एडवोकेट असद हयात
इस उन्वान का मतलब तो आप बखूबी समझ रहे होंगे। यही हालत मुस्लिम लीडरों और उनके नेतृत्व वाले राजनीतिक दलों की है। पहले क़ौमी एकता दल (मुख़्तार अंसारी) ने सपा से समझौता करना चाहा तो अखिलेश यादव नहीं माने और बिल-आखिर उनको मायावती की बसपा में विलय करना पड़ा। उस के बाद उलेमा कॉउंसिल बसपा के पक्ष में आयी मगर मायावती जी को वह नहीं सुहाई। अब गोरखपुर चुनाव में पीस पार्टी ने सपा से हाथ मिलाया है।
असदुद्दीन ओवैसी साहब और ये सभी तीनों यूपी की उपरोक्त पार्टियां आपस में मिलकर नहीं बैठ सके और सपा, बसपा , कांग्रेस में किसी के साथ यूपी में जाना चाहते हैं। ये सभी पार्टियां इनको अपने झंडे और चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने को कहती आयी हैं और आइंदा भी यही कहती रहेंगी।
मैं दिल से मुस्लिम क़यादत का हामी हूँ और इन पार्टियों का आपसी तालमेल न होना मुझे निराश करता है। राजनीति में चुनाव लड़ना आप के वजूद के लिए ज़रूरी है। इसी से आपका संगठन और पहचान बनती है। मगर चुनाव के समय मैदान छोड़ देना और एक समर्थक पार्टी बन जाना तो आत्महत्या के बराबर है। अगर आप में ताक़त नहीं हैं तो समर्थक बने रहिये मगर कब तक ?
अक्सर इल्ज़ाम लगता है कि चुनाव लड़ने वाला दल बीजेपी का एजेंट हो गया है। मैं इस इल्ज़ाम का पुरज़ोर विरोध करता हूँ। अगर कोई आप को बीजेपी का एजेंट बता रहा है तो पलट कर उसी से पूछिए कि वो किसका एजेंट है ?
अभी 3 -4 दिन पहले इलाहाबाद में एक सेमिनार आयोजित हुई। कनाडा में रहने वाले एक मुस्लिम आलिम साहब आज के हालात पर तक़रीर कर रहे थे। उनके निशाने पर थे ओवैसी साहब और दूसरे मुस्लिम क़यादत वाले दल। उन्होंने कहा कि एक मुस्लिम मंच को बीजेपी ने बनवाया है जो तेज़ी से मुसलमानों में घुसपैठ कर रहा है तो दूसरी तरफ ये मुस्लिम पार्टियां हैं जो वोट को तकसीम कर रही हैं। उनका कहना था कि मुसलमान 10 साल अपनी पार्टियां न बनायें।
प्रोग्राम के बाद मैंने उनसे पूछा कि मुस्लिम मंच तो बीजेपी का है, और ये मुस्लिम पार्टियां हैं वोट कटवा तो ये बताइये कि जो 1947 के बाद से आज तक मुसलमानों को अपनी क़यादत न खड़ी करने को कह रहे हैं, वो किसके एजेंट हैं ? आखिर अब ये भी तय हो ही जाये।
मुस्लिम सियासत और क़यादत बिना सियासी मिशन बनाये और पूरी तरह समर्पित हुए बिना खड़ी नहीं होगी। ये पार्ट टाइम जॉब की तरह नहीं चलेगी और ऐसे भी नहीं कि चुनाव में खुद उम्मीदवार न उतार कर समर्थन देकर धर बैठ जाओ। याद रखना कि जब सामान्य चुनाव होंगे तब ये दल आपको सीट नहीं देंगे और आप को अपने झंडे और टिकट पर लड़ने को कहेंगे और अभी तो आप इनका समर्थन कर ही रहे है।
मैं इस नीति का समर्थक हूँ कि किसी पार्टी को अन्य पार्टियों का समर्थन तब करना चाहिये जब हाथों-हाथ उसको कुछ राजनीतिक लाभ मिल रहा हो वरना तो कहावत वही है कि शिकारी अपना शिकार खेलेगा और आप लोथ उठायेंगे। आज कोई राजनीतिक लाभ आप को नहीं मिलता दिख रहा है और जिस को आप समर्थन दे रहे हैं वह कल बदलने वाला है जैसा उसने हमेशा किया है।
मेरा मानना है कि अपनी शक्ति, अपना संगठन बनाइये और आपसी बिखराव ख़त्म कीजिये। अब जो हुआ सो हुआ, आगे की सुध लो वरना न हरि भजन ही होगा न ओटने को कपास मिलेगी।
(असद हयात सामाजिक कार्यकर्ता और वकील हैं। वो पूरे देश में मुस्लिमों पर होने वाली मोब लिंचिंग समेत कई घटनाओं में पीड़ितों की मदद कर रहे हैं। असद हयात उस टीम के हिस्सा हैं जिन्होंने यूपी सीएम आदित्यनाथ के खिलाफ केस किया है)