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22 Dec 2024, Sun

बिहार के विधान सभा चुनाव में मुसलमान कहां ?

स्पेशल रिपोर्ट- फ़ैसल रहमानी

गया/पटना

बिहार में विधान सभा के चुनाव की आहत हो चुकी है। सभी राजनीतिक दल पूरी तैयारी के साथ चुनाव में उतरने को तैयार हैं। इस बार मुकाबला दो गठबंधनों के बीच हैं। इन सब के बीच बिहार का मुसलमान कहां है। अब तक वो किसके साथ था, और अब किसके साथ खड़ा होगा। ये अहम सवाल है और बहुत से लोग इसका जवाब तलाश रहे हैं। बिहार के चुनावी इतिहास पर नज़र डाले तो 1952 से लेकर अब तक बिहार विधानसभा के 15 बार चुनाव हुए।

पिछले चुनाव की तस्वीर
साल 2010 में विधान सभा का चुनाव हुआ तो नीतीश कुमार एनडीए में थे। उनके सामने लालू प्रसाद का गठबंधन था। इस चुनाव में सबसे कम मुसलमान चुनाव जीत कर विधान सभा में पहुंचे। बिहार में मुसलमानों की आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार 16.9 फीसदी है। आबादी के हिसाब से विधानसभा में करीब 40 मुस्लिम जन प्रतिनिधियों को पहुंचना चाहिए था, लेकिन 2010 के चुनाव में केवल 15 विधायक ही विधानसभा पहुंच सके। बिहार में विधानसभा की कुल सीटें 243 हैं। बिहार में लोक सभा की 40 सीटें हैं। 2014 के चुनाव में सिर्फ चार पर ही मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीत सके। आखिर ये सब कैसे हुआ ? आंकड़ों पर नज़र डाले तो बिहार की राजनीति में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व लगातार सिमटता जा रहा है।

राजनीतिक बदलाव
बिहार में नब्बे के दशक से पहले कांग्रेस का राज था। राज्य का मुसलमान कांग्रेस के साथ था। बिहार प्रदेश में दो ऐतिहासिक घटनाओं ने यहां हवा के रुख के बदल दिया। नब्बे के दशक से राजनीति का नया दौर शुरू हुआ। नब्बे के दशक से पहले कांग्रेस के साथ रहने वाला मुसलमान वोट उससे छिटक गया। यही वोट जनता दल के साथ जुड़ गया। दरअसल बिहार में इस दौर में दो बड़ी घटनाएं हुई जिसने मुसलमानों के गहरायी तक प्रभावित किया। 1989 में भागलपुर भीषण दंगा हुआ था। उस समय राज्य में कांग्रेस की हुकूमत थी। अभी ये दर्द खत्म भी महीं हुआ था कि बाबरी मस्जिद के शहीद किये जाने की घटना हो गई। इसके बाद मुसलमानों का कांग्रेस से पूरी तरह मोहभंग हो गया। अवधारणा बदली तो रुख़ भी बदला। इस उथल-पुथल भरे दौर में मुसलमानों को जनता दल ने अपनी ओर आकर्षित किया। बाद के दौर में यही वोट लालू प्रसाद यादव के साथ जुड़ा रहा। साल 2005 के बाद इसमें नया रूझान पैदा हुआ। तब लालू प्रसाद यादव के खिलाफ़ नीतीश कुमार नयी राजनीतिक ताकत बनकर सामने आ चुके थे।

नीतीश काल में सबसे कम मुसलमान प्रतिनिधि
साल 2005 के फ़रवरी में हुआ जब विधानसभा का गठन नहीं हो पाया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा था। उस चुनाव में 24 मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। उसी साल अक्टूबर में हुए चुनाव में मुस्लिम विधायकों की संख्या घटकर 16 हो गयी थी। 2010 के चुनाव में कुल 15 मुस्लिम उम्मीदवार ही चुनाव जीत सके थे। संख्या के लिहाज़ से मुसलमान विधायकों की यह अबतक की सबसे कम तादाद है।

मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र
राज्य में 50 ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां मुसलमानों के वोट निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं। इन क्षेत्रों में मुसलमानों के वोट अधिकतम 75 फ़ीसदी और न्यूनतम 18 फ़ीसदी हैं। कोचाधामन विधानसभा क्षेत्र में 74 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी है। बिहार में 16 फीसदी से ज्‍यादा मुस्‍लिम वोटर हैं। किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर, सहरसा के इलाकों में मुस्लिमों की अच्छी आबादी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में इन सीटों पर बीजेपी बुरी तरह हार गई थी।

मुसलमानों की जीत का आंकड़ा
वर्ष 2014 के दौरान भले ही राजनीति में बहुसंख्यकवाद प्रभावी होकर उभरा, पर उसके पहले के विधानसभा चुनाव में भी अल्पसंख्यकों की भागीदारी अच्छी नहीं रही है। अगर संसदीय चुनाव की बात करें, तो बिहार से अब तक 59 मुस्लिम सांसदों को जीत हासिल हो पाई है। इनमें सबसे ज़्यादा तादाद छह सांसदों की रही है। 1985 और 1991 के मध्यावधि चुनाव में राज्य से छह-छह मुस्लिम सांसद चुने गये थे। यह तादाद सबसे बड़ी है। जबकि सबसे कम दो सांसद 1967 में हुए लोक सभा चुनाव निर्वाचित हुए थे। हालांकि ये भी सच है कि बिहार की सियासत में कांग्रेस की ओर से सबसे ज़्यादा मुस्लिम विधायक बने। पर राजनीति की अवधारणा बदली तो तस्वीर का रुख़ भी बदल गया। राज्य विधानसभा के लिए अब तक हुए 15 चुनावों में कुल 333 मुस्लिम उम्मीदवार विधायक बने। आज़ादी के बाद हुए पहले आम चुनाव में मुस्लिम विधायकों की संख्या 24 थी। तब से लेकर 1977 तक मुस्लिम विधायकों की संख्या 18 और 28 के बीच रही। इस दौरान विधानसभा के आठ चुनाव हुए। 1985 में नौवीं विधानसभा के चुनाव में मुस्लिम विधायकों की संख्या बढ़कर 34 पर पहुंच गयी थी।

कब, कितने मुस्लिम विधायक चुनाव जीते

साल मुस्लिम विधायक साल मुस्लिम विधायक
1952 24 1985 34
1957 25 1990 20
1962 21 1995 19
1967 18 2000 20
1969 19 2005 24 (विधान सभा का गठन नहीं हो पाया)
1972 25 2005 16
1977 25 2010 15
1980 28

 

नये समीकरण के संकेत
बिहार में इस बार धुर विरोधी रहे लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार एक साथ हैं। कांग्रेस भी इस गठबंधन का हिस्सा है। दूसरी तरफ बीजेपी का एनडीए गठबंधन है जिसमें पांच दल शामिल हैं। चुनाव का रुख कुछ बदला-बदला सा नज़र आ रहा है। एक ओर जहां विधानसभा चुनाव से पहले एमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने किशनगंज में ज़ोरदार रैली करके नए समीकरण की ओर इशारा कर दिया है। वहीं दूसरी ओर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने बिहार दौरे के महागठबंधन के साथ मंच साझा करने की हामी भरकर राजनीतिक पंडितों को बहस का एक और मुद्दा दे दिया। अब देखना यह है कि ऊंट किस करवट बैठेगा। हालांकि अभी तो चुनाव की तारीख़ों का एलान तक नहीं हुआ है। इसलिए बिहार की राजनीति के बारे में अभी से कुछ कहना जल्दबाज़ी होगी।