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22 Nov 2024, Fri

एतेकाफ़: अल्लाह की रज़ा व खुशनूदी हासिल करने का ज़रिया

मोहम्मद अशरफ इस्लाही

आज़मगढ़, यूपी
रमज़ान के महीने को दूसरे महीनों से यूं तो अफ़ज़ल और बुलंद मुकाम का हामिल है, लेकिन रमज़ान के आखिरी दस दिनों की अहमियत और अफज़लीयत और ज़्यादा है। पैगम्बर-ए-इस्लाम मोहम्मद (सल…) आखिरी अशरह में इबादत, शब बेदारी, ज़िक्र और फिक्र वगैरह में मशगूल हो जाते थे।

उम्मुल मोमनीन हज़रत आयशा (रजि..) फरमाती हैं कि आप (सल..) आखिरी अशरह में इतनी ज़्यादा मेहनत किया करते थे जितना दुसरे दिन में नहीं करते थे। रातों को उठ कर इबादत और घर वालों को उठाने का काम हमेशा करते थे। मगर आखिरी दस दिनों में आप अपने घर वालों को बाकी सारे महीनों से ज़्यादा जगाने का एहतेमाम करते थे।

एतेकाफ़ की अहमियत
आखिरी अशरह की अहमियत में एक अहमियत एतेकाफ़ की है। मस्ज़िद में इबादत की नीयत से कयाम करने का नाम एतेकाफ है। इसका मतलब ये है कि सभी कामों से अलग हो कर इबादत में लग जाने को एतेकाफ़ कहते हैं। हज़रत आयशा की सहीह बुखारी में हदीस है कि हुजूर (सल…) आखिरी अशरह में एतेकाफ़ फरमाते थे। आखिरी दस दिनों का एतेकाफ़ सुन्नत अलल किफाया है, यानी कोई भी अदा कर दे सबकी तरफ से अदा हो जायेगा।

एतेकाफ़ का वक्त
एतेकाफ़ मस्ज़िद का हक है। 20 रमज़ान की शाम से ईद का चाँद निकलने तक मस्ज़िद में रुकने और ताक रातों में इबादत करते हुये शब-ए-कद्र की बरकत तलाश करने को एतेकाफ़ कहते हैं। मोतकिफ (एतेकाफ़ करने वाले) के लिये मस्नून है कि वो नफली इबादत में मशगूल रहे। किसी तबई व शरई ज़रूरत के बिना मस्ज़िद से ना निकले।

एतेकाफ़ क्यों
हदीस से पता चलता है कि आप (सल…) आखिरी अशरह में एतेकाफ़ लैलतुल कद्र (कद्र की रात) की तलाश और उसकी बरकात पाने के लिये फरमाते थे। इसकी एक रात हज़ार महीनों से अफज़ल है और उसी रात कुरान शरीफ उतारा गया। एतेकाफ़ अल्लाह की रज़ा और उसकी खुशनूदी हासिल करने का अच्छा ज़रिया है। एतेकाफ़ असल में इंसान की अपनी आजिज़ी का इज़हार, अल्लाह की किबरियाई और उसके सामने झुकने का ऐलान है। एतेकाफ़ करने वालों को नमाज़, इबादत, ज़िक्र व अज़कार, तिलावत-ए-कुरान, इस्तगफार और दुआ में मशगूल रहना चाहिये।

एतेकाफ़ में मनाही
एतेकाफ़ के दिनों में दोस्तों की झुंड के साथ, दुनियावी कामों में मशगूलियत रहने, मोबाइल पर लगे रहने, वाहियात और इधर उधर की बातों में वक्त काटने से बचना चाहिये।

आखिर में…
अल्लाह से दुआ है कि आखिरी अशरह में ज़्यादा से ज़्यादा मेहनत, इबादत और दुआ की तौफीक दे। शब-ए-कद्र में बेदारी और उसकी बरकत से नवाज़े और एतेकाफ़ की तौफीक अता फारमाए।

(लेखक उर्दू अरबी फारसी यूनिवर्सिटी में ज़ेरे-तालीम हैं, संपर्क- 08090805596)