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22 Dec 2024, Sun

सपा और अखिलेश यादव से नाराज मुसलमान! अब पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य ने उठाए सवाल

लखनऊ, यूपी

उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) और उसके अध्यक्ष अखिलेश यादव पर मुस्लिम समुदाय से जुड़े मुद्दों पर चुप्पी साधने के आरोप लग रहे हैं। सपा के वरिष्ठ नेता आजम खां के कुछ समर्थकों ने खुलकर इस तरह के आरोप लगाए हैं। इसी मसले पर ‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ के सदस्य कमाल फारूकी से ‘भाषा’ के पांच सवाल और उनके जवाब।

सवाल : क्या हाल के कुछ घटनाक्रमों को देखते हुए यह कहना सही होगा कि मुसलमानों का सपा से मोहभंग हो रहा है?
जवाब :
यह सच्चाई है कि मुसलमानों का ‘राजनीतिक नैपकिन’ की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। इस बारे में मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को भी सोचना पड़ेगा कि क्या उन्होंने ऐसी पार्टियों का समर्थन करने का ठेका ले रखा है, जो मुसलमानों के बारे में बोलती तक नहीं हैं। आज मुस्लिम समुदाय में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो इस बारे में सोच रहे हैं। अगर सपा को 100 से अधिक सीटें मिली हैं तो इसमें सबसे बड़ा योगदान मुस्लिम समुदाय का है। अखिलेश यादव को इस बात अंदाजा नहीं हो रहा है कि अगर वह बोलेंगे नहीं तो उनका राजनीतिक वजूद खतरे में आ सकता है।

सवाल : आखिर अखिलेश मुस्लिम समुदाय से जुड़े मुद्दों पर खुलकर क्यों नहीं बोलते, जबकि हालिया चुनाव में उन्हें इस समुदाय का व्यापक समर्थन मिला?
जवाब : 
यह अवसरवाद की एक जिंदा मिसाल है। जब चुनाव का मौका होता है तो मुसलमानों के लिए बातें करते हैं, लेकिन चुनाव के बाद कुछ नहीं बोलते। यानी अब उन्हें अगले चुनाव में मुसलमानों की याद आएगी। उनका यह रवैया बहुत ही अवसरवादी है। वोट की बात छोड़िए, उसूल नाम की कोई चीज है या नहीं। जयंत चौधरी ने अपनी बात रखी है। उन्होंने कम से कम हिम्मत तो दिखाई है। अखिलेश बिल्कुल खामोश हैं।

सवाल: क्या यही स्थिति रही तो उत्तर प्रदेश जैसे राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य में मुस्लिम मतदाता दूसरा विकल्प तलाश सकते हैं?
जवाब: 
अगर समाजवादी पार्टी का यही रवैया रहा तो मुसलमान जरूर दूसरा विकल्प देखेंगे। मुसलमानों को इस बारे में सोचते भी रहना चाहिए। मुसलमान इस वक्त मुश्किल में हैं और वे इससे जरूर बाहर निकलेंगे। मेरा मानना है कि उन्हें राजनीतिक विकल्प के बारे में सोचते रहना चाहिए और वे सोच भी रहे हैं। अगर अखिलेश की आंखें नहीं खुलीं तो उनका बुरा हाल होगा।

सवाल : क्या उत्तर प्रदेश के मुसलमान मौजूदा राजनीतिक हालात में एआईएमआईएम जैसा कोई विकल्प चुन सकते हैं?
जवाब : 
मुसलमानों के पास विकल्प कम हैं। लेकिन मेरा अब भी यह मानना है कि मुसलमान किसी भी सूरत में सांप्रदायिक राजनीति के चक्कर में नहीं पड़ेंगे। इस बार के चुनाव में उन्होंने यही साबित किया है। एआईएमआईएम ने पूरी कोशिश की। मुसलमान देश के बारे में सोचते हैं, इसलिए उन्होंने धर्म के नाम पर वोट नहीं दिया। मुझे नहीं लगता कि आगे भी ओवैसी साहब को कामयाबी मिलेगी। मुसलमानों के लिए एकमात्र रास्ता यही है कि वे देश की सलामती के लिए धर्मनिरपेक्ष ताकतों का साथ दें। मुसलमानों को जज्बाती सियासत में पड़ने की जरूरत नहीं है।

सवाल : ऐसे में क्या कांग्रेस या फिर किसी सूरत में भाजपा भी विकल्प हो सकती है?
जवाब :
मुझे अभी भी कांग्रेस जैसी पार्टी से उम्मीद है। कोई एक बार बहुत नीचे चला जाता है तो ऊपर उठता है। हो सकता है कि कांग्रेस के लोगों को अक्ल आए, वे फिर से उठने की पूरी कोशिश करें। लेकिन फिलहाल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस मुसलमानों के लिए विकल्प नजर नहीं आती। आगे का कुछ नहीं कह सकता। मुझे लगता है कि समय आने पर कोई न कोई विकल्प जरूर खड़ा होगा। जहां तक भाजपा का सवाल है तो मुसलमान कभी खुदकुशी नहीं करेंगे। भाजपा का एजेंडा साफ है। उसे मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं है। पार्टी को ध्रुवीकरण के जरिये वोट हासिल करना है। ऐसे में मेरी राय में मुसलमान धर्मनिरपेक्ष विकल्प के साथ ही रहेंगे।