जावेद बिन अली
लखनऊ, यूपी
भारत में मुसलमानों की बात की जाए तो इनकी आमद की वजह तिजारत थी और इनका आगमन किर्गज से हुआ था। यहां के लोगों ने मुस्लिम ताजिरों की ईमानदारी को देखकर और मनुवादी जुल्म और अत्याचार से पीड़ित लोगों ने मुस्लिम व्यापारियों से अपने बचाने के लिए फरियाद करने लगे। इसके बाद मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में एक फौज आकर मुसावात का पैगाम दिया।
वक्त बीतता गया है। मनुवादी व्यवस्था ने इस्लाम के असली रूह मूसाबात को खत्म कर के भारती मनुवादी इस्लाम बनाने की पूरी कोशिश की। पर इस्लामी मूसाबात को फैलाने के लिए स्वतंत्रा सेनानी अब्दुल कयूम अंसारी ने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।
अब्दुल कय्यूम अंसारी का जन्म स्थान
स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल कयूम अंसारी का पैतृक गांव जनपद गाजीपुर का नवली ग्रामसभा है। उनकी पैदाइश 1 जुलाई 1905 को हुई थी। यहां से उनके लोग बिहार के डेहरी आन सोन चले गए। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए अलीगढ़ गए। उसके बाद शिक्षा के लिए कोलकाता तक का सफर किया है।
जेल भी गए
बाबा-ए-कौम दिवंगत अब्दुल कय्यूम अंसारी, एक महान राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता सेनानी की जयंती है। वो अलीग भी रहे हैं और भारत की आजादी के लिए अपनी विलासितापूर्ण जिंदगी को छोड़कर 16 साल की उम्र में जेल भी चले गए।
जिन्ना के दो राष्ट्र सिद्धांत का किया विरोध
अब्दुल कयूम अंसारी वो पहले नेता हैं, जिन्होंने जिन्ना के दो राष्ट्र सिद्धांत का विरोध किया। गांधी जी और उनकी टीम से उन्होंने भारत को विभाजित न करने की बात कहीं। उसके बाद देश में कई मुस्लिम नेताओं ने जिन्ना के सिद्धांत का विरोध किया।
वंचित समाज की आवाज़ बने
अब्दुल कय्यूम अंसारी जनता के नेता थे। वो विशेष रूप से वंचित और गरीब लोगों में सबसे करीब थे। वह अपनी मृत्यु तक कांग्रेस के सच्चे और वफादार नेताओं में से एक थे। लगभग सभी मुख्यमंत्रियों के मंत्रिमंडल में वो कैबिनेट मंत्री रहे। वह सभी समुदाय के गरीबों के लिए मसीहा थे।
छात्रावास का निर्माण
अब्दुल कय्यूम अंसारी की कई खासियतों में एक सबसे बड़ी बात ये थी कि वो दलितों, पिछड़ों और गरीबों के बारे में हमेशा फिक्रमंद रहते थे। उन्होंने बिहार के लगभग सभी जिलों में गरीब छात्रों के लिए छात्रावास और मुफ्त भोजन की स्थापना कराई। आज जिसे केंद्र और राज्य सरकार मिलकर पूरे भारत में मिडडे मील योजना के अंतर्गत चलाया जा रहा है।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी
अब्दुल कय्यूम अंसारी एक कुशल पत्रकार, लेखक और कवि भी थे। वह पूर्ववर्ती दिनों में उर्दू साप्ताहिक “अल-इस्ला” (सुधार) और एक उर्दू मासिक “मुस्वत” (समानता) के संपादक थे। अखबारों के नाम से ही मालूम हो जाता है उनके क्या विचार थे। पूरे समाज में इस्लामिक रूह को फूंकना चाहते थे। यही कारण बना मनुवादी मुस्लिम मुसलमानों को उनके इतने अच्छे विचारों को पनपने नहीं दिया। ये अलग बात है जिन्ना के टू नेशन फार्मूला 1972 में पाकिस्तान का बंटवारा होने के बाद पूरी दुनिया के लिए फेल हो गया।
क्या कहते हैं लोग
पूर्व डीजीपी मोहम्मद वजीर अंसारी के अनुसार हमारी बिरादरी के ज्यादातर लोग पिछलग्गू बनना अधिक पसंद करते हैं। जिस तरह मनुवादी व्यवस्था में ब्राह्मण समाज 3% होने के बावजूद भी हर जगह थाने की कोतवाली से राष्ट्रपति भवन तक अपनी आबादी से अधिक नजर आते हैं। ठीक उसी तरह हमारे लोग पढ़ने पर ध्यान कम गुलामी करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। अब्दुल कय्यूम अंसारी के विचार और काम बिल्कुल अलग था। वो समाज के गरीब तबके को आगे रखना चाहते था।
अब्दुल कय्यूम अंसारी को भुला दिया गया
पूर्व डीजीपी मोहम्मद वजीर अंसारी ने कहा जिस व्यक्ति ने देश के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी दिया हो। जिसने जिन्ना के टू-नेशन फार्मूले का डटकर विरोध किया हो। उसके नाम पर मात्र एक डाक टिकट 1 जुलाई 2005 को भारत सरकार जारी करे। ये उनके साथ सबसे बड़ी नाइंसाफी है। अब्दुल कय्यूम अंसारी गंगा जमुनी तहजीब को कायम करने के लिए पाये के नेता थे। उनके नाम से बिहार और उत्तर प्रदेश में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना होनी चाहिए।
योगदान को बताने की ज़रूरत
राष्ट्र और भारत की जनता के लिए उनके योगदान को हमेशा याद करने की जरूरत है। उनकी जयंती 1 जुलाई को हमेशा हमारे देश के के इस महान नेता को एक महान श्रद्धांजलि अर्पित करनी चाहिए। सरकार के भरोसे अपने लोगों को रखेंगे तो सरकार हमेशा आपके खिदमत को भुलाना चाहेगी। हमें खुद अपने लोगों के बारे में सोचनी चाहिए और उनके कारनामों को याद कर के संगठित और शिक्षित बनने का प्रयास करना चाहिए।
पूर्व डीजीपी वज़ीर अंसारी ने यह भी कहा कि हमारे मुस्लिम समाज के जो भी लोग पार्टी में मौजूद हैं वह सिर्फ अपनी पार्टी में नाचने का काम करते हैं। अपने समाज की तरक्की के लिए अब्दुल कयूम अंसारी जैसा जिगर उनके पास नहीं है। जिस तरह उन्होंने बिहार के मदरसा की तालीम में रिफॉर्म लाया था। उसकी मिसाल कहीं नहीं मिलती है। आज के मुस्लिम नेता अपनी पार्टी के अधिक होते हैं समाज से सिर्फ वोट मांगने के लिए होते हैं।