लखनऊ, यूपी
सभी राजनैतिक दलों को मुसलमानों का वोट तो चाहिए पर कोई भी दल मुस्ल्मि समाज को न तो उनके अधिकार देने को तैयार है ना ही उन्हे सत्ता में भागीदार बनाने को तैयार है। समस्त तथाकथित सेकुलर दल मुस्लिम सामज को सियासी ग़ुलाम बनाकर ही रखना चाहते हैं ताकि हमारा समाज कुली बन सेकुलरिज़्म की गठरी को ढ़ोता रहे और इन दलों को सत्ता तक पहुँचाता रहे और अपने नेतृत्व और भागीदारी की बात करना तो दूर उसके बारे में सोचे भी न। इसी साज़िश के तहत प्रदेश में भी जो महागठबंधन बना है उसमें भी कहीं मुस्लिम नेतृत्व वाले राजनैतिक दलों को हिस्सेदारी नही दी गई है और ना ही सेकुलरिज़्म की मसीहा कही जाने वाली कांग्रेस ने अपने नेतृत्व में बने गठबंधन में किसी मुस्ल्मि नेतृत्व वाले दल को कोई जगह दी है।
दोनों गठबंधन का मुस्लिम नेतृत्व वाले दलों से दूरी बनाए रखना ये साफ दर्शाता है कि ये दल मुसलमानों को अपना बंधुआ राजनैतिक मज़दूर समझते है और ये सोचते हैं कि है कि भाजपा का खौफ दिखाकर हम मुसलमानों का वोट तो ऐसे ही ले लेंगे तो इनके नेतृत्व को हिस्सेदारी देकर क्यों इन्हे आत्मनिर्भर बनाए और राजनैतिक तौर पर संगठित व जागरूक होने दें। उपरोक्त बातें राष्ट्रीय ओलमा कौन्सिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना आमिर रशादी ने लखनऊ में पार्टी कार्यालय में प्रेस वार्ता को सम्बोधित करते हुए कही।
उन्होने कहा कि, ‘‘भाजपा को सत्ता से बाहर हम भी करना चाहते हैं ताकि मंहगाई, गरीबी, सम्प्रदायिक्ता, सामंतवाद से देश को बचाया जा सके और इसीलिए हम लगातार कोशिश करते रहे कि फासिस्ट ताकतों के विरूध्द सभी विपक्षी दल एकजुट होकर लड़े और भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखांए परन्तु कांग्रेस हो या महागठबंधन ये हमारा समर्थन लेने को तैयार है परन्तु हमे हिस्सेदारी और हमारे नेतृत्व को कबूल करने को तैयार नही हैं। हमने तो बड़ा दिल दिखाते हुए 2017 के विधानसभा चुनावों में मायावती साहेबा की गुज़ारिश पर दलित लीडरश्पि को खत्म करने की साज़िश को नाकाम बनाने हेतु उन्हे पूर्ण समर्थन दे दिया था और बाबा आम्बेडकर के लिए मुस्लिम लीग के बलिदान को दोहराया था परन्तु उसका भी लिहाज़ नही रखा गया।
उन्होने कहा कि आज कांग्रेस, अपना दल, महान दल जैसे छोटे दलों से गठबंधन कर चुकी है, यहां तक कि NRHM जैसे बड़े घोटाले के आरोपी बाबूलाल कुशवाहा तक से गठबंधन कर चुकी है परन्तु मुस्ल्मि लीडरशिप को एक घोटालेबाज़ से भी बदतर समझा जाता है और उन्हे साथ लेने को नही तैयार है। बसपा व रालोद से महागठबंधन के बाद सपा ने जनवादी पार्टी और समानता दल जैसी छोटी पार्टीयों से भी गठबंधन किया है परन्तु उसे भी मुस्लिम लीडरशिप का अस्तित्व नही चाहिए। इनमे से कोई भी दल किसी भी मुस्लिम नेतृत्व वाले दल के साथ गठबंधन करने को तैयार नही हैं क्योंकि ये चाहते हैं कि मुस्लिम नेतृत्व वाले दलों को राजनैतिक अछूत बना दिया जाए ताकि पूरा समाज ही राजनैतिक नेतृत्व, भागीदारी और अधिकारों की बात करना ही छोड़ दे।
मुस्लिम नेतृत्व वाले कुछ दलों ने कांग्रेस और महागठबंधन के साथ गठबंधन का हिस्सा बनने की कोशिश भी की ताकि वोटों का बिखराव न हो परन्तु इन्हे भाजपा को रोकने से ज्यादा मुस्लिम समाज की राजनैतिक भागीदारी को रोकने में ज्यादा दिलचस्पी है। वरना क्या वजह है कि न तो कांग्रेस को और ना ही महागठबंधन को पूरे प्रदेश में 22 प्रतिशत वोट वाले कोई भी मुस्लिम नेतृत्व वाला दल गठबंधन का हिस्सा बनाने लायक नही मिला जबकि 1.5 प्रतिशत वोट वाले जाट बिरादरी को ता ऐसी ही कुश्वाहा, मौर्या, पटेल आदि बिरादरी के दलों को भी हिस्सेदारी दे दी गयी है।
उन्होने कहा कि ये सेकुलर दल मुसलमानों को सिर्फ अपना राजनैतिक ग़ुलाम समझते हैं और पूरे समाज के वोट को अपना माल समझते हैं और इसी कारण अभी पिछले हफते मुस्लिम नेतृत्व वाले एक 40 साल पुराने दल के वरिष्ठ नेताओं को राहुल गांधी दो दिन अपने दिल्ली कार्यालय पर बैठाए रखे और फिर बिना उनसे मिले उन्हे बैरंग लौटा दिया तो वही यूपी में सपा ने एक मुस्लिम नेतृत्व वाले दल को साल भर से अधिक भ्रम में रखकर अपने पीछे दौड़ाते रहे और उपचुनावों मे उनका वोट तक ले लिया और जब हिस्सेदारी देने का समय आया तो उन्हे भी किनारे कर दिया जबकि उनके द्वारा ही लाए गए एक अन्य दल को महागठबंधन का अधिकारिक तौर पर हिस्सेदार बना दिया। ऐसी स्थिति में ये साफ है कि मुस्लिम राजनैतिक नेतृत्व को ये तथाकथित सेकुलर दल उभरने ही नही देना चाहते, इन्हे बस मुसलमान जी हुज़ूरी और इनका डण्डा-झण्डा ढ़ोने के लिए ही चाहिए। क्या ये भाजपा के हार्ड हिन्दुत्व की आड़ में इन सेकुलर दलों का सॉफ्ट हिन्दुत्व वाला चेहरा है?
इन हालात हम जैसे दलों को अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए स्वंय ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बनना होगा और अपने समाज के साथ ही अन्य शोषित और पीड़ित वर्गों की आवाज़ बन राजनैतिक संघर्ष जारी रखना होगा और हम इसके लिए तैयार हैं। साथ ही हमारा ये भी मानना है कि देश से भाजपा की अलोकतांत्रिक, भ्रष्ट, फाशिस्ट, सामंतवादी सरकार को सत्ता से बाहर करना भी देशहित में अतिआवश्यक है और इसके लिए हर मुमकिन प्रयास किया जाना चाहिए और इसीलिए हमने ये फैसला किया है कि राष्ट्रीय ओलमा कौन्सिल केवल सीमित लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी जहां हमारा संगठन मज़बूत हो या जहां हमारा प्रतिनिधित्व अतिआवश्यक हो। हम प्रदेश की केवल 10 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार रहे हैं और मज़बूती से इन्हे ही लड़ाऐंगे क्योंकि लोकतंत्र में वही समाज ज़िदा होता है जिसका राजनैतिक नेतृत्व और प्रतिनिधित्व होता है और साथ ही हमने ये भी फैसला किया है कि जिन अन्य सीटों पर मुस्लिम तथा अन्य वंचित समाज के नेतृत्व वाले दल अपने प्रत्याशी लड़ा रहे हैं कौन्सिल उन प्रत्याशियों को अपना समर्थन देगी।