लखनऊ, यूपी
जेल में बीते 8 महीने मेरे लिए 8 सौ साल के बराबर थे। मैं बार-बार सोचता था कि आखिर मेरा कसूर क्या है। क्या मौत की काल में समा रहे बच्चों को बचाना गुनाह है। मैं क्या मेरा जगह कोई भी इंसान वहां होता तो वो बच्चों को बचाने की कोशिश करता। मेरी किसी से शिकायत नहीं है। शायद ये मेरी किस्मत में था। ये बातें बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी से हुई बच्चों की मौत में फरिश्ते बन कर उभरे डॉ कफील खान ने कहीं।
डॉ कफील खान लखनऊ में इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल हॉरमोनी एंड अपलिफ्टमेन नामक संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने के दौरान कहीं। संस्था ने डॉ कफील खान को बतौर गेस्ट बुलाया था। एक सवाल के जवाब में डॉ कफील ने कहा कि मैं नहीं मामनता कि मेरा मुसलमान होना ही मेरा जुर्म था। उन्होंने कहा कि दरअसल ये सिस्टम ही ऐसा है कि इसमें ऐसे ही काम करना पड़ता है।
डॉ कफील ने बताया कि गोरखपुर और आसपास के दर्जनों ज़िलों में हालात बहुत खराब हैं। हंसता-खेलता बच्चा थेड़ी देर में लड़खड़ाने लगता है। फिर तेज़ बुखार से पीड़ित हो जाता है। ये बीमारी ज़्यादातर गरीबों को होती है। अगर तुरंत अस्पताल न पहुंचे तो पांच दिन में ही बच्चा काल में समा जाता है। डॉ कफील ने कहा कि इससे निजात पाने के लिए सरकार को बड़े पैमाने पर काम करना पड़ेगा।