नई दिल्ली
केरल के तथाकथित लव जिहाद मामले में सुप्रीम कोर्ट में केरल की हदिया की पेशी हुई। हदिया ने कोर्ट में जज से कहा कि वह अपनी आजादी चाहती है। उसका पति उसकी देखभाल करने में सक्षम है। पति के साथ रहकर वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती है। अगली सुनवाई आगामी जनवरी के तीसरे सप्ताह में होगी। कोर्ट के बाहर हदिया ने कहा कि उसने अपनी मर्ज़ी से इस्लाम अपनाया है। इस मामले में जारी तथाकथित लव जिहाद का हल्ला हवा-हवाई साबित हुआ।
सुप्रीम कोर्ट में हदिया ने कहा कि वह अपनी आज़ादी चाहती है। कोर्ट में जज ने उससे पूछा, ‘क्या आप राज्य सरकार के खर्चे पर पढ़ाई जारी रखना चाहती हैं? आपके सपने क्या हैं?’ इस पर हदिया ने कहा, ‘मैं अपने पति से मिलना चाहती हूं। अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती हूं, लेकिन राज्य सरकार के खर्चे पर नहीं। मेरा पति मेरी देखभाल करने में सक्षम है।’ हदिया के इस बयान ने सारे दावों की पोल खोल दी।
हदिया का बयान सुप्रीम कोर्ट में दर्ज होने के बाद उसे पैरेंटल कस्टडी से आज़ाद कर दिया गया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हदिया को अपनी होम्योपैथी की पढ़ाई पूरी करने के लिए तमिलनाडु के सलेम भेजने का आदेश दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने हदिया को सुरक्षा प्रदान करने और जल्द से जल्द उसका सलेम पहुंचना सुनिश्चित करने के लिए केरल पुलिस को निर्देश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हदिया मेडिकल कॉलेज जाएगी और अपनी पढ़ाई को पूरा करेगी। इससे पहले हदिया ने कोर्ट में कहा कि वह नहीं चाहती कि कोई उसका लोकल गार्जियन बने। पिछले 11 महीने उसे गैरकानूनी ढंग से कस्टडी में रखा गया है। लेकिन कोर्ट ने सलेम स्थित होम्योपैथिक कॉलेज के डीन को हदिया को संरक्षक नियुक्त किया है। कोर्ट ने उन्हें किसी भी परेशानी की स्थिति में कोर्ट आने की छूट दी है।
हदिया के पिता का आरोप
इस मामले में हदिया के पिता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सत्या सारणी नामक संस्था युवाओं में कट्टरपंथी विचारधारा डालकर उनका धर्म परिवर्तन करा रहा है। शफीन जहां फेसबुक के ज़रिए लोगों से संपर्क करता है। उनका धर्म परिवर्तित कराता है। इस मामले की जांच कर रही एनआईए ने भी कहा सत्या सारणी संस्था युवाओं को बरगलाने का काम कर रही है।
हदिया के वकील
हदिया के पति शफीन जहां का कोर्ट में पक्ष रखने आए वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि वह सांप्रदायिक बहस से दुखी हैं। क्या हिन्दू और मुस्लिम के बीच होने वाली शादी की जांच इस तरह कराई जाएगी। कोर्ट को हदिया की बात सुननी और समझनी चाहिए। उसकी इच्छानुसार उसे जीने का अधिकार देना चाहिए।