अब्दुल अज़ीज़
बहराइच, यूपी
‘सैकड़ों लोग हैं इस दिल को सताने वाले,
तुम अकेले नहीं इस दिल को दुखाने वाले’- आज़मा परवीन
मुल्क की गंगा-जमुनी तहज़ीब को आम करने और शहर से ग्रामीण इलाकों तक अमन का परचम लहराने की गरज से ज़िले में शानदार मुशायरा व कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस अज़ीमुस्सान ऑल इण्डिया मुशायरा व कवि सम्मेलन को स्वयं सेवी संस्था बज़्म-ए-अदब के तत्वाधान में तराई के इलाके मिंहीपुरवा के रेलवे ग्राउंड में हुआ। ये आयोजन कमेटी के सदर पूर्व ब्लॉक प्रमुख जटा शंकर की सरबराही में मुनक्किद किया गया।
अजीमुस्सान ऑल इण्डिया मुशायरा व कवि सम्मेलन की निज़ामत के फरायज़ को बैनल अक्वामी सतेह के शोहरत याफ्ता नाज़िम अनवर जलालपुरी ने अन्जाम दिया। जबकि सदारत का सेहरा मशहूर आलमी शायर कलीम कौसर के सर रहा। पूर्व घोषित प्रोग्राम के मुताबिक इस मुशायरे की सदारत के लिए हजरत बेकल उत्साही को मदु किया गया था लेकिन किन्ही कारणों से उनके मौजूद न होने पर ये अहम जिम्मेदारी कलीम कौसर को सौंपी गयी। इस तवारीखी मुशायरे में मेहमान ख़ुसूशी की हैसियत से सूबे के परिवहन मंत्री यासर शाह खासतौर पर मौजूद रहे, वहीं मंत्री बंशीधर बौद्ध भी इस मौके पर मेहमान बने। दूसरी तरफ ज़िला इन्तेजामिया की तरफ से इलाकाई हुक्कामों में क्षेत्राधिकारी नानपारा भरत लाल यादव व दीगर हज़रात भी मौजूद रहे।
मुशायरे का बाकायदा आगाज़ करते हुए मंत्री यासर शाह ने इस बज्म को सजाने वाले लोगों का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि मौजूदा दौर की जिंदगी में ऐसे प्रोग्राम समाज में फ़ैल रही नफरत को मिटाने के लिए एक पुल की तरह काम करते हैं। यासर शाह ने कहा कि हमें ऐसी अदबी तकरीबातों को बढ़ावा देना चाहिये।
मुशायरे की शुरुआत करते हुए शायर अज़ीज़ रब्बानी ने कहा कि…
“हक की तलाश व जुस्तजू सोज़ में न साज़ में,
जो मन तमाम कैद है दो रकात नमाज़ में”।
इसके बाद इस अदबी मयार को परवान चढ़ाते हुए दुनिया के जाने-माने शायर डॉ कलीम कैसर ने कहा कि…
इश्क ऐसी जबां है प्यारे,
जिसे गुंगा भी बोल सकता है।
अपनी शायरी से अदबी मयार में लोहा मनवाने वाली शायरा शबीना अदीब ने कलाम पढ़ा कि…
मेरे होठो पे तशनगी तीर भी नहीं आएगी,
सामने सबके हकीकत भी नहीं आएगी।
मशहूर शायर जौहर कानपूरी ने कहा कि…
जीतने का यो हुनर भी आज़माना चाहिए,
भाईयों से जंग हो तो हार जाना चाहिए।
ये भी इक तरकीब अपना दर्द कम करने की है
दूसरों के जख़्म पर मरहम लगाना चाहिए।।
अल्ताफ ज़िया ने पढ़ा कि…
दामन में मेरे यूं ही उजाला नहीं फैला
आंखों से कोई चीज चमकदार गिर गई है।
खुर्शीद हैदर की जुबानी…
“गैर परों पर उड़ सकते हैं,
हद से हद दीवारों तक।
अम्बर पर तो वही उड़ेंगे,
जिनके अपने पर होंगे”।
हाशिम फिरोज़ाबादी ने कहा कि…
“बस खुदा का भरोसा है मुझको और किसी की जरूरत नही है,
इस के सजदों से जो मुझको रोके ऐसी कोई हुकूमत नही है”।
इसी तरह शबा बलरामपुरी ने कहा कि…
“रंग लायी दुआ मोअज्ज़िज़ाह हो गया,
जो नही था मेरा वह मेरा हो गया”।
शायरा अज्मां परवीन के ख्यालों में…
“सैकड़ों लोग हैं इस दिल को सताने वाले,
तुम अकेले नही इस दिल को दुखाने वाले।
अपने हालात से खुद ही हमें लड़ना होगा,
अब आसमानों से फ़रिश्ते नही आने वाले”।
इस आल इण्डिया मुशायरा व कवि सम्मेलन में मुल्क के कोने कोने से आये शायर और कवियों ने अपने अपने ख्यालों का इज़हार अपनी रचना के जरिये समाज को पेश कर हालात-ए-हाज़रा पर तब्सिरह करने की कोशिश की जिनमें खुसूसी तौर पर शायर फ़लक़ सुल्तानपुर, तारिक बहराइची समेत दीगर हज़रात ने अपने अपने कलामात पेश किये और सामयीनों को लुत्फ़ अंगोज़ कराया।
दूसरी तरफ मुशायरा आयोजकों की ना अहली और लापरवाही की वजह से जिला हेड क्वार्टर से गये
तमाम मीडिया कर्मियों को भारी परेशानियों का भी सामना करना पड़ा। उनके लिए न तो
कोई बैठने का इन्तेज़ाम था और न ही कवरेज करने की लिए जगह मुहैया कराई गई लेकिन
फिर भी अदब के दीवाने सहाफी जाड़े के इस मौसम में भी वहाँ डटे रहे।