अशरफ इस्लाही
आज़मगढ़, यूपी
19 सितम्बर 2008… दिल्ली के जामिया नगर के बटला हाउस… रमज़ान का महीना था, ईद करीब थी तो बाज़ारों मे ईद की खरीदारों की भारी भीड़ थी। ऐसे में किसी को क्या पता था कि जिस चीज की तैय्यारी कर रहे हैं वह कुछ ही देर मे धरी की धरी रह जायेगी। मीडिया द्वारा आज़मगढ मे यह खबर आग की तरह फैलती है कि दिल्ली में संजरपुर के दो युवा जो दिल्ली में रहकर उच्च शिक्षा ले रहे थे वे आतंकवाद के इल्ज़ाम में मार दिये गये हैं। फिर क्या था हर तरफ मातम ही मातम नज़र आने लगा। संजरपुर व आस पास के क्षेत्रों मे आईबी, खुफिया एजिंसियों व पुलिस की गाड़ियां नज़र आने लगीं। हर तरफ जूतों की टाप सुनाई देती, इलेक्ट्रानिक व प्रिन्ट मीडिया का तांता लगने लगा, और तसल्ली देने वालों की भीड़ नज़र आती।
पूरे इलाके में और हमारे दिलों मे एक भयानक डर व खौफ ऐसा पैदा हुआ कि बता पाना मुश्किल है। हर तरफ खामोशी ही खामोशी, शाम होते ही बाजारें, सड़कें व गांव वीरान हो जाते थे। हर कोई संजरपुर को अपना कहने से डरता था, सभी मुस्लिम नेता, मिल्ली तंजीमें व मसीहाई का राग अलापने वाले खामोश थे। किसी ने भी मदद करने, इस के विरुद्ध आवाज़ उठाने या संजरपुर के दुख दर्द को पार्टी के उच्च नेताओं व सरकार तक पहुंचाने की हिम्मत नही की।
आज़मगढ़ से आतंकगढ़
इसी बीच पूरे आज़मगढ़ को आतंकवाद की नर्सरी व आतंकगढ़ से मशहूर कर दिया गया। आज़मगढ़ निवासी होने के कारण दूसरी स्थान पर शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों व सर्विस कर रहे लोगों को फ्लैट व छात्रावास से निकाला जाने लगा। उन्हें किराये का मकान मिलना तो दूर रिश्तेदार भी पनाह देने से दूर भागने लगे थे। आज़मगढ़ के दर्जनों युवाओं के नाम की लिस्ट बना कर गिरफ्तार किया जाने लगा। उस के पीछे सरकार व खुफिया एजेंसियों का मकसद सिर्फ यह था कि मुसलमानों को समाजी, मआशी व शिक्षा हर तरह से कमज़ोर किया जाये।
डर से आज़ादी की नई तहरीक हुई शुरु
ऐसे में आज़मगढ़ के आम लोग, ओलमा व बुद्धजीवियों ने सोच विचार कर रास्ता निकाने की ठानी। ऐसे में नाम सामने आया… मौलाना आमिर रशादी व मौलाना ताहिर मदनी का। उनकी आवाज़ पर हामी भरते हुये ओलमा कौंसिल उत्तर प्रदेश नाम की एक तहरीक सामने आई। यही तहरीक आज राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल के नाम से मौजूद है। इस तहरीक ने एक बहुत भारी भीड़ के साथ आज़मगढ़ से पूरी ट्रेन भर कर दिल्ली व लखनऊ में इसके खिलाफ धरना-प्रदर्शन किया। उस वक्त दिल्ली राज्य व केन्द्र दोनों जगह कांग्रेस की सरकार थी। इसलिये कांग्रेस के खिलाफ हर तरफ खींचातानी होने लगी जो की सही भी था। सभी ने एक आवाज़ में इन्साफ की मांग की। सबसे यहीं कहा कि यह इन्काउंटर फर्ज़ी है और हमारे बच्चे आतंकवादी नहीं हैं। आज़मगढ़ के ओलमा, बुद्धजीवियों, अदीबों, शायरों और इन्साफ पसंदों का ज़िला रहा है।
इंसाफ का इंतज़ार
इतनी अवाज़ उठने के बाद भी आज़ तक इंसाफ का इंतज़ार है। हालांकि संविधान के अनुछेद 176 के तहत किसी भी पुलिस मुठभेड़ की जांच किसी दूसरी एजेन्सियों द्वारा करायी जा सकती है। पोस्ट मार्टम रिपोर्ट भी चींख चींख कर कह रही है कि इन्काउंटर फर्जी है। गोली सिर के ऊपर लगी है, जबकि मुठभेड़ में गोली सामने लगेगी। आखिर हमें इन्साफ मिलेगा कब ? कब होगी इसकी जांच ? यहीं सवाल हर कोई पूछ रहा है।
इनकाउंटर के दस साल
इस फर्जी कांड को हुये 10 वर्ष पूरे हो रहे हैं। कई लोग हैं जिनकी आंसू सूख चुके हैं, कुछ तो हार मान कर बैठ गये हैं। मगर याद रखना होगा कि हमेशा जीत सच्चाई की होती है। हमें निराश होकर बैठना नही चाहिये। कुरान मजीद की आयत है जिस का अनुवाद है कि निराशा कुफ्र है। इसलिये इस के खिलाफ हमेशा आवाज़ उठाते रहेंगे। ये हमारा संविधानिक अधिकार भी है।
अरविंद केजरीवाल से सवाल
2013 के दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने वादा किया था कि अगर हमारी सरकार बनती है तो बटला हाउस फर्जी इन्काउंटर की एसआईटी गठित कर जांच करायेंगे। मगर दो बार सरकार बनने के बाद भी जांच नहीं करवायी। वहीं पिछले दिनों 84 के सिख दंगों के लिये एसआईटी बना दी है जिस का वादा भी नही किया था। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल दोरुखापन क्यूं ? आखिर मुसलमानों से इतनी नफरत क्यूं ? इस मुठभेड़ की जितनी दोषी कांग्रेस है उतना ही केजरीवाल व उसकी सरकार है। इसलिये केजरीवाल के खिलाफ भी धरना होना ज़रूरी है, उन्हें याद दिलाना है कि वह अपना किया वादा पूरा करें।
दिल्ली में करेंगे प्रदर्शन
19 सितम्बर को बटला हाउस फर्जी इन्काउंटर की दसवीं बर्सी है। राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल हर वर्ष धरना प्रदर्शन करती है और इस बार भी दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के आवास घेरने के साथ साथ मुम्बई, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश सहित देश व प्रदेश के कोने कोने मे धरना देने का अह्वान किया है। इस लिये हमें चाहिये कि हम उस का साथ देते हुये इस मुठभेड़ के खिलाफ प्रदर्शन करें। यह प्रदर्शन उस वक्त तक जारी रखें जब तक कि इन्साफ ना मिल जाये। हम पर लगे आतंकवाद का दाग मिट ना जाये। केंद्र में बीजेपी की सरकार है, सबका साथ सबका विकास के नारा को ध्यान में रखते हुये हम मांग करते हैं कि उच्च न्यायालय के किसी वर्तमान जज की अगुवाई में इस मुठभेड़ की जांच हो। इस में हमारे जनपद आज़मगढ़ के दो युवा आतिफ अमीन व साजिद के साथ साथ पुलिस इंसपेक्टर एमसी शर्मा भी शहीद हुये हैं। इसके साथ ही दर्जनों गिरफ्तार किये गये हैं। जांच होने से दूध का दूध और पानी का पानी अलग हो जायेगा और हमें इन्साफ मिलेगा।
(अशरफ़ इस्लाही ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती उर्दू अरबी फारसी विश्वविद्यालय में अध्यन्नरात हैं। संपर्क- 08090805596)