लखनऊ, यूपी
सामान्य दिनों में जो बच्चे बड़ी ही कठिनाइयों में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन ने उन्हें और भी दयनीय स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। चेतना-एचसीएल उदय परियोजना के तहत लखनऊ के 6 स्थानों में सड़क एवं कामकाजी बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का कार्य करती है। संस्था कार्यकर्ताओं ने जब सड़क एवं कामकाजी बच्चों से फोन कॉल के माध्यम से बात की तो पता चला कि कोरोना काल ने माता और पिता दोनों के जीवन यापन का सहारा छीन लिया है।
बच्चों ने संस्था को बताया कि लोग मलिन बस्तियों से काम करने वाली महिलाओं को अब नहीं बुला रहे हैं। स्थिति ये है कि कुछ बचत के पैसों से कुछ दिनों तक तो जैसे तैसे काम चलता रहा पर काम न होने के कारण अब जीवन यापन कठिन होता जा रहा है। बच्चों ने बताया कि अब मम्मी पापा के पास पैसे भी नहीं हैं, जिससे हम राशन खरीद सकें। समस्याएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं।
संस्था को एक बच्चे ने बताया कि हमारा 6 लोगों का परिवार है। पापा कबाड़ की फेरी करते थे और मम्मी मंदिरों में फूल की माला बेचकर पैसे कमाती थीं। लेकिन अब मंदिर बंद होने के कारण काम बंद है और पापा की फेरी भी। घर में राशन पानी की भी बहुत बड़ी समस्या है। इन जरूरतों को पूरा करने के लिए पापा रिश्तेदारों से उधार पैसे मांग कर घर का खर्च चलाते थे। लेकिन बढ़ते लॉकडाउन को देखते हुए अब रिश्तेदार भी उधार देने से मना करने लगे हैं, जिसके कारण अब जीना मुश्किल हो गया है क्योंकि अब राशन के लिए भी पैसे नहीं बचे।
एक अन्य बच्चे ने बताया कि लॉकडाउन के कारण उसके मम्मी पापा काम पर नहीं जा पा रहे। जिसके कारण घर में पैसों की तंगी हो गई है, उसकी बहन बीमार है जिसके इलाज में काफी खर्चा होता है। इसलिए वह कबाड़ बीनकर पैसे कमाता है और उसी से घर का खर्चा और बहन का इलाज जैसे तैसे हो पता है।
बात करने के दौरान, एक बच्चा अपनी समस्या बताते हुए रोने लगा और कहने लगा कि आंधी और तेज़ हवा के कारण मेरी झोपड़ी की पन्नी फट गई और अब बारिश का पानी मेरी झोपड़ी में भर गया है, सारा सामान और हमारी किताबें भी गीली हो गई हैं। बारिश के पानी के कारण मच्छर भी बहुत हो गए हैं, जिसके कारण हम रात में सो भी नही पाते है। लॉकडाउन की वजह से काम छूट जाने के कारण पापा के पास पैसे भी नहीं हैं कि वो झोपड़ी ठीक करवा सकें। हाल ही में हुई बारिश ने बस्तियों में रहने वाले इन लोगों पर इस कठिन समय में एक और बोझ डाल दिया है ।
जब संस्था कार्यकर्ताओं ने इन बच्चों के अभिभावकों से बात की तो उन्होंने बताया कि जो अभिभावक घरों में घरेलू सहायिका के रूप में कार्य करती थीं, उन्हें यह डर भी है कि शायद अब उन्हें लॉकडाउन खुलने के बाद भी काफी दिनों तक काम पर न बुलाया जाए क्योंकि लोगों में कोरोना की दूसरी लहर को लेकर बहुत ज़्यादा डर है। ऐसे में तो जीवन यापन बहुत ही मुश्किल हो जायेगा।
कोरोना वैक्सीन के बारे में जब अभिभावकों से बात की गई तो उनका कहना है कि उनकी पहली प्राथमिकता इस समय खाना है जो कि दिन प्रतिदिन खत्म होता जा रहा है और कोरोना वैक्सीन को लेकर भी उनके मन में गंभीर रूप से बीमार होने या मरने का डर बैठा हुआ है। संस्था के कार्यकर्ताओं ने उन्हें कोरोना वैक्सीन से जुड़ी जानकारी दी और आश्वासन देते हुए कहा कि वो उनकी ये समस्याएं आगे तक पहुंचायेंगे और उनकी समस्याओं के निवारण हेतु हर संभव प्रयास करेंगे।