साल 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों के सिलसिले में बीते दो सालों में चले हत्या के 10 मुकदमों में अदालतों ने सभी आरोपियों को छोड़ दिया है। इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि हत्या के चश्मदीद गवाहों (जिनमें अधिकांश मारे गए लोगों के संबंधी थे) के अपने बयानों से मुकरने के बाद अदालत ने सभी 10 मुकदमों के आरोपियों को रिहा कर दिया। इन दंगों में 65 लोग मारे गए थे। इन सभी मुकदमों को पूर्व अखिलेश यादव सरकार के कार्यकाल में दायर किया गया था। इनकी जांच भी अखिलेश यादव सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई हालांकि इनकी सुनवाई वर्तमान योगी सरकार के कार्यकाल में चल रही थी।
जनवरी 2017 से इस साल फरवरी तक चले इन मुकदमों के रिकॉर्ड, गवाहों के बयानों की विस्तृत पड़ताल और मुकदमें में शामिल अधिकारियों से बातचीत के बाद अखबार ने लिखा है कि अभियोजन पक्ष के पांच गवाह अदालत में इस बात से मुकर गए कि अपने संबंधियों की हत्या के वक्त मौके पर मौजूद थे। वहीं छह अन्य गवाहों ने अदालत में कहा कि पुलिस ने जबरन खाली कागजों पर उनके हस्ताक्षर लिए। अखबार के अनुसार, पांच मामलों में हत्या में इस्तेमाल हुए औजार को पुलिस ने अदालत में पेश नहीं किया। इतना ही नहीं अभियोजन पक्ष ने पुलिस की इन सभी बातों को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया। इस तरह सभी आरोपी अदालत से छूट गए।
साल 2017 के बाद दंगों से जुड़े 41 मामलों में मुजफ्फरनगर की स्थानीय अदालतों ने फैसला सुनाया है और हत्या से जुड़े सिर्फ एक मामले में सजा सुनाई है। इनमें भी 40 मामलों में ऐसे आरोपी छूटे हैं जिन पर मुस्लिम समुदाय पर हमले करने के आरोप थे। जिस एक मामले में मुजफ्फरनगर की सत्र अदालतों ने इस साल 8 फरवरी को सजा सुनाई है, उसमें 27 अगस्त, 2013 को कवल गांव में हुई वह घटना शामिल है जिसमें सचिन और गौरव दो भाइयों की हत्या हुई थी। इस हत्या के आरोप में अदालत ने मुज़म्मिल, मुजस्सिम, फुर्कान, नदीम, जहांगीर, अफज़ल और इकबाल को सजा सुनाई है।
अखबार ने लिखा है कि हत्या से जुड़े 10 मामलों में 53 लोगों को सीधे सीधे रिहा कर दिया गया। इसके अलावा सामूहिक बलात्कार के 4 और दंगों के 26 मामलों में भी किसी आरोपी को सजा नहीं मिल सकी। अखबार के अनुसार, राज्य सरकार इस मामले में दोबारा अपील नहीं करेगी। इंडियन एक्सप्रेस ने जिला सरकार के वकील के हवाले से लिखा है कि चूंकि आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट गवाहों के बयानों पर आधारित थी और गवाह अदालत के सामने अपने बयानों से मुकर गए, इसलिए सरकार रिहा हुए आरोपियों के संबंध में कोई अपील नहीं करेगी।