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18 Oct 2024, Fri
VED PRATAP VAIDIK ON SUPREME COURT JUDGES 1 130118
Senior Journalist Ved Pratap Vaidik

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

नई दिल्ली
सर्वोच्च न्यायालय के चार जजों ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की खुले-आम आलोचना की। ऐसी घटना न्यायपालिका के इतिहास में पहले कभी नहीं घटी। ये चारों जज वरिष्ठ हैं। उनमें से एक शीघ्र ही चीफ जस्टिस बनने वाले हैं। इन जजों को लोकतंत्र के चौथे खंभे- पत्रकारिता- का सहारा क्यों लेना पड़ा ? उन्होंने यह क्यों कहा कि आज हम खुलकर नहीं बोलते तो भावी पीढ़ियां हमसे पूछतीं कि हमने अपनी आत्मा को क्यों बेच दिया ? इससे भी अधिक गंभीर बात उन्होंने पत्रकारों के बीच यह कही कि सर्वोच्च न्यायालय का काम-काज आजकल जिस तरह से चल रहा है, वह भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा है। इन जजों ने उस पत्र को भी सबके सामने रख दिया है, जो उन्होंने चीफ जस्टिस मिश्रा को लिखा था।

इन जजों के बयान और उस पत्र को पढ़ने पर ऐसा लगता है कि इन जजों को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की ईमानदारी पर शक है। राष्ट्रगान के मामले में शीर्षासन करके जस्टिस दीपक मिश्रा अपनी किरकिरी पहले ही करवा चुके हैं। चारों जजों ने आरोप लगाया है कि जस्टिस मिश्रा कई गंभीर मामलों को कनिष्ठ जजों को संभला देते हैं, कुछ मामलों में अचानक हस्तक्षेप करने लगते हैं। कुछ मामलों में निष्पक्ष जांच बिठाने में कोताही इसलिए करते हैं कि उनका संबंध देश के सत्तारुढ़ नेताओं से है। इन जजों ने कुछ मुकदमों के नाम भी ले लिए हैं और कुछ का नाम लिए बिना ही सब कुछ उघाड़कर रख दिया है। सरकार का कहना है कि यह न्यायपालिका का आतंरिक मामला है। वह क्या करे ?

इस मामले ने न्यायपालिका और कार्यपालिका (सरकार) दोनों की इज्ज़त को पैंदे में बिठा दिया है। हमारी न्यायपालिका जैसी भी है, उसकी इज्जत किसी तरह अभी तक बची हुई थी। यह घटना उसके लिए बहुत बड़ा धक्का है और बेहद दुखद है। सरकार की तटस्थता सरकार को बहुत मंहगी पड़ेगी। यह माना जाएगा कि वह न्यायिक भ्रष्टाचार पर आंख मूंदे हुए हैं या उसकी पीठ ठोक रही है। विधि मंत्रालय को तुरंत हस्तक्षेप करके जजों के दोनों पक्षों में तुरंत संवाद करवाना चाहिए, वरना या तो मुख्य न्यायाधीश मिश्रा को इस्तीफा दे देना चाहिए या इन चारों जजों को ! लोकतंत्र का यह तीसरा स्तंभ यदि कमजोर हो गया तो भारतीय लोकतंत्र को ढहने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। पहले दो स्तंभों- संसद और सरकार- पर तो लोगों का भरोसा पहले ही डिगा हुआ है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और सम-सामयिक मामलों पर लिखते रहते हैं)