Breaking
23 Dec 2024, Mon

बिहार चुनाव में मुसलमानों को रिझाने की कोशिश

फ़ैसल रहमानी

गया

बिहार में विधान सभा के चुनाव का बिगुल बजते ही सभी राजनीतिक दल मैदान में कूद पड़े हैं। चुनाव से पहले विकास की बातें करने वाली पार्टिया अब अपने असली मुद्दे पर आ गई हैं। हर तरफ धर्म, बिरादरी, ज़ात-पात, दलित-महादलित… का नारा गूंज रहा है। वहीं राजनीतिक दलों की नज़र सबसे ज़्यादा मुसलमानों पर टिक गई हैं। सत्ता का ख्वाब देख रहे सभी दल मुस्लिम वोट बैंक को कैश कराने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं।

बिहार में जनसंख्या के अनुपात में देखें तो किसी भी गठबंधन या दल ने विधानसभा चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिया, पर मुस्लिम वोटों पर सभी उम्मीदवारों की नज़र है। राज्य में मुसलमानों की आबादी करीब 17 फ़ीसदी है। सबसे पहले नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन की बात करें तो इस बार महागठबंधन ने 33 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है। इसमें आरजेडी ने 17, कांग्रेस 9 और जेडीयू ने 7 मुसलमान प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। आरजेडी ने ने सबसे ज़्यादा 17 मुसलमानों को टिकट दिया है। पिछले चुनाव यह संख्या 28 थी।

महागठबंधन में मुस्लिम उम्मीदवार (कुल सीट- 243)

पार्टी सीट मुस्लिम उम्मीदवार
आरजेडी 101 17
कांग्रेस 41 9
जेडीयू 101 7

 

दूसरी तरफ एनडीए की बात करें तो इस गठबंधन ने महज़ 9 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है। इसमें हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ने 4, बीजेपी ने 2, लोक जनशक्ति पार्टी ने 2, राष्ट्रीय लोक सपा ने 1 मुस्लिम उम्मीवार को चुनावी दंगल में उतारा है। एनडीए में सबसे ज़्यादा जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के पास सबसे ज़्यादा मुस्लिम प्रत्याशी हैं।

एनडीए में मुस्लिम उम्मीदवार (कुल सीट- 243)

पार्टी सीट मुस्लिम उम्मीदवार
बीजेपी 160 02
एलजेपी 40 02
आरएलएसपी 23 01
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा 20 04

 

मुस्लिम बहुल्य इलाका सीमांचल की क़रीब दर्जन भर सीटों पर अल्पसंख्यक वोट निर्णायक माने जाते हैं। इस बार एमआईएम ने सीमांचल की 6 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। एमआईएम ने 6 में 5 सीट पर मुसलमानों को टिकट दिया हैं। इस इलाके में एमआईएम के चुनाव लड़ने से कई दलों के समीकरण बदल गए हैं। इन सीटों पर 30 से 75 फ़ीसदी मुस्लिम जनसंख्या है। बिस्फ़ी, सिमरी बख़तियारपुर, बेलागंज, साहेबपुर कमाल, और दरभंगा ग्रामीण की सीटों पर मुस्लिम और यादव प्रत्याशी आमने-सामने हैं।

बिहार के चुनावी इतिहास पर नज़र डालें तो सबसे ज़्यादा मुसलमान विधायक 1985 के विधानसभा में चुनाव जीत कर आये थे। 324 सदस्यीय विधानसभा में 34 थी, जो कुल विधायकों की संख्या का 10.50 प्रतिशत था। 1985 में जनता पार्टी की टूट के बाद कांग्रेस की सरकार बनी। इस बीच मुस्लिम प्रतिनिधित्व धीरे-धीरे घटता रहा। जनता दल और राजद सरकारों के कार्यकाल में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व घटकर 8.5 फ़ीसदी से भी कम हो गया। साल 2010 के विधान सभा चुनाव में महज़ 19 मुस्लिम चुनाव जीत कर विधायक बन पाए।

बिहार विधान सभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व-

साल मुस्लिम विधायक साल मुस्लिम विधायक
1952 24 1985 34
1957 25 1990 20
1962 21 1995 19
1967 18 2000 20
1969 19 2005 24 (विधान सभा का गठन नहीं हो पाया)
1972 25 2005 16
1977 25 2010 15
1980 28    

 

राजनीतिक मामलों के जानकार डॉ असफ़र सईद का कहना है कि आज़ादी के बाद बिहार की राजनीति में मुसलमानों की भागीदारी पड़ोसी राज्यों की अपेक्षा बढ़ी है। हालांकि फ़िल वक़्त उनकी नुमाइंदगी का यह अनुपात उनकी आबादी के अनुपात में आज भी कम है। डॉ सईद का कहना है कि आज़ादी के बाद अब्दुल ग़फ़ूर बिहार के अकेले मुस्लिम सीएम बन पाए। अब्दुल गफूर जुलाई, 1973 से अप्रैल, 1975 तक राज्य के सीएम रहे। 1975 में उन्हें हटा दिया गया था। डॉ सईद मानते हैं कि राजनीतिक दल मुसलमानों के लिए बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन चुनाव में उनकी उम्मीदवारी को लेकर वह वो बात कहीं नहीं दिखती। सभी दल मुसलमानों को टिकट देने में कंजूसी दिखाते हैं।

2 thoughts on “बिहार चुनाव में मुसलमानों को रिझाने की कोशिश”

Comments are closed.