डॉ अशफाक अहमद
लखनऊ, यूपी
सहारनपुर के देवबंद में मौजूद दुनियाभर में मशहूर इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद के नाम से एक फतवा ने मुसलमानों के बीच भुचाल ला दिया। इस फतवे में ये कहा गया कि सुन्नी मुसलमान शियों के यहां खाने-पीने से पहरेज़ करें और इफ्तार पार्टी या शादी की दावत में जाने से परहेज़ करें। फिर क्या था फतवे की सच्चाई जाने बगैर सोशल मीडिया पर लोग ज़हर उगलने लगे। इसमें सबसे आगे ऐसे लोग थे जो अपने आप को मुसलमानों का पढ़ा-लिखा तबका और बुद्धिजीवी वर्ग का बताते हैं।
इस फतवे को लाने के दावा करने वाले देवबंद के मोहल्ला बड़जिया उलहक निवासी सिकंदर अली ने बताया कि ये फतवा उसे दारुल उलूम से मिला है। इसके बाद तो देशभर के मीडिया ने इस फतवे पर खबर चला दी। नेशनल मीडिया ने इसमें खूब मसाला लगाया और दरार पैदा करने की पूरी कोशिश की। इस बीच शिया और सुन्नी मसलक के कई तथाकथित लोगों को मौके हाथ लग गया और उन्होंने दारुल उलूम देवबंद पर निशाना साधने में देरी नहीं की। ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने अपनी आलोचना में दारुल उलूम के खिलाफ अपशब्दों का भी इस्तेमाल किया। अफसोसनाक बात ये है कि ये सब सच्चाई जाने बगैर हो रहा था। सबसे बड़ी बात ये है कि इस खेल में कई सीनियर पत्रकारों और खासकर मुस्लिम पत्रकारों ने बगैर तस्दीक किए दारुल उलूम देवबंद को निशाने पर ले लिया।
इस बीच समाज के कुछ दानिश्वर और पत्रकारों ने इसकी सच्चाई जानने के लिए दारुल उलूम का रुख किया तो मामला बिल्कुल पलट गया। दरअसल दारुल उलूम देवबंद ने बताया कि रमज़ाम के पाक महीने में मदरसा बंद रहता है। इस दौरान मदरसा के फतवा विभाग यानी दारुल इफ्ता भी बंद रहता है। ऐसे में किसी को फतवा देने के सवाल ही नहीं उठता है। दारुल उलूम देवबंद का बयान सामने आने के बाद तथाकथित लोग बैकफुट पर नज़र आने लगे। इनमें से कई तो शिया-सुन्नी इत्तेहाद की दुहाई देने लगे।
राजधानी लखनऊ के ऐशबाग ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने इस फतवे के बाबत कहा कि रमज़ान में मदरसे बंद रहते हैं, दारुल उलूम भी एक मदरसा है। ऐसा फतवा जारी नहीं हो सकता है जिससे सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वालों को मौका हाथ लग जाए। उन्होंने कहा कि ये कुछ लोगों की साजिश हो सकती है। इसी तरह कई आलिमों ने दारुल उलूम को टार्गेट करने पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। लखनऊ के कुछ नौजवान पत्रकारों ने इस सच्चाई को सामने लाने में काफी मेहनत की। वहीं कुछ सीनियर पत्रकारों ने फर्ज़ी फतवे के बिना पर दारुल उलूम के खिलाफ ज़हर उगल कर अपनी बेवकूफाना हरकत से सबको शर्मसार कर दिया।
एक बात तो तय है कि एक बड़ी साजिश के तहत मुसलमानों से जुड़ा कभी फतवा को कभी कोई दूसरा मुद्दा सामने लाकर मीडिया देश के गंभीर मुद्दे जैसे बेरोजगारी, किसानों की आत्महत्या आदि से आम लोगों का ध्यान भटका रहा है। ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि कुछ लोग या संस्थाएं इस पर बाकायदा काम कर रही है। पर एक सवाल जो सबसे ज़्यादा ज़ेहन में कौंध रहा है वो ये है कि ऐसे लोग जो अपने आप को पढ़ा-लिखा और बुद्धिजीवी कहते हैं वो इस साजिश में कैसे फंस जा रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं ऐसे लोग भी इस साजिश का हिस्सा हैं।