झारखंड:
झारखंड चौकीदार व दफादार पंचायत के अध्यक्ष कृष्ण दयाल सिंह यह कहते हुए उत्तेजित हो जाते हैं. उन्हें इस बात की तकलीफ है कि मौजूदा वक्त में चौकीदार शब्द का राजनीतिकरण हो चुका है. कोई चिल्ला-चिल्ला कर खुद को चौकीदार कह रहा है, तो कोई ‘चौकीदार चोर है’ के नारे लगवा रहा है.
कृष्ण दयाल सिंह ने कहा – ऐसे राजनेता चौकीदारी व्यवस्था को ही नहीं समझते. गुप्त काल से चली आ रही यह व्यवस्था उनके लिए राजनीति का मुद्दा है. उनके मन में हमारे लिए न तो सम्मान है और न उन्हें हमारी दिक्कतों से कोई मतलब. इस कारण झारखंड के करीब दस हजार चौकीदारों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा. तमाम आंदोलन को बावजूद मुख्यमंत्री रघुवर दास को हमसे मिलने की फुर्सत भी नहीं है. अब वे किस अधिकार से खुद को चौकीदार कह रहे हैं. उन्होंने पिछले चार साल से हमसे कोई मुलाकात नहीं की.
भूख से मर गए दस चौकीदार:
उन्होंने दावा किया कि नौकरी से बर्खास्त कर दिए गए दस चौकीदारों की मौत भूखमरी और बीमारी से हो गई है. सिमडेगा जिले के एक चौकीदार को जैसे ही बर्खास्तगी का नोटिस थमाया गया, उनको हर्ट अटैक हुआ और उनकी तत्काल मौत हो गई.
इसके बावजूद नौकरी से बर्खास्त किए गए सैकड़ों चौकीदारों की सेवाएं वापस लेने के लिए झारखंड सरकार ने कोई प्रयास नहीं किया.
गृह विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि साल 1995 में बिहार की तत्कालीन लालू यादव की सरकार ने चौकीदारों के आश्रितों को चौकीदार की नौकरी देने का प्रावधान किया था.
साल 2000 में अलग राज्य बनने के बाद झारखंड में करीब सत्रह हजार चौकीदारों के पदों की स्वीकृति मिली. जून-2002 में झारखंड की तत्कालीन गृह सचिव सुषमा सिंह के वक्त गृह विभाग ने एक पत्र निकाल कर बिहार सरकार की उस व्यवस्था को झारखंड में भी जारी रखने का आदेश दिया.
इसके बाद चौकीदारों की सेवानिवृति के बाद उनके नामित आश्रितों की नियुक्तियां की गईं. लेकिन, झारखंड सरकार ने साल 2014 की 23 मई को एक आदेश निकाल कर वैसे सभी चौकीदारों की सेवाएं स्थगित कर दी, जिनकी नियुक्ति जनवरी-1990 के बाद चौकीदारों के नामित आश्रित होने के कारण की गई थी.
इस कारण करीब 600 चौकीदार बर्खास्त कर दिए गए. तबसे यह मामला विवादों में है.