घोसी। रमजान पाक महीने में घोसी के रेलवे स्टेशन के पास ऑर्गेनाइजेशन की तरफ से दावते इफ्तार का आयोजन हुआ। जहां पर देश की गंगा जमुनी तहजीब की झलक साफ नजर आई। मौका था स्वंयसेवी संस्था रहबर वेलफेयर ऑर्गनाइजेशन के तत्वाधान में आयोजित सामूहिक रोजा इफ्तार पार्टी का जिसमें हिन्दू मुस्लिम दोनों समुदाय के सैकड़ों लोगों ने शामिल होकर देश में शांति सौहार्द व आपसी भाईचारे की कामना की।
गौर तलब हो कि इस्लाम में एक माह के रोजे रखना मोमिन पर फर्ज है। मुस्लिमों के लिए गुनाहो से मुक्ति और रोजी की तरक्की के लिए यह बड़ा अजमत वाला माह माना जाता है। रमजान को नेकियों या पुन्यकार्यों का मौसम-ए-बहार (बसंत) कहा गया है। रमजान को नेकियों का मौसम भी कहा जाता है। इस महीने में मुस्लमान अल्लाह की इबादत (उपासना) ज्यादा करता है। यह महीना समाज के गरीब और जरूरतमंद बंदों के साथ हमदर्दी का है। इस महीने में रोजादार को इफ्तार कराने वाले के गुनाह माफ हो जाते हैं। पैगम्बर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से आपके किसी सहाबी (साथी) ने पूछा- अगर हममें से किसी के पास इतनी गुंजाइश न हो क्या करें। तो हजरात मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जवाब दिया कि एक खजूर या पानी से ही इफ्तार करा दिया जाए। यह महीना मुस्तहिक लोगों की मदद करने का महीना है। रमजान के तअल्लुक से हमें बेशुमार हदीसें मिलती हैं और हम पढ़ते और सुनते रहते हैं लेकिन क्या हम इस पर अमल भी करते हैं। ईमानदारी के साथ हम अपना जायजा लें कि क्या वाकई हम लोग मोहताजों और नादार लोगों की वैसी ही मदद करते हैं जैसी करनी चाहिए। सिर्फ सदकए फित्र देकर हम यह समझते हैं कि हमने अपना हक अदा कर दिया है। जब अल्लाह की राह में देने की बात आती है तो हमें कंजूसी नहीं करना चाहिए। अल्लाह की राह में खर्च करना अफजल है। गरीब चाहे वह अन्य धर्म के क्यों न हो, उनकी मदद करने की शिक्षा दी गयी है। दूसरों के काम आना भी एक इबादत समझी जाती है। जकात, सदका, फित्रा, खैर खैरात, गरीबों की मदद, दोस्त अहबाब में जो जरुरतमंद हैं उनकी मदद करना जरूरी समझा और जाता है। अपनी जरूरीयात को कम करना और दूसरों की जरूरीयात को पूरा करना अपने गुनाहों को कम और नेकियों को ज्यादा कर देता है।