कानपुर, यूपी
कोरोना वायरस से जंग में सैनिटाइजेशन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी संभाले नगर निगम में सामने आए बड़े खेल ने हैरत में डाल दिया है। नगर निगर सैनिटाइजेशन के नाम पर अबतक पानी का छिड़काव करता रहा और अफसर भी अनजान बने रहे। सैनिटाइजेशन के लिए नगर निगम को सोडियम हाइपोक्लोराइड की आपूिर्त में सप्लायरों ने खेल कर दिया। एक ने सबमर्सिबल का पानी ड्रमों में भरकर दिया तो दूसरे ने केमिकल में नाममात्र क्लोरीन मिलाई थी। जलकल विभाग के विशेषज्ञों की मानें तो एक नमूने में पूरी तरह पानी है और दूसरे में क्लोरीन की मात्रा पीने वाले पानी से थोड़ा ही ऊपर है। इतना सब होने के बाद भी अफसरों का चुप्पी साध लेना बड़े घोटाले की ओर इशारा कर रहा है।
लॉकडाउन के दौरान नगर निगम की टीम नियमित रूप से सैनिटाइजेशन कर रही है। इसमें ज्यादातर हॉटस्पॉट के क्षेत्र भी शामिल हैं, जहां सैनिटाइजेशन से कोरोना संक्रमण बढ़ने से रोकना है। सैनिटाइजेशन में सोडियम हाइपोक्लोराइड में 12 फीसद क्लोरीन होती है। एक से तीन फीसद तक सोडियम हाइपोक्लोराइड को पानी में डालकर घोल बनाने के बाद सैनिटाइज किया जाता है।
दो कंपनियों ने की 8.5 टन की आपूिर्त
नगर निगम अधिकारियों के मुताबिक स्वरूप नगर वीवीएस इंडस्ट्रीज व शास्त्री नगर दमन इंटरप्राइजेज से माल लिया गया, जो पंजीकृत नहीं थी। इन्हें 90 टन केमिकल की सप्लाई करनी थी लेकिन पहले चरण में 8.5 टन सप्लाई किया गया। मुख्य नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. प्रमिला निरंजन ने नगर निगम में आए केमिकल के अलग-अलग नमूने लेकर जांच के लिए जलकल की प्रयोगशाला में भेजा था। जो पत्र जांच के लिए भेजा गया, उसमें कंपनी के मोबाइल नंबर के 10 की जगह नौ अंक ही लिखे गए।
जांच रिपोर्ट ने खोल दिया सारा खेल
जलकल से आई जांच रिपोर्ट काफी चौंकाने वाली थी और सारा खेल खोल दिया। नगर निगम को सोडियम हाइपोक्लोराइड की आपूर्ति करने वाली स्वरूप नगर की वीवीएस इंडस्ट्रीज के नमूने में क्लोरीन की मात्रा शून्य थी। वहीं शास्त्री नगर की दमन इंटरप्राइजेज में 0.709 फीसद क्लोरीन थी। जलकल विभाग के केमिकल विशेषज्ञों ने इन नमूनों की जांच की थी। विशेषज्ञों के मुताबिक सबमर्सिबल के जरिए घरों में जो पानी आता है, उसमें क्लोरीन की मात्रा शून्य ही होती है इसलिए स्वरूप नगर वाले सप्लायर ने तो सबर्मिसबल का पानी ही ड्रमों में भर कर सप्लाई कर दिया है।
उनके अनुसार जलकल जो पेयजल सप्लाई करता है, उसमें प्रति लीटर पानी में दो से ढाई मिलीग्राम क्लोरीन की मात्रा रहती है। जबकि शास्त्री नगर के सप्लायर ने जो केमिकल सप्लाई किया उसमें इस मानक से कुछ ऊपर ही क्लोरीन की मात्रा थी। यानी साधारण पानी में नाममात्र की क्लोरीन मिलाकर उसे सप्लाई कर दिया गया। विशेषज्ञों के मुताबिक सोडियम हाइपोक्लोराइड चाहे छह माह पुराना भी क्यों न हो उसमें क्लोरीन की मात्रा किसी हालत में इतनी कम नहीं हो सकती।
उठ रहे कई सवाल
नगर निगम द्वारा सैनिटाइजेशन में कई सवाल उठना शुरू हो गए है। आखिर पंजीयन बिना दो कंपनियों को आपूिर्त का आदेश किसकी सहमति से दिया गया। अफसरों ने इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया। वहीं इस बारे में नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि कोरोना संक्रमण फैलने पर सैनिटाइजेशन की तुरंत जरूरत पड़ी और स्टॉक खत्म हो रहा था, उस समय बिना टेंडर कराए माल खरीदने के लिए खुले बाजार में संपर्क किया गया।
आपदा के दौरान यह व्यवस्था भी है कि बिना टेंडर माल ले लिया जाए। उस दौरान तीन सप्लायर अपना माल बेचने आगे आए थे। तीनों का माल आने पर जांच कराने का निर्णय लिया गया। इसमें आरपी इंटरप्राइजेज के केमिकल में क्लोरीन की मात्रा 12.19 फीसद मिली, यह मानक पर खरा था इसलिए इसका इस्तेमाल शुरू किया गया और बाकी से अपना माल वापस लेने के लिए बोला गया है। दोनों कंपनियों को ब्लैक लिस्ट करने की तैयारी शुरू हो गई है।
इनकी भी सुनिए
दमन और वीवीएस कंपनियों ने जो माल भेजा था जांच में वह गड़बड़ निकला है। इसके बाद भी कंपनियां अपने केमिकल को अच्छा बता रही हैं। उनसे नगर निगम आकर अपने सामने जांच कराने के लिए कहा गया है। कंपनियों को आगे के लिए ब्लैक लिस्ट करने की तैयारी की जा रही है। माल वापस लेने के आदेश के साथ ही भुगतान भी रोक दिया गया है।
नगर आयुक्त कार्यालय से जारी पत्र में दी गई ये जानकारी
इस संबंध में नगर आयुक्त कार्यालय द्वारा पक्ष स्पष्ट किया गया है। नगर आयुक्त कार्यालय की ओर से जारी पत्र में बताया गया है कि 10 प्रतिशत सोडियम हाइपोक्लोराइड एक अनुपात 9 के अनुसार मिलाकर सॉल्युशन बनाया जाता है। अर्थात 9 लीटर पानी में एक लीटर सोडियम हाइपोक्लोराइड मिलाकर सैनेटाइजेशन हेतु दवा तैयार करके छिड़काव कराया जाता है।
नगर निगम द्वारा सैंपल की जांच के बाद सही पाये जाने पर ही छिड़काव के लिए उपयोग में लाया जाता है। कोविड-19 के रोकथाम के लिए किए गए छिड़काव में उपयोग में लाये गए केमिकल्स की गुणवत्ता पूर्ण रूप से सही है। जिस स्टॉक की गुणवत्ता सही नहीं पायी गई, उसका उपयोग नहीं किया गया है और न ही कोई भुगतान किया गया है। उक्त फर्म को नोटिस जारी किया गया है। यह मामला नगर निगम की सतर्कता के कारण ही प्रकाश में आया है।