दिलीप ख़ान की फेसबुक वाल से
नई दिल्ली
ज़ी न्यूज़ ने माफी नहीं मांगी। आप देख चुके होंगे। NBSA ने ज़ी न्यूज़ को आज रात 9 बजे माफी मांगने को कहा था। साथ में Gauhar Raza के ख़िलाफ़ ग़लतबयानी करने के लिए एक लाख रुपए का ज़ुर्माना भी लगाया था, लेकिन ज़ी न्यूज़ ने ऐसा कुछ भी नहीं किया।
ये कोई पहला वाकया है क्या? दो कहानियां सुनाता हूं। एक बार India TV पर NBA (जिसने NBSA बनाया है) ने किसी को पैनल में बुलाया। नाम था फ़रहाना अली। इंडिया टीवी ने उन्हें पैनल डिसकशन ख़त्म होते ही “पाकिस्तानी जासूस” बता दिया। NBSA में शिकायत दर्ज़ हुई। इंडिया टीवी दोषी पाया गया। ठीक गौहर रज़ा वाले मामले की तरह इंडिया टीवी को दोषी पाया गया। ठीक इसी तरह इंडिया टीवी को माफ़ीनामा प्रसारित करने और एक लाख का ज़ुर्माना भरने कहा गया।
इंडिया टीवी ने क्या किया? इंडिया टीवी NBA से बाहर आ गया। कह दिया कि वो NBA को मानता ही नहीं। अब NBA क्या करता? कुछ नहीं। NBA का फ़ैसला कोई क़ानूनी तौर पर बाध्यकारी नहीं था। NBA एक प्राइवेट संस्था है। चकल्लस के लिए टीवी वालों ने बना रखी है। इंडिया टीवी ने कह दिया कि जाओ मैं तुम्हें नहीं मानता। किसी ने इंडिया टीवी का घंटा नहीं बिगाड़ लिया। बाद में NBA ने ‘ससम्मान’ इस चैनल को अपनी टीम में शामिल किया जो आजतक चल रहा है।
अब दूसरी कहानी सुनिए। एक चैनल था जनमत, जोकि बाद में लाइव इंडिया बना। इसका संपादक था Sudhir Chaudhary. चैनल ने एक फेक स्टिंग ऑपरेशन दिखाया। एक स्कूल टीचर को बदनाम किया कि वो सेक्स रैकेट चलाती हैं। उमा खुराना वाले मामले का भेद खुल गया। हाईकोर्ट में मामला पहुंचा। हाईकोर्ट ने चैनल को महीने भर के लिए बैन कर दिया। चैनल ऑफ़ एयर रहा। यानी पूरी पाबंदी रही।
अब इसी सुधीर चौधरी का एक किस्सा सुनिए। ये आदमी दलाली करता है, ये सब जानते हैं। ज़ी-जिंदल वाले मामले में कैमरे पर रंगे हाथों 100 करोड़ मांगते हुए पकड़ाया है। वसूली का मामला इतना बड़ा हुआ कि इसे तिहाड़ जेल जाना पड़ा। उस वक्त ये आदमी ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन का कोषाध्यक्ष था। BEA ने क्या एक्शन लिया? BEA ने इसे कोषाध्यक्ष पद से हटा दिया, लेकिन मेंबरशिप बरकरार रखी।
बात ज़्यादा पुरानी नहीं, 2012 की है। सुधीर चौधरी का तब से क्या बिगड़ा? घंटा नहीं बिगड़ा।
इसलिए मीडिया में ‘सेल्फ़ रेगुलेशन’ की बातें वाहियात लगती हैं। आपको हर उद्योग में रेगुलेशन चाहिए, लेकिन मीडिया में नहीं!! क्यों भई? आप ख़ुद को होशियारचंद समझतो हैं या फिर आप दलालों को ‘सेल्फ सेंशरशिप’ के नाम पर बचाना चाहते हैं?
फिर आप मुझे कहते हैं कि मैं Shehla Rashid की जगह Republic की साइड लूं? सॉरी दोस्तों, हमसे न हो पाएगा।