अंबेडकरनगर, यूपी
प्रदेश में कानून व्यवस्था को सुधारने का दावा करने वाली योगी सरकार की पुलिस ही उसके मंसूबे पर पानी फेर रही है। दरअसल सरकारी धन के गबन करने वाले आरोपी को अंबेडकरनगर पुलिस 10 महीने से भी ज़्यादा समय होने के बाद अब तक गिरफ्तार नहीं कर पाई है। दूसरी तरफ आरोपी को न सिर्फ क्षेत्र में लगातार देखा जा रहा है बल्कि खबर यहां तक है कि वह अपनो के बीच बैठकर मीटिंग भी करता है। आरोपी के खिलाफ पुलिस ने चार्जशीट भी दाखिल कर दी है। अब सवाल ये उठता है कि जब गबन के आरोपी को पुलिस गिरफतार नहीं कर पा रही है तो बड़े क्राइम करने वाले अपराधियों को कैसे गिरफ्तार करेगी। ये सवाल आम जनता के जेहन में कौंध रहा है।
कहां का है मामला
ज़िले की आलापुर तहसील में हुसैनपुर मुसलमान गांव में दो प्राइमरी स्कूल, एक उच्च प्राइमरी स्कूल और एक मदरसा इस्लामिया हुसैनपुर मुसलमान मौजूद है। इसी गांव के रहने वाले आरोपी मोहम्मद शाहिद सिद्दीकी उर्फ शाहिद मुनीर पुत्र मोहम्मद मुनीर सिद्दीकी ने कागज़ों पर एक फर्ज़ी मदरसा बनाया और इसका नाम मदरसा शेख बसालत पब्लिक स्कूल रखा। शाहिद मुनीर खुद इस मदरसे का प्रबंधक बन गया। इसके बाद उसने फर्जी मदरसे को कागजों पर संचालित करके छात्रवृत्ति घोटाला किया।
कैसे किया छात्रवृत्ति घोटाला
फर्ज़ी मदरसा संचालित करने वाले शाहिद मुनीर ने अल्पसंख्यक छात्रों को दी जाने वाली वाली छात्रवृत्ति को फर्ज़ी रिकार्ड के आधार पर हासिल कर लिया। जबकि शाहिद मुनीर द्वारा संचालिक मदरसे की न तो कोई बिल्डिंग है और न ही उसके मदरसे में एक भी छात्र शिक्षा ग्राहण कर रहे हैं। शाहिद मुनीर ने अल्पसंख्यक विभाग के स्थानीय अधिकारियों को मिलाकर सौ से ज़्यादा छात्रों की छात्रवृत्ति का पैसा हड़प लिया।
कैसे सामने आया घोटाला
यहीं के रहने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ मोहम्मद अनीस सिद्दीकी ने सूचना के अधिकार के तहत इस मामले पर जानकारी हासिल की तो इस फर्ज़ी मदरसे का भांडा फूट गया। डॉ अनीस ने इस मामले की शिकायत प्रदेश लोकायुक्त के लखनऊ कार्यालय में जून, 2014 में शिकायत दर्ज कराई। लोकायुक्त ने इस पूरे मामले की विस्तार से जांच की।
लोकायुक्त जांच में दोषी
लोकायुक्त ने आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ अनीस की अर्ज़ी पर संबंधित मामले की जांच की। लोकायुक्त ने इस मामले में तत्कालीन ज़िला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी शफीक अहमद, ज़िला वक्फ निरीक्षक जगतराम भारती, मदरसा के प्रबंधक शाहिद मुनीर को दोषी माना। लोकायुक्त ने इस मामले में तत्कालीन ज़िला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी, ज़िला वक्फ निरीक्षक और मदरसा प्रबंधक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का आदेश जुलाई, 2016 को जारी किया।
दर्ज हुई एफआईआर
लोकायुक्त के आदेश के बाद ज़िला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी ने थाना आलापुर में इस मामले की एफआईआर 9 सितंबर 2016 में दर्ज कराई। मामला दर्ज होने के बाद पुलिस ने इस मामले में लगातार ढिलाई की। वह अभियुक्तों के खिलाफ कार्रवाई की जगह उसकी मदद करती रही। मामले में विवेचना होने के बाद मदरसा के प्रधानाचार्य को तो गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन मुख्य अभियुक्त अब भी जेल से बाहर खुलेआम धूम रहा है।
क्यों नहीं हो रही है गिरफ्तारी
दरअसल इस मामले का आरोपी शाहिद मुनीर खुद जन सूचना अधिकार माफिया है और उसके रिश्ते स्थानीय पुलिस अधिकारियों से मधुर हैं। ये बात स्थानीय लोगो की ज़ुबान पर है। शायद यही वजह है कि आलापुर पुलिस शाहिद मुनीर पर अब तक मेहरबान रही है और सरकारी गबन जैसे गंभीर प्रकरण में एफआईआर दर्ज होने के डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी उसे गिरफ्तार नहीं कर पाई।
पीएनएस ने करीब दो महीने पहले भी इस मामले को उठाया था। तब तत्कालीन थानाध्यक्ष आलापुर से ने बताया कि अभियुक्त ने हाईकोर्ट से स्टे ले रखा है। जब पीएनएस टीम ने स्टे ऑर्डर के बारे में पता किया तो पता चला कि इस मामले में अभियुक्त को स्टे मिला था लेकिन 23 मई को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। दरअसल थानाध्यक्ष ने इस मामले में उस समय गुमराह किया था।
पीएनएस का सवाल- पुलिस कब करेगी कार्रवाई
सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर पुलिस अभियुक्त को कब गिरफ्तार करेगी। आखिर पुलिस छापेमारी क्यों नहीं कर रही है। पुलिस आरटीआई एक्टिविस्ट से अभियुक्त के बारे में जानकारी क्यों मांग रही है। इस मामले में सबसे बड़ी बात ये है कि ये मामला पूरी तरह से ज़िले के सभी आलाधिकारियों के संज्ञान में हैं, उसके बावजूद अभियुक्त की गिरफ्तारी क्यों नहीं हो रही है। प्रदेश से भ्रष्टाचर को खत्म करने के लिए कटिबद्ध प्रदेश की योगी सरकार के लिए ये एक खुला चैलेंज है। अब देखना ये है कि सरकार इस मामले में क्या हस्तक्षेप करती है।