हैं। हालांकि भाजपा ने इंडस्ट्री के लोगों, थिंक टैंक, कार्यकर्ताओं और ओपिनियन मेकर्स को इस मुद्दे पर अपनी राय देने के लिए बुलाया है। कुछ समस्याएं हैं, लेकिन कई वर्ग चाहते हैं कि देश इस दिशा में पूरी बातचीत के साथ आगे बढ़े।”
बीते सोमवार को भाजपा मुख्यालय में इस मुद्दे पर एक बैठक भी हुई थी। जिसमें भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष और गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने इंडस्ट्री के लोगों से बातचीत की थी। अग्रवाल का कहना है कि पार्टी जल्द ही इस संबंध में एक रिपोर्ट सरकार के सामने पेश करेगी।
आरएसएस के स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक अश्विनी महाजन का कहना है कि “स्टील, टेलीकॉम, केमिकल और डेयरी उद्योग RCEP का विरोध कर रहे हैं। महाजन ने कहा कि यदि आप इन इंडस्ट्री को बर्बाद कर देंगे तो उससे अर्थव्यवस्था का क्या होगा? इससे बर्बाद होने वालों की हमारे पास एक लंबी लिस्ट है।”
SJM के नेताओं का कहना है कि देश के मैन्यफैक्चरिंग और एग्रीकल्चर सेक्टर मुश्किलों में घिरा है, जिससे लोगों की नौकरियां जा रही हैं। SJM नेताओं के अनुसार, मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में संकट का कारण साल 1991 से एक कॉम्प्रीहेंसिव इंडस्ट्रियल पॉलिसी की कमी है। भारत ने बीते दशक में FTA (मुक्त व्यापार समझौते) पर हस्ताक्षर किए थे, इससे देश में सस्ता सामान आयात हुआ और उसका असर भारतीय मैन्यूफैक्चर्स पर पड़ा।