अलीगढ़, यूपी
एसजीपीआई के एक प्रतिनिधिमंडल ने कासगंज में 26 जनवरी को दंगाइयों की भीड़ के शिकार हूए मोहम्मद अकरम और नौशाद से अस्पताल जाकर मुलाकात की। अकरम पीली से अलीगढ़ अपनी कार से आ रहे थे जिन्हें कासगंज में दंगाइयों ने बुरी तरह से पीटा और उनकी एक आँख फोड़ दी जबकि नौशाद को गोली लगी है। इनका उपचार जे एन मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में हो रहा है। एसजीपीआई टीम के नेतृत्व डॉ निज़ामुद्दीन खान ने किया।
डॉ निज़ामुद्दीन ने बताया कि नौशाद अहमद की उम्र लगभग 32 साल है। नौशाद मजदूरी करने वाले गरीब परिवार से आते हैं। आमतौर पर जिस दिन काम मिल जाता है 200- 400 रुपये तक कमा लेते हैं। कई बार काम नहीं मिलने पर दिन ऐसे ही बेकार जाता है। नौशाद के तीन बेटियां हैं जिनमें से एक पढ़ने जाती है और दो अभी छोटी हैं। नौशाद अहमद 26 जनवरी के दिन अपने घर से बाज़ार की दुकान जहां वे काम करते हैं गए थे।
नौशाद ने टीम को बताया कि सुबह तकरीबन 9 बजे एक बड़ा जुलूस भगवा झंडे के साथ जय श्रीराम के नारे लगते हुए शहर में घूम रहा था। उनका कहना है कि इस तरह का जुलूस हमने पहले कभी 26 जनवरी को नहीं देखा था। नौशाद जब दुकान पर पहुंचे तो दुकान बंद थी। इसलिए वे वापस अपने घर की तरफ लौटने लगे। वे अपने घर की तरफ लौट ही रहे थे उन्हें रास्ते में पुलिस दिखाई दी। वे अपने घर की तरफ बढ़ रहे थे लेकिन तभी पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। नौशाद के मुताबिक़ पुलिस बिल्कुल सामने से फायरिंग कर रही थी। इसी फायरिंग में एक गोली उनके दाएं पैर में जाँघों को पार करते हुए निकल गई।
नौशाद ने बताया कि इसमें एटा के सांसद राजवीर सिंह उर्फ़ राजू ने पुलिस को न सिर्फ इस्तेमाल किया बल्कि उन्हीं के संरक्षण में सांप्रदायिक हिंसा भी शुरू हुई। नौशाद के मुताबिक कासगंज में 1990 के बाद से कभी कोई साम्प्रदायिक हिंसा नहीं हुई। इस बार घटना का कोई तात्कालिक कारण नहीं था बल्कि जान-बूझ कर हिंसा फैलाई गई। इसमें पुलिस प्रशासन की भूमिका संदिग्ध है। उनका कहना है कि सच अब निष्पक्ष जांच से ही सामने आएगा।
दूसरी तरफ मोहम्मद अकरम जो लखीमपुर से अलीगढ़ आ रहे थे। वो रास्ता पूछने के लिए रुके वैसे ही उनको देढ़ी में देखकर हमला कर दिया गया। इस हमले में उनकी दाई आँख की रोशनी चली गई। उनके परिवार और बेटी को बड़ी मुश्किल से छोड़ा गया।