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18 Oct 2024, Fri

‘अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ना ज़रूरी हो’

अब्दुल कय्यूम

लखनऊ, यूपी
देश में शिक्षा की स्थिति पर नज़र डाले तो एक तरफ हाईटेक चकोचौंध शिक्षा प्रणाली है तो दूसरी तरफ सरकारी सुस्त और बेतरतीब शिक्षा। दरअसल छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में दलित और आदिवासी समाज की एक बहुत बड़ी आबादी बसती है जो शैक्षिक पिछड़ेपन की मार से जूझ रही है। याहां शिक्षा से पहले भूख की आग लोगों को जला कर भस्म करने पर आमादा है। यह बातें स्टूडेंट्स इस्लामिक आर्गेनाईजेशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय सचिव तौसीफ मेडेकरी ने कही। तौसीफ मेडेकरी राजधानी लखनऊ के यूपी प्रेस क्लब में एसआईओ की “नार्थ इंडिया एजुकेशन मूवमेंट” के तहत होने वाली प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे।

तौसीफ मेडेकरी ने कहा कि भारत ने स्वतंत्रता के बाद शिक्षा के क्षेत्र में काफी प्रगति की है। कई बड़े शैक्षिक संस्थानों की स्थापना हुई है। यहाँ के शिक्षित छात्रों ने हर क्षेत्र में सेवाएं प्रदान की हैं, लेकिन किसी भी सभ्य और विकासशील देश के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि कहना उचित नहीं है और खासकर ऐसे देश के लिए जहां इतनी सारी विशेषताएं और योग्यता पाई जाती हों। प्रेस वार्ता में राष्ट्रीय सचिव तौसीफ मेडेकरी ने शिक्षा के दोनों चरणों प्राथमिक शिक्षा व उच्च शिक्षा की समस्याओं के सिलसिले में बातचीत करते हुए बताया कि प्रारंभिक शिक्षा की स्थिति उस समय ही सुधरेगी जब इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय का पाल किया जाएगा जिसमें कहा गया है कि सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के बच्चों को सरकारी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश अनिवार्य कराया जाए। यदि इसे सख्ती से लागू किया जाए।

तौसीफ मेडेकरी ने केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के बयान की आलोचना करते हुए कहा कि मदरसों को शौचालय और टिफिन की ज़रूरत नहीं बल्कि कुशल शिक्षकों और मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विश्वविद्यालयों में प्रवेश की सुविधा उपलब्ध कराई जाए। ताकि उन्हें उच्च शिक्षा के लिए हैदराबाद और अन्य दूरस्थ क्षेत्रों में जाने की कोई ज़रूरत न हो। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा को लेकर ज़िला स्तर पर विश्वविद्यालयों की स्थापना करें ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले छात्रों को उच्च शिक्षा के अवसर मिल सके।

तौसीफ ने कहा वैसे तो पूरा भारत शैक्षिक समस्याओं से जूझ रहा है, लेकिन उत्तर प्रदेश कुछ अधिक ही इसका शिकार है। सरकार ने इस साल के शैक्षिक बजट में भी भारी कमी हुई है, जिससे शिक्षा प्रभावित होना सुनिश्चित है। स्कूल मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। कहीं शिक्षकों की कमी है तो कहीं किताबों और शैक्षिक उपकरणों की अनुपलब्धता। शिक्षकों को सरकार ने शैक्षणिक गतिविधियों के बजाय दुसरे कामों में व्यस्त कर रखा है। इसकी वजह से उनकी जो महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है वह इससे कोसों दूर हो जाती है। इसका सीधा असर शिक्षा पर पड़ता है। सरकार तो हर साल शिक्षा के नाम पर बजट आवंटित करती है, लेकिन उसका सही इस्तेमाल हुआ।

इस मौके पर एसआईओ के राष्ट्रीय सचिव तौसीफ मेडेकरी के अलावा एसआईओ यूपी सेंट्रल के प्रांतीय अध्यक्ष मोहम्मद आसिफ अकरम, प्रांतीय महासचिव मोहम्मद राशिद, साकिब खान, साजिद खान, बेलाल असगर, मोहम्मद राफे समेत कई लोग मौजूद रहे।