पीएनएस टीम की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
अम्बेडकरनगर, यूपी
प्रदेश की योगी सरकार भले ही लाख दावे करे कि वो भ्रष्टाचार में शामिल किसी भी अधिकारी या कर्मचारी नही छोड़ेगी लेकिन इसके उलट ज़िले में भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुंच गया है। यहां कुछ अधिकारियों ने मिलकर ग्रामसभा का 7 लाख रूपया डकार लिया और शिकायत होने के बाद भी अधिकारी और कर्मचारी खुलेआम मस्त घूम रहे हैं। प्रशासन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहा हैं, उलटे शिकायतकार्ताओं को केस वापस लेने की धमकी दी जा रही है। इस पूरे मामले पर ज़िले के बड़े अधिकारी मौन साधे हुए हैं।
क्या है पूरा मामला
ज़िला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर तहसील आलापुर, विकासखंड रामनगर में हुसैनपुर मुसलमान नामक ग्रामसभा हैं। इस ग्राम सभा में महिला ग्राम प्रधान शम्स कमर चुनाव में जीत हासिल करके प्रधान बनी। मार्च 2018 में कुछ वित्तीय अनियमितता के वजह से उनके समस्त वित्तीय निलंबित कर दिए गए और प्रशासन ने अधिकार अपने पास रख लिया।
ज़िलाधिकारी ने बनाई समिति
ग्रामसभा में वित्तीय कामकाज की देखरेख के लिए ज़िलाधिकारी ने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया। ये समिति गांव के विकास कार्य के लिए आवंटित धन का खर्च का कार्य देख रही थी। तीन सदस्यीय टीम में ग्राम पंचायत के निर्वाचित सदस्यों संतराम, मनोज कुमार और नौशाद अहमद को शामिल किया गया। टीम का नेतृत्व नौशाद अहमद और ग्रामसभा सचिव शरद चंद कर रहे थे।
सरकारी पैसे के गबन की शिकायत
लगभग एक साल बाद समिति के दो सदस्यों संतराम और मनोज कुमार ने एक हलफनामा ज़िलाधिकारी को दिया। इस हलफनामा में दोनों सदस्यों ने आरोप लगाया कि समिति का नेतृत्व कर रहे पंचायत सदस्य नौशाद अहमद और ग्रामसभा सचिव शरद चंद ने उनके फर्जी हस्ताक्षर बनाकर ग्रामसभा के एकाउंट से करीब 7 लाख रूपये बैंक से निकाल कर गबन कर लिया। ये पैसा बैंक मैनेजर संदीप चौधरी की मिलीभगत से 20 चेक के ज़रिए निकाला गया।
बैंक मैनेजर पर आरोप
दरअसल ग्रामसभा समिति के सदस्यों संतराम और मनोज कुमार ने एक प्रार्थना पत्र 9 फरवरी 2019 को बैंक ऑफ बड़ौदा, ब्रांच न्योरी चौराहा, अंबेडकरनगर को दिया, जहां ग्राम पंचायत का खाता था। इस प्रार्थना पत्र में करीब 20 चेक के ज़रिये 4 लाख रूपये फर्जी हस्ताक्षर के ज़रिये निकाले जाने की शिकायत की गई थी। इसके साथ ही बैंक मैनेजर संदीप चौधरी से प्रर्थना पत्र देकर मांग की कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती तब तक ग्रामसभा के खाते से धनराशि की निकासी पर रोक लगाई जाए। दोनों शिकायतकर्ता ने ये बताया कि बैंक मैनेजर से कहा गया कि उनके सामने अगर कोई चेक आती है तो उसमें उनके फर्जी हस्ताक्षर होंगे। इसके बावजूद बैंक मैनेजर संदीप चौधरी ने ग्रामसभा सचिव शरद चंद, सदस्य नौशाद अहमद की मिलीभगत से चेक के जरिये से करीब 3 लाख रूपये की निकासी कराई गई। इस धनराशि को तीनों लोगों द्वारा गबन करने का आरोप हैं। इस तरह करीब 7 लाख रूपये सरकारी खाते से गबन किया गया।
मुख्यमंत्री से हुई शिकायत
इस संबंध में आरटीआई कार्यकर्ता डॉ मो अनीस सिद्दीकी ने मुख्यमंत्री के जनसुनवाई पोर्टल पर 22 अप्रैल 2019 को लिखित शिकायत दर्ज कराई। मुख्यमंत्री पोर्टल की कार्रवाई के बाद मो आरिफ, खंड विकास अधिकारी, रामनगर, अंबेडकरनगर ने बैंक ऑफ बड़ौदा को एक पत्र भेजकर इस मामले में हस्ताक्षर का मिलान करने को कहा।
बैंक मैनेजर ने झूठी रिपोर्ट लगाई
बैंक ऑफ बड़ौदा, न्योरी ब्रांच के मैनेजर ने तथ्य की परख जांच की जगह खुद ही एक रिपोर्ट खंड विकास अधिकारी को भेज दी जिसमें हस्ताक्षर के मिलने की बात कही गई। दूसरी तरफ दोनों शिकायतकर्ता के शिकायत और समस्त आहरण रोकने के प्रार्थना पत्र देने के बाद भी 3 लाख रूपये खाते से निकाले गए। ये पैसे बगैर बैंच मैनेजर की मिलभगत के नहीं निकाले जा सकते।
अब तक कोई एफआईआर नहीं
इस मामले में ज़िले के सभी अधिकारी हीलाहवाली कर रहे हैं। ऊपर से लेकर नीचे के अधिकारियों तक जांच में कोई रुचि नहीं दिखाई जा रही है। यही नहीं संबंधित लोगों को बचाने के लिए पैतरेबाज़ी भी शुरु हो गई है। एक तरफ समिति के दो सदस्यों ने फर्जी हस्ताक्षर करके सरकारी धन को निकाले जाने की शिकायत लिखित रूप ज़िलाधिकारी के समक्ष की है। ऐसे में आरोपी ग्रामसभा सचिव शरद चंद और समिति सदस्य नौशाद अहमद के खिलाफ अब तक सरकारी धनराशि के गबन व अन्य धाराओं के तहत एफआईआर क्यों नहीं दर्ज कराई गई।
बैंक मैनेजर की भूमिका संदेह के घेरे में
बैंक मैनेजर संदीप चोधरी की भूमिका संदेह के घेरे में हैं। इसके खिलाफ स्थानीय लोगों में काफी आक्रोश है। कई शिकायतों के बाद भी इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है, जबकि उनकी संलिप्तता साफ नज़र आ रही है। यही नहीं शिकायत पत्र मिलने के बाद भी फर्जी तरीके से भुगतान होने पर बैंक की तरफ से भी एक एफआईआर होनी चाहिए थी लेकिन वो भी नहीं है।
एक दूसरे को बचा रहे हैं अधिकारी
इस मामले में एक तरफ पीड़ित और शिकायतकर्ताओं के धमकाया जा रहा है, वहीं आरटीआई कार्यकर्ता डॉ मो अनीस सिद्दीकी को मामले से हटने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। ये मामाल पूरी तरह से भ्रष्टाचार से संबंधित है और खुलेआम सरकारी धन का घोटाला हुआ है। इस मामले में शिकायतकर्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि इस मामले में उच्चस्तरीय जांच करा के संबंधित अधिकारियों और संलिप्त लोगों को जेल भेजा जाए। सरकारी धनराशि की वसूली उनकी निजी प्रापर्टी से की जाए। मामले में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाए।