इकबाल अहमद
मुंबई, महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में दलितों के खिलाफ हिंसा के बाद दलित आंदोलन ने जन जीवन ठप कर दिया है। बसों में आग लगा दी गई और ट्रेन रोक दी गई। आम लोग घंटों ट्रॉफिक में फंसे रहे। करोड़ों की संपत्ति बर्बाद हुई और करोड़ो कारोबार प्रभावित हुवा। समाज में वैमनस्यता बढ़ी। राज्य की बीजेपी सरकार इस घटना रोकने में पूरी तरह विफल साबित हुई। सरकार अगर सचेत होती तो इतना सब कुछ नही होता और वक्त से पहले इसे रोका जा सकता था।
आप को बता दे कि पुणे के नजदीक भीमा कोरेगांव एक ऐतिहासिक स्थल है, जहां पर हर साल दलित समाज के लोग 1818 की मराठा एंग्लो द्वितीय युद्ध की जीत का जश्न मनाते है। इतिहासकार के अपने अपने तर्क हैं, अलग-अलग ढंग से उस घटना को पेश किया जाता है। सच्चाई इतिहास के पन्नों में दफ़न है, लेकिन दलित समाज इसे अपनी शौर्यगाथा के रूप में याद करता है।
इस साल 200 साल पूरे हो रहे थे तो बड़ी तादाद में दलित समाज ने जश्न के लिए कार्यक्रम रखा था। जिसमें महाराष्ट्र के सभी बड़े दलित विचारक लेखक सभी सामाजिक संगठनों को और उसके साथ-साथ गुजरात में दलित आंदोलन के युवा नेता गुजरात चुनाव में जीत कर आए विधायक जिग्नेश मेवानी और जेएनयू आंदोलन से प्रसिद्ध हुए उमर खालिद, रोहित वेमुल्ला की मां को भी निमंत्रण दिया गया था। इस कार्यक्रम में सभी ने अपने विचार रखे और देश में हो रहे दलितों पर अत्याचार के खिलाफ सब ने आवाज उठाई।
कार्यक्रम चल चल ही रहा था तभी अकस्मात एक घटना घटती है। कुछ हिंदूवादी संगठन जिन पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, उन लोगों ने पीछे हमला बोल दिया। दलितों को मारा पीटा गया और गाड़ियों में आग लगा दी गई। कार्यक्रम स्थल पर भगदड़ मच गई। सोशल मीडिया से यह खबर महाराष्ट्र के अलग-अलग कोनों में पहुंच गई। दलित समुदाय सड़कों पर उतर आया और जगह-जगह आंदोलन होने लगे। रास्ता रोक दिया गया, बसों में आग लगा दी गई संपत्ति का नुकसान हुआ। लोग अपने घरों को नहीं पहुंच पाए। इन सब में के पीछे अगर कोई जिम्मेदार हैं तो वह महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार।
महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार का यह पूरी तरह से नाकारापन और निकम्मा है। सरकार को पूर्व नियोजित कार्यक्रम का पता था। उन्हें यह भी पता था कि वहां लाखों लोग इकट्ठा होने वाले हैं। उन्होंने सुरक्षा के बंदोबस्त क्यों नहीं किए ? उनकी गुप्तचर एजेंसी पूरी तरह से फेल साबित हुई। लोकतंत्र में सभी को अपने कार्यक्रम करने जश्न मनाने अपने ढंग से जीने और रहने का हक है, परंतु कुछ लोग अपनी मनमानी कर रहे हैं जो कानून को खुद से ऊपर समझते हैं। वो लोग बड़ी तादाद में जब भगवा झंडा लेकर कार्यक्रम स्थल की तरफ बढ़ रहे थे तभी प्रशासन ने सख्ती से काम लिया होता तो महाराष्ट्र में आज अशांति ना फैली होती।
दलित पार्टियों के सभी गुट ने 3 जनवरी को महाराष्ट्र बन्द का एलान किया था। महाराष्ट्र सरकार ने भी फौरन आदेश देकर प्रदेश के सभी स्कूल कालेज बन्द करने का फरमान जारी कर उनके सामने घुटने टेक दिए। आंदोलन में सबसे ज़्यादा शिकार होती है महाराष्ट्र राज्य परिवहन। राज्य में हिसां के बाद आगजनी में परिवहन की 100 से ज़्यादा बसों को जला दिया गया। कल बस की सेवा पूरी तरह बंद रखी गई।
महाराष्ट्र सरकार के मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस जिनके पास गृह मंत्रालय भी है वो पूरी तरह से असफल साबित हुए है। मुख्यमंत्री फणनवीस ने जांच के आदेश दिए है परंतु दलित नेताओं ने हाईकोर्ट के जज से जांच की मांग रखी है। इस मामले मे बीजेपी के सभी बड़े नेता कुछ भी कहने से बचते नज़र आये। मीडिया का एक वर्ग दलित को ही कटघरे में खड़ा कर दुसरों को बढ़ावा दे रहा है। बन्द के आह्वान पर मुम्बई के सभी काम काज ठप रहे। पुणे, नागपुर, गोंदिया, चंद्रपुर, यवतमाल, ठाणे सहित दर्जनों ज़िले बुरी तरह प्रभावित हुए है। पोलिस और सरकार खामोश तमाशाई बने रहे है।
अब सवाल ये है कि जब यह आयोजन सालों से होता आया है तो अचानक अब ये कार्यक्रम देश विरोधी कैसे हो गया। मीडिया का बड़ा तबका दलितों के दोषी क्यों बता रहा है। दूसरी तरफ वह हिंसा की शुरुआत करने वाले संगठन के नेता को बचाने पर क्यों तुला है। एब देखना ये है कि जांच में क्या सामने आता है लेकिन एक बात तो तय है कि राज्य सरकार इस मामले में कत्तई ईमानदार नहीं रही।
(इकबाल अहमद लखनऊ यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता के छात्र रहे हैं। उनसे मेल आई iqbal.mpcc@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता हैं)