गोरखपुर, यूपी
सीएम योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर में मासूमों की मौत ने सबको हिलाकर रक दिया ता। दरअसल इसे मौत नहीं नरसंहार कहा जाए तो कम नहीं है। मौत की उस भयानक रात का मंज़र देखिए… बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन खतम हो रहा था। संकट के बीच डॉक्टर जब खूब दौड़भाग कर रहे थे। उस वक्त गुरूवार रात के दो बज रहे थे। इंसेफेलाइटिस वार्ड के प्रभारी और बाल रोग विशेषज्ञ डॉ कफ़ील अहमद को जैसे ही खबर मिली कि ऑक्सीजन खत्म होने वाली है। उनकी नींद उड़ गई। वह अपनी कार लेकर मदद मांगने अपने मित्र डॉक्टर के अस्पताल पहुंच गए। वहां से ऑक्सीजन के तीन जंबों सिलेंडर लेकर शुक्रवार की रात तीन बजे सीधे वार्ड पहुंचे।
पर यहां मरीज़ों की संख्या ज़्यादा थी। तीन सिलेंडरों से बालरोग विभाग में करीब 15 मिनट ऑक्सीजन की सप्लाई हो सकी। सुबह साढ़े सात बजे ऑक्सीजन खत्म होने पर एक बार फिर वार्ड में हालात बेकाबू हो गए। बच्चे बेड पर तड़प रहे थे। वार्ड में तैनात डॉक्टर और कर्मचारी परेशान हैरान इधर उधर भाग रहे थे। ऑक्सीजन सिलेंडर की खेप आने में कॉफी देर थी। इस दौरान न तो किसी बड़े अधिकारी ने और न ही गैस सप्लायर ने फोन उठाया। डॉ कफील खुद अपनी कार लेकर फिर निकल पड़े। वो प्राइवेट अस्पतालों में अपने डॉक्टर दोस्तों से मदद मांगने हुए अपनी गाड़ी से ऑक्सीजन करीब एक दर्जन सिलेंडरों को अस्पताल पहुंचाया।
इस दौरान डॉक्टर कफील ये जान चुके थे कि हालात बेहद नाज़ुक हैं। बगैर ऑक्सीजन सिलेंडर के कोई प्रयास सफल नहीं होने वाला हैं। उन्होंने शहर के आधा दर्जन ऑक्सीजन सप्लायरों दोबारा फोन किया। इस बीच एक एक सप्लायर ने नकद भुगतान मिलने पर सिलेंडर रिफिल करने को तैयार हुआ। तब डॉ कफील ने तुरंत एक कर्मचारी को अपना एटीएम कार्ड देकर रूपये निकालने भेजा और ऑक्सीजन का सिलेंडर मंगवाया। पर ये व्यवस्था ज़रूरत से काफी कम थी। डॉ कफील ने फैजाबाद से आए सिलेंडर के ट्रक चालक को भी डीजल और दूसरे खर्चो की रकम अपनी जेब से देकर वापस भेजा।
डॉ कफील के इस प्रयास की सराहना न सिर्फ वार्ड में भर्ती मरीज़ों के परिजन कर रहे हैं बल्कि अस्पताल के कर्मचारी भी उनकी तारीफ कर रहे हैं। पर सवाल ये हैं कि जो मौते हुई हैं और उसके बाद अधिकारियों और सरकार का जो रवैया रहा है। उसकी सज़ा उन्हें कैसे मिलेगी।