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19 Oct 2024, Sat

कभी भारतीय जनता पार्टी के थिंक टैंक रहे, आरएसएस विचारक और आर्थिक चिंतक केएन गोविंदाचार्य का मानना है कि मौजूदा वक्त अर्थव्यवस्था के सामने जो संकट है, वह 1991 के कथित सुधारों की देन है। वह आज मंदी की आहट को उदारीकरण का असर मानते हैं। उनका मानना है कि अर्थव्यवस्था का जब वैश्वीकरण होता है तो वह अपने साथ छुपे तौर पर मंदी और रोजगार संकट भी लाती है। गोविंदाचार्य ने कहा कि हमें देश की अर्थव्यवस्था की बेसिक स्ट्रेंथ को समझना होगा। तभी कोई कदम उठाना फायदेमंद होगा।

उन्होंने कहा कि कहां तो हमें डोमेस्टिक प्रोडक्शन, डोमेस्टिक कंजम्पशन और डोमेस्टिक मार्केटिंग की दिशा में चलना था और कहां हम एक्सपोर्ट की राह पर चले गए। हमें विश्व व्यापार संगठन (WTO) के प्लेटफॉर्म का आक्रामक होकर उपयोग करना था। मगर नहीं कर सके।

गोविंदाचार्य ने कहाकि हमें कृषि और इससे जुड़े उत्पादों की इंडस्ट्री पर ज्यादा फोकस करना होगा। हमें दलहन-तिलहन के उत्पादन और खाद्य परिष्करण पर जोर देना होगा। जो हमारी यूएसपी रही है, उसे समझते हुए जब अर्थव्यवस्था का मॉडल बनाएंगे तभी भला होगा। इससे रोजगार संकट भी दूर होगा। गोविंदाचार्य ने कहा कि हार्डवेयर सेक्टर में हम पिटे हैं। इस तरफ तो हमने हाथ ही नहीं लगाया।

गोविंदाचार्य ने कहा कि हमारे यहां जमीन और जनसंख्या का अनुपात ठीक नहीं है।ऐसे में दूसरे देशों की जहां लैंड और पॉपुलेशन का अनुपात ठीक है वहां की अर्थव्यवस्था के हिसाब से नहीं चल सकते। गोविंदाचार्य ने कहा कि भारत को अगर अमेरिका बनाने निकलेंगे तो यह ब्राजील बन जाएगा। यहां की अर्थव्यवस्था का ब्राजीलीकरण हो जाएगा। ब्राजील को भी अपनी नीतियों का खामियाजा भुगतना पड़ा है। बता दें कि दुनिया की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक और ब्रिक्स देशों में शामिल ब्राजील को 2014 से भारी आर्थिक संकट झेलना पड़ा है। दक्षिण अमेरिका के इस देश में मंदी के चलते लाखों नौकरियों का संकट पैदा हुआ।

अटल से टकराव पर छोड़ दी थी बीजेपी
1988 से वर्ष 2000 के बीच तक बीजेपी के थिंक टैंक रहे केएन गोविंदाचार्य आरएसएस के प्रचारक रहे हैं। वर्ष 2000 में वह बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव थे। उस वक्त अटल बिहार वाजेपयी की नाराजगी के कारण उन्हें पद छोड़ना पड़ा था। बीजेपी से अलग होने के बाद फिर वह दोबारा वापस नहीं आए। हालांकि संघ के पदाधिकारियों और बीजेपी के कई नेताओं से आज भी उनका संपर्क रहता है।

उनके पास बीजेपी के नेता और प्रचारक मार्गदर्शन लेते हैं। गोविंदाचार्य समय-समय पर सुझाव भी देते हैं। बीजेपी से अलग होने के बाद से गोविंदाचार्य भारत विकास संगठन और राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन चलाते हैं। दो मई 1943 को आंध्र प्रदेश के तिरुपति में जन्मे कोडिपकम नीलमेघाचार्य गोविंदाचार्य का अधिकांश समय बनारस में बीता। बीएचयू से पढ़ाई करने के बाद वह संघ से जुड़े रहे।

 

By #AARECH