लखनऊ, यूपी
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष बने अखिलेश यादव ने अपना रंग दिखाना शुरु कर दिया है। अखिलेश जहां एक तरफ पार्टी में अपने दुश्मनों को ठिकाने लगा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ वह मुसलमानों को भी पार्टी में अलग थलग कर रहे हैं। पार्टी में नई न्युक्ति को देख कर ऐसा लग रहा है कि वह सॉफ्व हिंदुत्व की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं।
प्रवक्ताओं में एक नाम
सबसे पहले अखिलेश यादव के प्रवक्ताओं की लिस्ट देखें तो राजेंद्र यादव को प्रवक्ता बनाया गया है। वहीं 13 लोगों को टीवी पर पार्टी का पक्ष रखने के लिए प्रवक्ता बनाया गया है उनमें नरेश उत्तम, डॉ मधु गुप्ता, अरविंद सिंह, सुनील सिंह साजन, आनंद सिंह भदौरिया, जगदेव यादव, राजीव राय, जूही सिंह, उदयवीर सिंह, नावेद सिद्दीकी, संजीव मिश्र, पंखुड़ी पाठक और आशीष यादव के नाम शामिल हैं।
इन टीवी प्रवक्ताओं में सिर्फ एक मुसलमान नावेद सिद्दीकी का नाम है, यानी सिर्फ 7 फीसदी हिस्सेदारी। मुसलमानों को 18 फीसदी आरक्षण की बात करने वाली पार्टी 7 फीसदी पर आकर टिक गई। नावेद सिद्दीकी की पहचान सिर्फ अखिलेश के करीबी होना है। टीवी प्रवक्ताओं की लिस्ट देखें तो उनमें सिर्फ अखिलेश जिंदाबाद का नारे लगाने वालों को मौका मिला है। अब देखना ये है कि ये पार्टी का पक्ष कैसे रखते हैं।
प्रदेश कार्यकारिणी में हुए किनारे
पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के अनुमोदन के बाद प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने 70 सदस्यीय प्रदेश कार्यकारिणी का एलान किया है।इसमें 23 सचिव, एक कोषाध्यक्ष और 46 सदस्य हैं। कोषाध्यक्ष पद पर राजकुमार मिश्र पूर्ववत बने रहेंगे जबकि अरविन्द कुमार सिंह प्रदेश सचिव के साथ कार्यालय प्रभारी भी बनाया गया।
23 सचिवों में सिर्फ चार मुसलमानों को जगह दी गई है। इनमें अलीगढ़ से ज़ाहिद किदवई, बहराइच से हाजी मोहम्मद अनवर खां और इलाहाबाद से अब्दुल सलमान खान का नाम शामिल है। इसके बाद काफी जुगाड़ के बाद हाजी डा आरए उस्मानी पूर्व विधायक को प्रदेश सचिव राज्य कार्यकारिणी में नामित किया गया। तमाम दावों के बीच ये हिस्सदारी सिर्फ 4 फीसदी ही है।
समाजवादी पार्टी की राज्य कार्यकारिणी में कुल 46 सदस्य बनाए गएं है। इनमें सिर्फ चार मुसलमानों को जगह दी गई है। इनमें इलाहाबाद के मुस्ताक काजमी, आज़मगढ़ से परवेज अहमद व नफीस अहमद और बरेली से डा ज़ाहिद खान का नाम शामिल है। अब सवाल ये है कि क्या सपा में मुस्लिम नेताओं का टोटा है या फिर अखिलेश की सपा का नया कोई एजेंडा। इतना तो तय है कि पार्टी ने जो भी नाम तय किए हैं वो सोच समझकर तय किए होंगे।
क्यों किनारे हुए मुसलमान
दरअसल पार्टी में विवाद के बाद अखिलेश ने अपनी छवि को अपने पिता और पूर्व सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव से अलग बनाने की कोशिश की है। वह पिता की मुस्लिम हितैषी छवि से बाहर निकलना चाहते है। पार्टी में हुए विवाद के दौरान भी उन्हें चिपे तौर पर आरएसएस और साफ्व हिंदुत्व का समर्थन मिलने की बात सामने आई थी। अब देखना ये है कि ठीक चुनाव से पहले अखिलेश की यह प्रयोग उन्हें दोबारा सीएम की कुर्सी तक ले जाता है कि नहीं।