डॉ अशफाक अहमद
लखनऊ, यूपी
आज़मगढ़ ज़िले के सरायमीर कस्बे में करीब 10 दिन पहले हुए बवाल के बाद अब पूरी तरह से शांति है। कस्बे में व्यवासायिक गतिविधियां आम दिनों की तरह शुरु हो गई हैं। लोग एक दूसरे से मिलने जुलने लगे हैं। दरअसल ज़िले में आए नये कप्तान रविशंकर छवि ने अपनी आमद के दूसरे दिन ही सरायमीर थाने में पीस कमेटी की मीटिंग की। उन्होंने आम लोगों में पुलिस के खिलाफ गुस्से को समझा और भरोसा दिलाया कि किसी के साथ अन्याय नहीं होगा।
पर उन लोगों का क्या… जिनके अपने बेकसूर होते हुए भी जेल भेज में बंद हैं। इस दौरान उन पर क्या गुज़री और ऐसे तनाव भरे मौके पर ज़िलो के नेताओं ने क्या भूमिका निभाई। ये सवाल हर तरफ मुंह बाए कड़ा है। सरायमीर कस्बे में फैयाज़ अहमद रहते हैं। उनकी बटर-टोस की दुकान है। एक बेटा है जिसकी उम्र 15 साल है। बवाल वाले दिन वो स्कूल से लौटा और रोज़ की तरह अपने पिता की दुकान पर उनका हाथ बंटाने पहुंचा ही थी कि पुलिस ने उसे उठा लिया। वो अभी जेल में बंद है और उसका इंतेहान छूट गया।
15 साल के उमर (बदला हुआ नाम) को पुलिस ने कहां रखा इस बात की जानकारी उसके पिता फैयाज़ को नहीं थी। पीएनएस से बातचीत में फैयाज़ अहमद का दर्द छलक उठता है। कहते हैं कि जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही बेटा गायब है, किसी को कोई खबर नहीं। न कोई नेता आर रहा है और नही हमारी हिम्मत की हम थाने जाकर पता करे। बेटे की मां का हाल बहुत बुरा है… वो रो-रो कर सिर्फ बेटे की सलामती की दुआ मांग रही है। हमें तो उस दौरान खाने तो छोड़िए हलक से पानी की धूंट भी नहीं उतर रही थी।
सरायमीर पुलिस ने 17 लोगों को गिरफ्तार किया। इनमें से कुछ को काफी मारा-पीटा। अब दो लोग अस्पताल में भर्ती हैं। हर परिवार का दर्द है… दरअसल गिरफ्तार ज़्यादातर लोग दुकानदार या फिर फेरी वाले हैं। कई घरों में खाने को लाले पड़े हैं। इस सब के बीच स्थानीय या ज़िले के नेता कहां है। क्या उन्हें इसकी खबर नहीं या फिर वो इस खबर से खुद को बेखबर किए हुए थे। इसी सवाल की तलाश में हमने कई लोगों से बात की और आज़मगढ़ के नेताओं और राजनीतिक दलों की सरायमीर बवाल में भूमिका के बारे में जानने की कोशिश की।
बेदर्द निकली समाजवादी पार्टी
मुसलमानों की सबसे ज़्यादा हितैसी होने का दावा करने वाली सपा के नेताओं ने इस पूरे मामले में आंखें बंद कर ली थी। मुलायम सिंह यहीं से सांसद हैं पर वो तो राष्ट्रीय राजनीति में व्यस्त हैं उन्हें ज़िले के पीड़ितों से क्या लेना देना। निजमाबाद के विधायक आलमबदी को ईमानदारी का तमगा मिला हुआ है। वो इसी की बदौलत हर बार चुनाव जीतते हैं। सरायमीर उनके क्षेत्र में आता है। वो बवाल और उसके बाद अपने घर पर आराम करते रहे। अभी दो दिन पहले वो स्थानीय चेयरमेन को मिठाई खिलाते नज़र आए जिस पर फैयाज़ अहमद और तमाम लोग आरोप लगाते हैं वो उसने अपने गिरोह के साथ पुलिस की मिलीभगत से मुसलमानों की दुकानों पर तोड़फोड़ की। विधायक आलमबदी उम्र के इस पड़ाव पर मिठाई ही तो खिला सकते हैं।
ज़िले के रहने वाले और ज़िले की राजनीति में दखल ऱकने वाले अखिलेश के करीबी महाराष्ट्र सपा के अध्यक्ष और विधायक अबु आसिम आज़मी सरायमीर बवाल के दूसरे दिन आज़मगढ़ में थे। उनका घर सरयामीर से चंद कदमों की दूरी पर है। वो यहां से पड़ोसी ज़िले जौनपुर में एक शादी में दावत खाने पहुंचे। इसके साथ ही उन्होंने एक अस्पताल का उद्घाटन किया। पर सरायमीर मामले पर उनकी चुप्पी कई सवालों को जन्म देती है। एक तरफ उनके समर्थक उन्हें सबसे बड़ा नेता बताते हैं तो दूसरी तरफ वो न तो पीड़ितों से मिले, न थाने गए और ही इस मसले पर अधिकारियों से बात की।
सपा की ज़िला कमेटी ने तो इससे एक कदम आगे निकल कर पूरे मामले के लिए उलेमा कौंसिल के ज़िम्मेदार ठहरा दिया। अब सवाल ये है कि अगर कोई ज़िम्मेदार है तो क्या सपा के नेता किसी बेकसूर की मदद के लिए आगे नहीं आएंगे। इस मामले में ज़िले के किसी सपा नेता ने पीड़ितों की कोई मदद नहीं की। दीदारगंज के पूर्व विधायक आदिल शेख सपा के सत्ता में रहते सरायमीर और आसपास के हर मामलों में अकसर हस्तक्षेप करते थे। पर सरायमीर में हुए बवाल पर वो तो बिल्कुल गायब ही रहे।
बहुजन समाज पार्टी की आंखें बंद
सरायमीर बवाल में बीएसपी के नेताओं ने तो अपनी आंखें ही बंद कर ली थी। पीड़ितों की मदद के लिए न कोई नेता सामने आया और ही उनका बयान। अकबर अहमद डम्पी लोक सभा 2019 का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। इस मामले में वो कहीं दूर-दूर तक नज़र नहीं आएं। हां… जब चुनाव होगा तभी नज़र आएंगे। सरायमीर की बगल की विधान सभा क्षेत्र दीदारगंज से बीएसपी के बड़े नेता सुखदेव राजभर विधायक हैं। पूरे मामले में वो नदारद रहे। बगल की दूसरी सीट फूलपुर से चुनाव लड़ने वाले अबुल कैस आज़मी का पता ही नहीं चला कि वो आज़मगढ़ में हैं या फिर दुबई। सरायमीर से सटे संजरपुर के शाहिद संजरी बीएसपी के टिकट दावेदारों में हमेशा रहते हैं। बवाल के समय वो ज़िले में थे लेकिन कही दिखाई नहीं दिए।
कांग्रेस के होने पर सवाल
सरायमीर बवाल मामले में ज़िला कांग्रेस या फिर इलाकाई कांग्रेस का कोई नेता दिखा ही नहीं। ऐसा लगता है कि कांग्रेस ज़िले में है ही नहीं या फिर उसे मुसलमानों से कोई मतलब ही नहीं।
उलेमा कौंसिल का दबे पांव आना
सरयामीर बवाल में पीड़ितों के लिए उलेमा कौंसिल की सक्रियता बवाल के चौथे दिन नज़र आई। बेटे के दर्द को महसूस कर रहे फैयाज़ कहते हैं कि जेल में उलेमा कौंसिल के लोग मिलने गए और एक दिन पहले वो मेरे घर भी आए। फैयाज़ कहते हैं कि उलेमा कौंसिल ठीक काम कर रही है पर बातों-बातो में वो कहते हैं कि अगर मौलाना आमिर रशादी थाने आते तो पुलिस एक तरफा कार्रवाई की हिम्मत नही करती। ये सच है कि उलेमा कौसिल के नेता ही पहली बार जेल में बंद लोगों से मिलने गए और उन्होंने जेल में बंद घायलों की मदद के लिए ्दालत से लेकर अस्पताल तक चक्कर लगाए। अब कौंसिल के नेता पीड़ितों के घर जाकर मिल रहे हैं। पर ज़िले में पहले हुए मामलों के देखें तो इस बार उलेमा कौंसिल ने वो तेज़ी नही दिखाई। सूत्र बताते हैं कि इसकी वजह उनका एमआईएम से टकराव है और सरायमीर मामले में एमआईएम के ज़िलाध्यक्ष पहले काफी सक्रिय थे।
एमआईएम हुई पूरी तरह से फेल
सरायमीर बवाल मामले में एक पार्टी के तौर एमआईएम पूरी तरह से फेल हो गई। पहले ज़िलाध्यक्ष कलीम जामई ने इस मामले को उठाया तो दूसरी तरफ तरफ उनके एक विरोधी ने उन्हें चैलेंज कर दिया। शायद बवाल की वजह भी यहीं रही कि सोशल मीडिया पर अपील के बाद भारी संखया में लोग जुटे पर वो किसी के कंट्रोल में नहीं थे। केस दर्ज होने के बाद कलीम जामई भुमिगत हो गए। दूसरे नेता हामिज संजरी सोशल मीडिया पर आवाज़ उठाते रहे। एमआईएम की शुरआत ही आज़मगढ़ से हुई। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली बवाल के समय पार्टी की मीटिंग में लखनऊ थे। इससे पहले सोशल मीडिया पर एक पोस्ट को लेकर भी ज़िलाध्यक्ष कलीम जामई के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी। पार्टी के ज़िलाध्यक्ष कलीम जामई और एक दूसरे नेता पर केस दर्ज होता रहा और पार्टी सोती रही। पार्टी के तरफ से ज़िले या प्रदेश स्तर पर किसी ने न तो पुलिस अधिकारियों से मुलाकात ही नहीं की और न ही पार्टी ने इसके खिलाफ कोई संघर्ष किया। कलीम जामई और हामिद संजरी अलग थलग पड़ गए।
पार्टी अध्यक्ष शौकत अली ने करीब एक हफ्ते बाद सोशल मीडिया पर अपना नंबर लिखते हुए कह दिया कि जो पीड़ित हों वो आकर मिले। शौकत अली इस बीच अलीगढ़ में लाठीचार्ज में घायल हुए छात्रों से मिलने चले गए लेकिन आज़मगढ़ जेल में बंद 17 बेकसूरों से नहीं मिले। अब एक दिन पहले वो जेल से अस्पताल आकर भर्ती होने वाले से मुलाकात करने पहुंचे हैं। एमआईएम की राजनीति और रणनीति क्या है वो इस मामले में पूरी तरह से एक्सपोज़ हो गई है।
आम लोगों का दर्द…
मुस्लिम सियासत का ख्वाब दिखाने वालों की असलियत ऐसे बवाल में ही सामने आती है। एक तरफ तो वो राजनीतिक दल था जिसके नेता आरोपी होने के बाद भी उसके बचाव में खड़े नज़र आए तो दूसरी तरफ बेकूसरों की सुनने वाली की नहीं दिखा। एक और पीड़ित दुकानदार अबरार अहमद कहते हैं कि क्या सिर्फ हमीं दोषी हैं। सैकड़ों ऐसे वीडियो रिकार्डिंग मौजूद है जिसमें पुलिस और गुंडे मुसलमानों की दुकानों, गाड़ियों में तोड़फोड़ कर रहे हैं। पुलिस ने एक तरफा कार्रवाई करके सिर्फ हमें की पकड़ा।
व्यापारी अब्दुल रब कहते हैं कि इस बवाल के बाद नेताओं से कोई उम्मीद ही नहीं बची। हम तो चुनाव का इंतज़ार कर रहे हैं उसी वक्त सवाल करेंगे। दुकानदार नसीम कहते हैं कि पिछले कप्तान और थानाध्यक्ष का पूरा खेल था। हम तो निराश हो चुके थे, पर नये पुलिस कप्तान ने जिस तरह से आते ही कार्रवाई की उससे इंसाफ की उम्मीद जगी है।