जौनपुर, यूपी
इस समय प्रधानमंत्री आवास योजना, शौचालय योजना व आयुष्मान सहित तमाम योजना केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही है। ताकि भारत के हर एक गरीब से गरीब को इसका लाभ मिले और उपयोग करें। जिससे एक अच्छे और सभ्य समाज की श्रेणी आकर पिछड़े हुए लोग भी आकर खड़े हो सके। यह सब योजना नगरीय क्षेत्रों में नगर पंचायत, पालिका द्वारा कराया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में विकास खण्ड पर प्रधान के द्वारा कराया जा रहा है। प्रधान अपने गांव के गरीब पात्रों की सूची बनाकर सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं में पात्रों को लाभ दिलाएं।
इसका फायदा उठाते जौनपुर जिले के शाहगंज तहसील क्षेत्र के विकास खण्ड सुइथाकला एक गांव का मामला सामने आया। जहाँ प्रधान अपने दबंगई के बदौलत लाचार दिव्यांग का प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिले घर बनवाने के लिए पैसों को ग्राम प्रधान बनवाने के नाम खाते से निकलवा लिया और आज तक दिव्यांग का घर नहीं बनवाया। यह मामला खुलकर सामने तब आया जब सम्पूर्ण समाधान दिवस के दिन तहसील शाहगंज में जनता की फरियाद जिलाधिकारी सहित जिले तमाम आला अधिकारी सुन रहे थे। पीड़ित ने जिलाधिकारी को प्रार्थना – पत्र देकर ग्राम प्रधान के ऊपर गम्भीर आरोप लगाया है।
40 वर्षों से दिव्यांग गौरीशंकर किसी तरह काट रहे ज़िन्दगी
विकास खण्ड सुइथाकला क्षेत्र के सरपतहा थाना के अन्तर्गत स्थित गांव घूरीपुर निवासी गौरीशंकर तिवारी पुत्र छल बिहारी तिवारी। बताया जाता है कि गौरीशंकर 40 वर्षों से उनका दोनों हाथ व दोनो पैर फैल गया है। जिससे कही आने-जाने व चल फिर पाने में असमर्थ है। जिसका फायदा ग्राम प्रधान अपने दबंगई व चालाकी के बलबूते जेब गरम करने के चक्कर में आवास का दिव्यांग के खाते में आये रुपये को आवास बनवाने के नाम पर निकलवाकर ले लिया और आज तक आवास नहीं बन पाया।
जिससे असमर्थ दिव्यांग भटकने को मजबूर है। उक्त दिव्यांग का आरोप है प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवेदन किया था। किसी तरह आया भी तो प्रधान मेरे असमर्थता की फायदा उठाते पैसा गबन कर गए इसकी शिकायत कई बार करने पर कोई सुनवाई नहीं हुआ। आज तक न ही रुपया वापिस मिल पाया और न ही आवास बन पाया। जिससे बरसात में झुग्गी-झोपड़ी में रहने को विवश है। यदि प्रधान चाहता तो आज यह नौबत न आती और आवास कब बन जाता है। इतना ही नहीं प्रधान द्वारा अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं दिया गया सिवाय पेंशन व अंत्योदय कार्ड के अलावा। जिससे काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। बरसात में शौच के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
प्रधान की लापरवाही से दिव्यांग सरकारी योजनाओं से है कोसो दूर
सरकार की योजनाओ को जन-जन तक पहुँचाने व जमीन पर उतारने के लिए अधिकारी सहित ग्राम प्रधान होते है। सरकार बड़े-बड़े पोस्टर व बैनर व कार्यक्रम के माध्यम से योजनाओ के बारे में लोगों को जागरूक कर रही है। ताकि लोग उसका समुचित रूप से लाभ ले सके। लेकिन सुइथाकला विकास खण्ड के उक्त गांव में सरकार की योजनाओं से कोसो दूर है ? इसे कोसो दूर समझे या ग्राम प्रधान की साजिश यह आप समझिए। लेकिन उक्त दिव्यांग आज तक सरकार मात्र दो योजना के अलावा तीसरे योजना का लाभ पाने के लिए तरस रहा है।
दिव्यांग का कहना है आजतक मात्र अंत्योदय कार्ड व पेंशन योजना के अलावा सरकार के अन्य कोई योजना का लाभ नहीं मिल सका। सरकार बहके बड़े-बड़े दावे कर ले अलग बात है। प्रधानमंत्री आवास योजना का फार्म भरने के बाद एक आस जगी थी कि अब रहबे के लिए एक छत मिल जाएगा लेकिन सपना बनकर रह जा रहा है। आज तक प्रधान के चलते नसीब नहीं हो सका। बाकी अन्य शौचालय, आयुष्मान व अन्य योजनाओं का कोसो दूर की बात है। जिसका कुछ अता – पता ही नहीं है। यदि शौचालय योजना के तहत शौचालय मिला होता तो बरसात में दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता और न ही बाहर शौच के लिए जाना पड़ता। यदि बरसात हो रही है तो शौच के बारिश बन्द होने तक का इंतज़ार न करना पड़ता।
पीने के पानी के लिए नहीं मिला हैडपम्प
सरकार पीने के पानी के लिए लोगो को समय पर हैडपम्प मुहैया करवा रही थी। जिससे जहाँ पीने के पानी का किल्लत हो हैडपम्प न तो उसका लाभ लेकर लोग पानी पी सके। ऐसे में दिव्यांग को उसका भी लाभ नहीं सका। दिव्यांग के पास प्यास बुझाने के लिए ग्राम प्रधान से हैडपम्प कहते कहते रिरिक कर रह गया। लेकिन आज तक हैडपम्प नहीं मिल सका।
आखिरकार पूरी गर्मी भर ताजा पानी पीने व प्यार बुझाने के लिए तरसता रहा। ऐसे सरकार द्वारा तमाम गरीबो के हितों में चलाएं जाने का असली लाभ पाने वाले हकदारों को नसीब नहीं हो पाता। जिसके पाने के लिए जो उस लायक है प्रयास करते है संघर्ष करते है। लेकिन फिर भी प्रधान अपने अगली बार की बाग-डोर सम्भालने के लिए अभी से तैयारी कर रहे है और अपने मनमुताबिक चहेतों को सिर्फ लाभ दिया रहे है।
इसमें सबसे बड़ी समस्याओं प्रधान तो अपनी राजनीतिक चाल चलते ही है साथ ही साथ ब्लॉक अधिकारी भी अपनी चाल व प्रधान के दबाव में नहीं सुनने को तैयार होते है। इसके अलावा भी कई गांवों का भी यही हाल है। कितने तो प्रधान के डर से आवाज नहीं निकाल पाते है। प्रधान सरकार की योजना को अपात्रों में बन्दर-बाट कर डालते है। जिससे पात्र बेचारे योजनाओ से अनभिज्ञ रहा जाते है और समस्याओं से भरी जीवन काटने को विवश रहते है।