डॉ अशफाक अहमद
गुलाबी शहर जयपुर से 100 किलोमीटर की दूरी पर एक ऐसा शहर बसा है जिसे तबज़ीब और अदब का गुलशन कहा जाता है। यहां के लोग इसे राजस्थान का लखनऊ भी कहते हैं। मीठे खरबूजों के लिए मशहूर ये शहर राजस्थान में हिंदू-मुस्लिम एकता का मस्कन भी है। देश में कहीं भी सांप्रदायिक तनाव हो लेकिन ये शहर हमेशा इससे दूर अपनी तहज़ीब को संजोय रखता है।
साल 2018 में राज्य में होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर ये शहर अचानक चर्चा में आ गया है। दरअसल यहां से दो दिग्गज चुनावी रणभूमि में किस्मत आज़मा रहे हैं। ये दोनों खास अपने-अपने दलों के लिए खास हैं। एक तरफ हैं राजस्थान कांग्रेस के मुखिया सचिन पायलट की किस्मत दाव पर गली है तो दूसरी तरफ राजस्थान सरकार में मंत्री और बीजेपी के टिकट पर एकलौते चुनाव मैदान में उतरे मुस्लिम उम्मीदवार यूनुस खान हैं।
दोनों उम्मीदवार बाहरी
देखा जाए तो टोंक के लिए न तो कांग्रेस के सचिन पायलट उसकी अपनी मिट्टी से उपजे नेता हैं और न ही बीजेपी के यूनुस खान। दोनों नेता कुछ मजबूरियों के चलते यहां से मैदान में उतरे हैं। सियासी मजबूरियां हमेशा मन और इच्छा पर भारी पड़ती हैं। तब और भी, जब जीत और हार के सवाल राजनीतिक भविष्य पर सवालिया निशान लगाने की ताकत रखते हों।
सचिन पायलट की उम्मीदवारी
कहा जाता है कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट पहले चुनाव में उतरना नहीं चाहते थे। वो हवाओं में रहकर अपनी पार्टी के उम्मीदवारों में पक्ष में चुनाव प्रचार करना चाह रहे थे। इसी बीच जब अशोक गहलोत मैदान में कूद गए तो सचिन पायलट की मज़बूरी बन गई कि वह मैदान में उतरे।
यूनुस खान की उम्मीदवारी
राजस्थान सरकार में अकेले मुस्लिम मंत्री और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधियां के करीबी माने जाने वाले यूनुस खान, डीडवाना से लड़ते रहें हैं। दरअसल पिचली विधान सभा में बीजेपी से दो मुस्लिम उम्मीदवार हबीबुर्रहमान और यूनुस खान चुनाव जीते थे। इस बार के चुनाव में हबीबुर्रहमान का टिकट काट दिया गया। दूसरी तरफ यूनुस खान की सीट डीडवाना से आनन-फानन में बीजेपी ने अजीत सिंह मेहता को टिकट दे दिया। वहीं यूनुस खान को सचिव पायलट के सामने टोंक विधान सभा में खड़ा कर दिया। अजीत सिंह मेहता यहीं से मौजूदा विधायक हैं।
टोंक का वोट गणित
टोंक विधानसभा सीट पर 2 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। इनमें करीब 70 हजार मुस्लिम मतदाता हैं। इसके बाद दलित और गुर्जर आबादी है। यहां मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। जाहिर है, सचिन पायलट और यूनुस खान की इस लड़ाई में टोंक का मजहबी गणित अहम हो जाता है। शायद यही वजह रही कि ऐन वक्त पर भाजपा ने रण का सिपहसालार बदल दिया यानी अजीत मेहता की जगह यूनुस खान को आगे कर दिया।
सचिन पायलट भर पाएंगे उड़ान
सचिन पायलट 2004 में दौसा और 2009 में अजमेर से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे थे। वो पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरे हैं। राजस्थान के नक्शे पर टोंक को देखा जाए तो ये दौसा से करीब 120 और अजमेर से 190 किलोमीटर की दूरी पर है। यानी, अपने प्रभाव क्षेत्र का फायदा पायलट को मिल सकता है। जो बात उनके खिलाफ है वो है परंपराओं का टूटना और यहां से उनके सामने मुस्लिम उम्मीदवार का सामने आना। कांग्रेस के सामने बस यही एक चुनौती है, वहीं अगर नतीजा यूनुस खान के पक्ष में नहीं आता तो बीजेपी से कोई मुस्लिम चेहरा विधान सभा में नहीं पहुंच पायेगा।
मज़बूत उम्मीदवार हैं यूनुस खान
डीडवाना से चुनाव जीते यूनुस खान राजस्थान सरकार के कद्दावर मंत्री हैं। उनके पास पीडब्ल्यूडी विभाग है। यूनुस को वसुंधरा राजे का करीबी भी माना जाता है। टोंक में पार्टी का उन्हें उतारना काफी कुछ कहता है। उनके अलावा सरकार में हबीबुर्रहमान भी थे, लेकिन जब उन्हें टिकट नहीं मिला तो वो कांग्रेस में चले गए। यूनुस खान, 200 उम्मीदवारों में भाजपा के इकलौते मुस्लिम उम्मीदवार हैं। पार्टी ने उन्हें दमदार समझकर टोंक में टांग तो दिया लेकिन उनके सामने चुनौतियां कई हैं।
टोंक के अब तक के नतीजे
46 साल में ये पहली बार हुआ है कि इस मुस्लिम बहुल सीट पर कांग्रेस ने किसी गैर-मुस्लिम उम्मीदवार को उतारा हो। दरअसल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के मैदान में आने से कई चर्चाएं हैं। टोंक विधानसभा सीट पर बीते 7 चुनावों के नतीजों पर नज़र डाले तो ये बेहद चौकाने वाले हैं। ये सीट कांग्रेस के लिए इस कदर असुरक्षित है कि 7 में से सिर्फ दो बार कांग्रेस को जीत मिली और 5 बार हार का सामना करना पड़ा।
टोंक में कितने उम्मीदवार
बीजेपी के यूनुस खान का टोंक से कोई सीधा वास्ता नहीं है। वो दो बार 2003 और 2013 में डीडवाना से विधायक रहे हैं। टोंक में बीएसपी और एक निर्दलीय उम्मीदवार भी मुस्लिम है जो मैदान में उतरा है, यानी टोंक में कुल तीन मुस्लिम उम्मीदवार हो गए हैं। ऐसे में, यूनुस खान को कुछ नुकसान होना तय है। सचिन पायलट अपने प्रचार में पूछ रहे हैं कि क्या योगी आदित्यनाथ, अपने उम्मीदवार का प्रचार करने टोंक नहीं आएंगे। कहीं न कहीं सचिन विरोधी पर मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल करने की कोशिश में है।
राजस्थान में कई ऐसी सीटें पर जिन पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं इनमें वसुंधरा राजे और मानवेंद्र के बीच हो रहे मुकाबले पर भी सबकी नज़र है। दूसरी तरफ सचिन पायलट और यूनुस खान के बीच की लड़ाई पर भी लोगों नज़रे लगाए बैठे हैं। ये फैसला तो 11 दिसंबर को वोटों की गिनती के बाद ही होगा।