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17 Oct 2024, Thu

बंटवारे के बाद इतिहास के घोर संकट से गुज़र रहा है देश

पूर्व आईपीएस ध्रुव गुप्त के फेसबुक वाल से

DHRUV GUPT SOCIAL MEDIA ON JHARKHAND LYNCHING 2 220517

कभीं गोरक्षक गुंडों द्वारा गोहत्या के संदेह में मुसलमानों की हत्या, कभी बच्चा चोर के संदेह में अराजक भीड़ द्वारा मुसलमानों की हत्या, कभी लव जेहाद के नाम पर मुसलमानों के घरों पर भीड़ का हमला ! पिछले तीन सालों में भीड़ के हाथों दर्ज़नों मुसलमानों की बर्बर हत्याएं हो चुकी हैं।

केंद्र और राज्य सरकारों की तमाम चेतावनियों के बावजूद सांप्रदायिक हत्याओं का यह सिलसिला बेरोकटोक ज़ारी है। सरकार और पुलिस निरीह बनी हुई है। गौरतलब है कि ऐसी घटनाएं ज्यादातर भाजपा शासित राज्यों में ही घट रही हैं। यह दहला देने वाला मंज़र है। लोकतंत्र को धर्मान्धों के भीडतंत्र में बदलता देखना आज के भारत की सबसे बड़ी त्रासदी है। इसने सिर्फ मुसलमानों को ही नहीं, देश के हर संवेदनशील व्यक्ति को आतंक से भर दिया है।

तीन दिनों पहले झारखण्ड के शहर जमशेदपुर के पास बच्चा चोर के अफवाह में चार पशु व्यापारी मुस्लिम युवाओं की नृशंस हत्या से देश अभी सकते में है। वैसे इस घटना को कुछ लोग झारखंड में बाहरी बनाम मूलनिवासी विवाद से जोड़कर भी देख रहे हैं ! सोचकर देखें तो पिछले तीन सालों से चल रहा हत्याओं का यह सिलसिला अप्रत्याशित नहीं है। भाजपा और उसके सहयोगी कट्टर हिन्दू संगठनों की लंबी कोशिशों का यह नतीजा है।

पिछले तीन दशकों से राजनीतिक लाभ के लिए कभी राममंदिर के नाम पर, कभी गोहत्या के नाम पर, कभी लव जेहाद के नाम पर मुसलमानों से नफ़रत की जो घुट्टी बहुसंख्यकों को पिलाई जाती रही है, उसके नतीजे कभी न कभी तो सामने आने ही थे। केंद्र और कई राज्यों में भाजपा की सरकार आने के बाद दशकों से जमें इस नफ़रत का विस्फोट हुआ है। गोरक्षक सेना, हिन्दू सेना जैसे उग्र हिन्दू संगठन बेलगाम हो चले हैं।

मानवता की बेहतरी के लिए बने धर्म मनुष्य को दरिंदों में भी तब्दील कर सकते हैं, यह हमने पाकिस्तान, सीरिया, इराक और कुछ दूसरे इस्लामी मुल्कों में देखा है। अब विविधता में एकता की बड़ी मिसाल रहे अपने भारत में भी देख रहे हैं। धार्मिक वर्गीकरण को तेज कर सत्ता के अपने लक्ष्य तक पहुंची भाजपा की सरकारें अब अपने राज्यों में अब शांति-व्यवस्था क़ायम करने की कोशिशें ज़रूर कर रही हैं,लेकिन नफ़रत का यह विस्फोट जल्दी थमता हुआ नहीं दिख रहा है।

आप मानें या न मानें, बंटवारे के बाद हमारा देश अभी अपने इतिहास के सबसे बड़े संकट से गुज़र रहा है। मानसिक और भावनात्मक तौर पर यह देश फिर विभाजित हो चुका है। संप्रदायों के बीच परस्पर अविश्वास गहरा हुआ है। वोट बैंक की राजनीति करने वाली किसी सरकार या विपक्षी दलों से कोई उम्मीद नहीं रही। देश के सोचने-समझने वाले लोगों को ही अब आगे आना होगा। समय रहते हालात को बदलने की ईमानदार और गंभीर कोशिशें नहीं हुईं तो देश के कई और भौगोलिक विभाजन भी देखने होंगे हमें।

(लेखक ध्रुव गुप्त आईपीएस अधिकारी रहे हैं। वे हमेशा ज्वलंत विष्यों पर बेबाक लिखते रहे हैं)