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22 Nov 2024, Fri

आप 23 साल तक जेल में बंद रखे जाएं। कोई जमानत नहीं। कोई परोल नहीं। ज़िंदगी क्या से क्या हो गई। और फिर एक दिन अदालत आपको बरी कर दे। कह दे, आपको दोषी मानने के लिए सबूत ही नहीं आरोप लगाने वालों के पास। क्या ये इंसाफ़ माना जाएगा? क्या इसे न्याय माना जाना चाहिए?

सेंट्रल जेल की गुंबदाकार गेट खुलती है। अंदर से एक जोड़ी पैर गेट के बाहर निकलते हैं। उसकी दाढ़ी जैसे जान-बूझकर बढ़ी हुई छोड़ दी गई हो। ताकि देखने वाले समझ जाएं, वो बहुत दिनों बाद लौटा है।

पुरानी फिल्मों में कई बार इस तरह का एक सीन होता था। 22 जुलाई की शाम जयपुर सेंट्रल जेल का बाहरी दरवाजा ऐसे ही खुला। अंदर से पांच लोग निकले। 42 साल के लतीफ़ अहमद बाजा। 48 साल के अली भट्ट। 39 साल के मिर्ज़ा निसार। 57 साल के अब्दुल गोनी। और, 56 बरस के रईस बेग। ये पांचों 1996 के समलेटी ब्लास्ट केस में आरोपी थे। रईस 8 जून, 1997 से जेल में बंद थे। बाकी सबको जून 1996 से जुलाई 1996 के बीच सज़ा हुई थी। तब से 22 जुलाई, 2019 तक इन पांचों को न तो कभी जमानत मिली। न वो परोल पर ही रिहा हुए। इतनी सख़्त सज़ा झेलने के बाद अब जाकर पता चला कि उन्होंने कोई अपराध किया भी था कि नहीं, ये तय नहीं।

कोर्ट ने कहा- अभियोजन आरोप साबित नहीं कर पाया
21 जुलाई को राजस्थान हाई कोर्ट ने इन पांचों को रिहा कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष उन्हें दोषी साबित कर पाने में नाकाम रहा। समलेटी ब्लास्ट केस का मुख्य आरोपी है डॉक्टर अब्दुल हामिद। हामिद को सज़ा-ए-मौत मिलनी तय हुई है। मगर लतीफ़, अली, मिर्ज़ा निसार, अब्दुल और रईस, ये पांचों भी हामिद के साथ शामिल थे, अभियोजन की इस थिअरी को कोर्ट ने खारिज़ कर दिया। कहा, प्रॉसिक्यूसन अपने लगाए इल्ज़ामों का सबूत नहीं दे सका।

क्या केस है?
जिस ब्लास्ट से जुड़ा है ये केस, वो 22 मई 1996 को हुआ था। जयपुर-आगरा हाई वे पर दौसा नाम की एक जगह है। यहां समलेटी गांव में बीकानेर से आगरा जा रही एक बस के अंदर धमाका हुआ था। इसमें 14 लोगों की जान गई और 37 जख़्मी हुए। इस धमाके से एक दिन पहले दिल्ली के लाजपत नगर में ब्लास्ट हुआ था। उसमें 13 लोग मारे गए थे। केस की जांच CID को सौंपी गई। एजेंसी ने इन पांचों को भी केस का आरोपी बनाया। बताया गया कि ये सब जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF)से जुड़े हुए हैं। इन पांचों में से एक- रईस बेग आगरा के रहने वाले हैं। बाकी सब जम्मू-कश्मीर के रहने वाले हैं। सबकी अपनी-अपनी ज़िंदगियां थीं। कोई कालीन का कारोबारी। कोई हैंडीक्राफ्ट का बिजनस करता था। मिर्ज़ा निसार तो नवीं में पढ़ते थे।

ये लोग जब पकड़े गए, तब ज़िंदगी कुछ और थी। अब जब वो छूटे हैं, तो बहुत कुछ बदल गया है। बीच के 23 सालों में दुनिया क्या से क्या हो गई। 1997 में प्रिंसेस डायना मरी थीं। अब उनके बच्चों के बच्चे हो चुके हैं। कितनी ही सरकारें आईं और गईं। मौसम और जलवायु तक बदल चुके हैं। इंडियन एक्सप्रेस में हम्ज़ा खान की बायलाइन से ख़बर छपी है। इसमें बेग की कही एक बात लिखी है-

हम जब जेल में थे, तो कितने रिश्तेदार गुज़र गए हमारे। मेरी मां। मेरे पिता। दो चाचा। सब चले गए दुनिया से। मेरी बहन की शादी हुई और अब उसकी बेटी की शादी होने वाली है। अब जाकर हमें बरी कर दिया गया है, मगर जो साल बीच में बीते उन्हें कौन लौटा देगा।

गोनी की बहन सुरैया फोन पर बात करते हुए कहती हैं-

उसकी जवानी बीत गई। हमारे मां-बाप मर गए। मेरे आंसू सूख गए। उसके लिए रोते-रोते मैं बूढ़ी हो गई।

बाजा भी अब अपनी ज़िंदगी नए सिरे से शुरू करना चाहते हैं। शादी करना चाहते हैं। मगर फिर वो अपने गंजे सिर पर हाथ फेरते हुए ताज्जुब जताते हैं कि कोई लड़की उनसे शादी को राज़ी होगी भी कि नहीं।

लाजपत नगर ब्लास्ट केस से भी लिंक है
समलेटी ब्लास्ट केस में 12 लोगों को आरोपी बनाया गया था। अब तक इनमें से सात बरी किए जा चुके हैं। एक को 2014 में बरी किया गया। बाकी अब जाकर बरी हुए हैं। इन छह में से पांच तो रिहा हो गए। बाकी बचा एक- जावेद खान अभी तिहाड़ जेल में बंद है। वो लाजपत नगर ब्लास्ट केस में भी आरोपी है। लाजपत नगर केस में भी दिल्ली पुलिस को हाई कोर्ट से डांट पड़ चुकी है। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि पुलिस ढिलाई से जांच की। उस केस में मुहम्मद अली भट्ट और मिर्ज़ा निसार हुसैन को बरी कर दिया था। इन दोनों को पहले मौत की सज़ा मुकर्रर हुई थी।

अब जबकि ये पांचों बरी होकर रिहा हो गए हैं, सबसे बड़ा सवाल है कि उनके जीवन के 23 साल कहां गए? कहां गए का जवाब सबको मालूम है- जेल में। मगर उन 23 सालों के बर्बाद हो जाने का जिम्मेवार कौन है? कौन है, जिसकी जवाबदेही तय होगी? इन पांचों की भोगी सारी यातनाओं के लिए, उनके परिवार ने जो झेला उन सारी तकलीफ़ों के लिए कौन जवाब देगा, इन सवालों का कोई जवाब मालूम नहीं है।

By #AARECH