हमारे परिवार कई पीढ़ियों से मिजोरम में रहते आए हैं। हम भी मिजोरम में रहते थे। खेतीबाड़ी करते थे, लेकिन 22 साल पहले रातों-रात हमें मिजोरम से भगा दिया गया। वजह भी नहीं बताई गई। बस इतना कहा गया कि तुम लोग यहां नहीं रह सकते। आखिर ये लोग कौन हैं जो हमें हमारे ही मिजोरम में नहीं रहने देना चाहते? अगर वे इस राज्य और देश के हैं तो फिर उन्हें हमसे क्या परेशानी है? क्यों आज हमें वहां पांव भी नहीं रखने दिया जाता है। आज हम अपने ही देश में मुख्यधारा से अलग होकर एक पहाड़ी पर शरणार्थी की जिंदगी जी रहे हैं। अधिकार है तो बस एक वोट डालने का।
यह दर्द और कहानी है 22 साल से त्रिपुरा में शरणार्थी बनकर रह रहे 40 हजार वैष्णव हिन्दू (ब्रू जनजाति) के लोगों की। अब अगर वो सितम्बर तक वापस मिजोरम नहीं गए तो एक अक्टूबर से उनकी मदद भी रोक दी जाएगी। शरणार्थियों की मदद के अभियान से जुड़े अभय जैन ने न्यूज18 हिन्दी के साथ उनका दर्द बयान किया। उनका कहना है कि आज मिजोरम की 11 लाख की आबादी में 87 प्रतिशत ईसाई, 10 प्रतिशत चकमा शरणार्थी और अन्य लोग हैं।
वर्ष 2010 में वापस गए थे सात हजार शरणार्थी
भारत हितरक्षा अभियान को सहयोग देने वाले अभय जैन बताते हैं कि वर्ष 2010 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार में पीएम मनमोहन सिंह के हस्तक्षेप के बाद करीब 7 हजार हिन्दू शरणार्थी वापस मिजोरम में रहने गए थे, लेकिन जैसे ही उन लोगों ने वहां जाकर रहना शुरू किया और अपने घरों और खेतीबाड़ी की ज़मीन को दुरुस्त किया वैसे ही वहां के बहुसंख्यकों ने उनको डराना-धमकाना और तरह-तरह से परेशान करना शुरू कर दिया। ऐसे में जान बचाने के मकसद से उन्हें फिर वहां से भागना पड़ा और वो लोग आज पहाड़ी पर 7 नम्बर कैम्प में रह रहे हैं।
सितम्बर में चुनेंगे भूख या खौफ की जिंदगी में से कोई एक
अभय जैन बताते हैं कि 2016 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मिजोरम, त्रिपुरा, केन्द्र सरकार और शरणाथियों के नेताओं के बीच जुलाई 2018 मे एक समझौता हुआ था। उस समझौते के तहत 16 सितम्बर से सभी 40 हजार शरणार्थियों को वापस मिजोरम जाना है। अगर वो ऐसा नहीं करते हैं तो एक अक्टूबर से उनको हर रोज दिया जाने वाला राशन और नकद रुपये की मदद बंद कर दी जाएगी। लेकिन जिस तरह से 2010 में 7 हजार शरणार्थियों को वापस भगा दिया गया था उससे इनके दिलों में एक खौफ बैठा हुआ है।
ऐसे हैं 40 हजार शरणार्थियों वाले कैम्प के हालात
अभय जैन ने कैम्प की हालत बयां करते हुए बताया कि कैम्प में कोई सरकारी स्कूल और अस्पताल नहीं है। कैम्प के पास से बिजली की लाइन जा रही है लेकिन कैम्प के लोगों को बिजली का कनेक्शन नहीं दिया जाता है। 40 हजार लोगों में से किसी के पास भी आधार कार्ड तक नहीं है। राशन कार्ड है भी तो वो अस्थाई है। पहचान के नाम पर सिर्फ एक वोटर कार्ड है।