उर्मिलेश उर्मिल की फेसबुक वाल में
नई दिल्ली
भीमा-कोरेगांव की पेशवा-राज विरोधी निर्णायक लड़ाई की याद में दलित संगठनों द्वारा आयोजित शौर्य दिवस से नाराज़ मनुवादियों के एक भगवाधारी गिरोह ने विजयोत्सव में शामिल होने आ रहे दलित समुदाय के कुछ लोगों पर हमला कर दिया। इसमें अभी तक एक व्यक्ति के मारे जाने की सूचना है। कई दलित युवक बुरी तरह घायल हैं। लेकिन मुख्यधारा मीडिया के बड़े हिस्से ने शौर्य दिवस और उसके बाद दलितों पर मनुवादी गिरोहों के हमले की खबर तक नहीं दी। मंगलवार को जब दलित संगठनों ने मुंबई में प्रतिरोध प्रदर्शन किया तो कुछेक अंग्रेजी चैनलों ने खबर चलाई पर इन खबरों में भी दलितों को हिंसा और शांति भंग करने के आरोपी के तौर पर पेश किया। और कोरेगांव के हमलावरों पर ख़ामोशी !
आखिर भगवाधारी हमलावरों के उपद्रव और हिंसा पर उस दिन शासन और मीडिया ने क्यों खामोशी बरती ? अगर उसी दिन शासन ने ठोस कदम उठाया होता तो मुंबई में दलित प्रदर्शन की नौबत ही नहीं पैदा होती! मुंबई में आज 100 से अधिक दलित कार्यकर्ताओं के हिरासत में लिये जाने की खबर है। भीमा-कोरेगांव इलाके के भगवाधारी मनुवादी गिरोह के कितने सदस्य हिरासत में लिये गये थे ?
हिंदी के ज्यादातर चैनल तो इस खबर पर देर शाम तक खामोश रहे। वे हर शाम की तरह एक ही भजन गा रहे थे और मृदंग की तरह बज रहे थे ! ऐसा क्यों करता है हमारा मुख्यधारा मीडिया ?
इसका जवाब हमारे ‘मीडिया के बादशाह’ नहीं देंगे क्योंकि वे इस सच को छुपाते हैं कि भारतीय मीडिया के निर्णयकारी पदों पर 88 फीसदी से ज्यादा लोग एक ही वर्ण के हैं! उनमें ज्यादातर ‘पेशवाई मानसिकता’ के हैं। संविधान की मजबूरी है कि 200 साल पहले के अपने पूर्वजों की तरह नंगी क्रूरता नहीं दिखाते। पर छल और चालबाजी से वही सब करते हैं! विविधता के अभाव में भारतीय मीडिया ऐसे मामलों में नंगी पक्षधरता दिखाता है! सिर्फ दलितों के खिलाफ ही नहीं, किसानों, मजदूरों, ओबीसी और आदिवासियों के खिलाफ भी!
(उर्मिलेश उर्मिल वरिष्ठ पत्रकार हैं और कई अखबारों और चैनल में संपादक रह चुके हैं)