नई दिल्ली
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस मुरलीधर का तबादला पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में कर दिया गया है। इस तबादले के बाद 5 मार्च को जस्टिस मुरलीधर को फेयरवेल दी गई। ये कार्यक्रम दिल्ली हाईकोर्ट में रखा गया। जस्टिस मुरलीधर को फेयरवेल देने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे तमाम वकीलों की भीड़ उमड़ आई।
जस्टिस मुरलीधर को अलविदा कहने के लिए इतने लोग पहुंचे कि वहां बैठने की जगह तक नहीं बची और लोग सीढ़ियों पर खड़े हो गए। इस फेयरवेल प्रोग्राम की तस्वीर दिल्ली हाईकोर्ट की एडवोकेट नंदिता राव ने अपनी फेसबुक वॉल पर शेयर की है। तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है कि किस तरह काले कोट पहने वकीलों का परिसर में जमावड़ा लगा हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने ट्वीट कर कहा, “हाईकोर्ट में आज न्यायमूर्ति मुरलीधर को विदाई दी गई, जिन्हें दिल्ली पुलिस को दंगा अधिनियम पढ़कर सुनाने के दिन रात 11 बजे स्थानांतरित कर दिया था। हाईकोर्ट ने कभी किसी जज की इतनी शान से विदाई नहीं देखी। उन्होंने दिखाया कि शपथ के प्रति ईमानदार एक न्यायाधीश संविधान को बनाए रखने और अधिकारों की रक्षा करने के लिए क्या कर सकता है।”
बता दें दिल्ली हाईकोर्ट के जज के तौर पर उन्होंने 27 फरवरी को आखिरी सुनवाई की। रिहाइशी इलाके में चलायी जा रही वाणिज्यिक गतिविधियों से संबंधित एक मामले में फैसला देने के बाद न्यायमूर्ति एस मुरलीधर ने कहा, “दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के नाते यह मेरा आखिरी न्यायिक कार्य है।” न्यायमूर्ति मुरलीधर का तबादला पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में कर दिया गया है। उच्चतम न्यायायलय के कॉलेजियम ने 12 फरवरी को जज मुरलीधर के तबादले की सिफारिश की थी।
सादगी पसंद हैं जस्टिस मुरलीधर
मानवाधिकारों की रक्षा को लेकर बेहद संवेदनशील न्यायमूर्ति डॉ एस मुरलीधर निजी जीवन में सादगी पसंद व्यक्ति हैं। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर 23-24 फरवरी को दिल्ली के कुछ हिस्सों में हिंसा की घटनाओं के संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति डॉ मुरलीधर ने कड़ा रुख अपनाते हुए पुलिस और भाजपा के कुछ नेताओं को आड़े हाथ लिया था।
इसके बाद न्यायमूर्ति डॉ मुरलीधर का तबादला पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में कर दिया गया। उनके तबादले के समय को लेकर अलग-अलग बातें कही गईं। जबकि सरकार की ओर से दलील दी गई कि उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम की 12 फरवरी की सिफारिश के अनुरूप तबादले की यह एक सामान्य प्रक्रिया थी।
इन खास फैसलों में रही भागीदारी
न्यायमूर्ति डॉ मुरलीधर के तबादले को लेकर उठे विवाद को एक तरफ कर दिया जाए तो इसमें दो राय नहीं कि उन्हें मानवाधिकारों और नागरिक अधिकारों के लिए सदैव प्रतिबद्ध रहने वाले न्यायाधीश के रूप में देखा जाता है। उन्होंने कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में गिरफ्तार सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा की ट्रांजिट रिमांड पर 2018 में रोक लगाने वाली पीठ के सदस्य के रूप में सरकार और व्यवस्था को खरी खरी सुनाई थी।
1986 के हाशिमपुरा नरसंहार के मामले में उप्र पीएसी के 16 कर्मियों और 1984 के सिख विरोधी दंगों से संबंधित एक मामले में कांग्रेस के पूर्व नेता सज्जन कुमार को सजा सुनाने में न्यायमूर्ति मुरलीधर की कलम जरा नहीं डगमगाई। वह उच्च न्यायालय की उस पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने 2009 में दो वयस्कों में समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर रखने की ऐतिहासिक व्यवस्था दी थी।
1984 में शुरू की थी वकालत
दिल्ली उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने से पहले एक अधिवक्ता के तौर पर भी नागरिक अधिकारों और मानवाधिकारों के मामलों के प्रति उनकी संवेदनशीलता सामने आने लगी थी। चेन्नई में 1984 में वकालत शुरू करने वाले मुरलीधर करीब तीन साल बाद अपनी वकालत को नए आयाम देने की इच्छा के साथ दिल्ली आए और उन्होंने उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय में वकालत की।
इस दौरान मुरलीधर पूर्व अटार्नी जनरल जी रामास्वामी (1990-1992) के जूनियर भी रहे। यहां उनके बारे में यह जान लेना दिलचस्प होगा कि अधिवक्ता के रूप में मुरलीधर पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार इलाके में स्थित सुप्रीम एन्क्लेव में रहते थे। वहीं करीब ही मशहूर गुरुवायुरप्पन मंदिर है। इस मंदिर के बाहर हर रविवार को दक्षिण भारतीय व्यंजनों के स्टॉल लगते हैं, जो खासे लोकप्रिय हैं। मुरलीधर रविवार को अक्सर इन स्टाल पर बड़े सहज भाव से दक्षिण भारतीय व्यंजनों-डोसा, इडली और सांभर बड़ा का लुत्फ उठाते नजर आते थे। ये उनकी सादगी का परिचायक है।
2006 में बने थे दिल्ली हाईकोर्ट के जज
राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने 29 मई 2006 को डॉ एस मुरलीधर को दिल्ली उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया था। इस पद पर नियुक्ति से पहले वह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और निर्वाचन आयोग के वकील भी रह चुके थे। बाद में वह दिसंबर, 2002 से विधि आयोग के अंशकालिक सदस्य भी रहे।
इसी दौरान, 2003 में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यलाय से पीएचडी भी की। डॉ मुरलीधर की पत्नी उषा रामनाथन भी एक अधिवक्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं जो आधार योजना के खिलाफ आंदोलन में काफी सक्रिय थीं। बतौर वकील डॉ मुरलीधर और उनकी पत्नी उषा रामनाथन ने भोपाल गैस त्रासदी में गैस पीड़ितों और नर्मदा बांध के विस्थापितों के पुनर्वास के लिए काफी काम किया था।