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23 Dec 2024, Mon

आसमोहम्मद कैफ की फैसबुक वाल से

मुजफ्फरनगर, यूपी

एक सप्ताह पहले मैंने मुज़फ्फरनगर के मीरापुर में एक ऐसे गरीब रोज़ेदार परिवारों के बारें लिखा था जिन्हें अफ्तार भी रूखी रोटी से करना पड़ रहा था। खतौली रोड पर यह 21 परिवार छप्पर डाल कर रह रहे थे। मैंने सिर्फ लिखा क्योंकि मुझे दर्द हुआ। मेरे अतीत ने मुझे कुरेदा। सोशल मीडिया की क्रांति ने इसे लाखो लोगो तक पहुंचा दिया।

दिल्ली के क्रंतिकारी नौजवान और मानवीय मूल्यों को समर्पित फर्राह शकेब को सबसे पहले ख्याल आया कि इनकी मदद होनी चाहिए। उन्होंने मेरा बैंक अकाउंट सार्वजानिक किया।  भावनात्मक रूप से हमने सबसे ज़्यादा कद्र उसके लिए की जिसने 200 रुपए का सहयोग किया। दरअसल यह रकम हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण थी।

सामाजिक रूप से सबसे बड़ा सहयोग शायरी जगत के ‘शाहरुख’ इमरान प्रतापगढ़ी ने की। वो न केवल खुद आये बल्कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के मसीहा बनने की और अग्रसर आशु मलिक को भी साथ ले आये। मजलूमों, बेसहारों के बीच यह दोनों पहुंचे तो लोगो की आँखे नम हो गयी। अखिलेश सरकार में आशु मालिक की ताकत से कोई इंकार नही कर सकता था। उन्होंने लगातार समाज में अपना रुतबा बुलंद किया। वर्तमान में वो विधान परिषद सदस्य है।

अंतर्राष्ट्रीय शायर इमरान प्रतापगढ़ी का उन्हें साथ लेकर आना एक बढ़िया मूव था। शायर इमरान आजकल मुस्लिम नेतृत्व के गर्त में चले जाने के बाद मजलूमों की वास्तविक आवाज़ बन कर उभरे हैं। पहले उनकी शायरी में यह सब दिखाई देता था। अब सब कुछ ग्राउंड पर दिखाई दे रहा है। वो आमजन के लड़ते दिखते है। 70 से नाकारा मुस्लिम नेतृत्व के चाटुकार आशु मालिक से नफरत तो कर सकते हैं, मगर उनके चमत्कारिक व्यक्त्वि और आमजन में बढ़ते सम्मान को नजरअंदाज नही कर सकते। पश्चिम उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की हर ज़रुरत में सबसे आगे वो दिखाई दिये है।

मीरापुर के गरीब मजलूमों को आशु मलिक ने खाने के पैकेट दिए, जबकि इमरान ने महिलाओं और बच्चों को कपड़े दिए ताकि उनकी ईद खुशनुमा हो सके। अब इनके पास इतना राशन और संसाधन हो गया है कि 2 महीने इनको पेटभर खाना मिल सकेगा। इनमें ज़्यादातर परिवार भीख मांगकर गुजारा करते थे। मगर इंशाल्लाह अब इसकी ज़रुरत नही पड़ेगी। जल्दी ही इन्हें रोज़गार पर खड़ा किया जायेगा। अब इनकी ईद खुशनुमा हो रही है। अब उदास चेहरों पर मुस्कुराहट है और वे सभी लोग मुबारकबाद के सच्चे हक़दार है, जिन्होंने चंदा सिंडिकेट को ज़ोरदार जवाब देते हुए ज़कात को सही लोगो तक पहुंचाया।

यही सच्चा इस्लाम है… और जिंदाबाद हैं ऐसे लोग। सलाम आपको… अगर कोई आपको यह कहे की अब लोगो में इंसानियत नही बची तो उसे यह कहानी सुनाना।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और एक मीडिया संस्थान के जुड़े हैं)