लखनऊ, यूपी
उजरियांव धरने के एक माह पूरा होने पर उजरियांव धरने पर संघर्ष कर रही महिलाओं ने नारा दिया कि “महिला संघर्ष के एक माह, आओ संघर्ष के साथ चलो”। इस आह्वान पर देश-प्रदेश के कोने-कोने से उजरियांव धरने पर बैठी हुई महिलाओं के समर्थन में भारी संख्या में लोग धरने पर पहुँचें।
उजरियांव धरने पर एक माह से बैठी हुई महिलाओं के संघर्ष। उजरियांव का धरना 19 जनवरी शाम 6 बजे करीब 50 महिलाओं से शुरू ही हुआ था कि धरने स्थल पर पुलिस आ गई और धरने पर बैठी हुई महिलाओं को धमकाते हुए कहा कि आप लोग यंहा धरना नहीं कर सकते है। यह कहते हुए धरने स्थल पर लगे टेंट, कम्बल, दरी, चेयर, पोस्टर को पुलिस थाने उठा ले गई। 19 जनवरी के ठिठुरती सर्द रात में भी उजरियांव की महिलाओं ने हार न मानी वो धरने पर बैठी रही है।धरने के दूसरे दिन से महिलाओं की संख्या बढ़ने लगी और अब महिला संघर्ष के एक माह भी पूरे होने जा रहे है।
उजरियांव धरने में 102 साल की दादी नागरिकता संसोधन कानून के विरोध में धरने में शुरू से अब तक शामिल रही है।
वक्ताओं ने कहा कि नागिरकता संशोधन कानून संविधान विरोधी है। संविधान के तहत कोई भी कानून धर्म के आधार पर हमारी नागिरकता तय नहीं कर सकता। अगर करता है तो वह कानून संविधान विरोधी है। हम एनपीआर का पूर्णतया बहिष्कार करेंगे। अपना संविधान बचाने के लिए जेल भरो से लेकर, असहयोग आंदोलन तक के रास्ते अपनाएंगे और सरकार को यह असंवैधानिक कानून वापस लेने के लिए विवश करेंगे।
‘महिला संघर्ष के एक माह, आओ संघर्ष के साथ चलो’ के आह्वान ने भाजपा सरकार को बता दिया कि अघोषित आपातकाल और दमनकारी नीतियों को अवाम सिरे से खारिज करती है। घन्टाघर, उजरियावं में बैठी हुई महिलाओं समेत दूर-दराज से आयी महिलाओं ने काले कानून के खिलाफ जमकर हल्ला बोला और संकल्प लिया है कि वो भी अपने गांव, कस्बा, शहर में घंटाघर, शाहीन बाग़ बनाएंगी।
महिला के संघर्ष के एक माह पूरे होने पर उजरियांव पर कई वक्ताओं के संबोधन के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया गया। जिसमें संगीत, कला, मुशायरा और चर्चित वक्तागण ने अपनी बात रखी और महिलाओं ने अपना संघर्ष साझा किया। जिसमें जेएनयू पूर्व छात्र अध्यक्ष एन साई बालाजी, वरिष्ठ पत्रकार किरण सिंग, बाँसुरी वादक अशुकान्त सिन्हा, रणधीर सिंह सुमन, सृजन आदियोग, सुप्रिया ग्रुप, अजय सिंह, हरजीत सिंह, ओपी सिन्हा, मानवाधिकार कार्यकर्ता रविश आलम, मुजतबा छात्र अलीगढ़ विश्वविधालय, किन्नर समाज से कोमल (गुड्डन), कहानीकार फरज़ाना मेंहदी समेत घन्टाघर की बैठी हुयी महिलाओं आदि ने अपनी बात रखी।