फ़ैसल रहमानी
पटना
राज्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हुए चुनाव में अब्दुल बारी सिद्दीकी को बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (बीसीए) का अध्यक्ष चुना गया है। अब्दुल बारी सिद्दीक़ी बिहार की राजनीति के जाने पहचाने चेहरे हैं। वह आरजेडी के नेता है। बीसीए के कुल 9 पदों के लिए हुए चुनाव में अब्दुल बारी के पैनल ने 8 में जीत हासिल की।
मालूम हो कि बीसीसीआई पैनल से निष्काषित चल रहे बिहार क्रिकेट एसोसिएशन यानी बीसीए का चुनाव सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हुआ। बीसीए में कुल 9 पदों के लिए चुनाव हुआ। जीत हासिल करने वाले में अब्दुल बारी सिद्दीक़ी अध्यक्ष, ललितेश्वर प्रसाद वर्मा कार्यकारी अध्यक्ष, रवि शंकर प्रसाद सिंह सचिव, राम कुमार कोषाध्यक्ष चुने गये। इसके अलावा पांच उपाध्यक्षों में गोपाल वोहरा, सुनील कुमार सिंह, आनंद कुमार, सैयद मुमताज़ुद्दीन और नवीन कुमार जमुआर ने बाज़ी मारी।
चुनाव के रिज़ल्ट जारी करते हुए चुनाव पर्यवेक्षक पूर्व न्यायाधीश धर्मपाल सिन्हा ने बताया कि बीसीए के चुनाव में पूरी पारदर्शिता बरती गयी। इस चुनाव में हारने वाले गुट द्वारा वोटर लिस्ट में हेरफेर के आरोप के बारे में उन्होंने कहा कि 24 मार्च 2010 में बीसीए के दोनों गुटों के अधिकारी द्वारा हस्ताक्षर की हुई लिस्ट सुप्रीम कोर्ट के पास थी। इसके अलावा दोनों गुटों ने अपने-अपने मौजूदा वोटरों की लिस्ट मुहैया करायी थी। इनमें से जिन वोटरों के नाम पर विवाद नहीं था, उन्हें ही वोटिंग का मौक़ा दिया गया। इनके अतिरिक्त लाइफ़ टाइम मेंबर्स को वोटिंग का अधिकार दिया गया।
चुनाव के बाद बिहार क्रिकेट एसोसिएशन की नयी कार्यकारिणी के सामने कई तरह की चुनौतियां मुंह बाये खड़ी हैं। इनमें बिहार में क्रिकेट को दोबारा शुरु कराना, बीसीसीआई से बिहार को क्रिकेट राज्य की पूर्ण मान्यता दिलाना, जल्द से जल्द बिहार को रणजी ट्रॉफ़ी में प्रवेश दिलाना जैसे बड़े काम शामिल हैं। इसके अलावा प्रतिभाशाली खिलाड़ियों का राज्य से पलायन रोकना, अंतरराष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट मैदानों की व्यवस्था कराना ताकि बिहार में भी अंतरराष्ट्रीय मैच हो सके, ज़िला स्तर पर क्रिकेट का बुनियादी ढांचा तैयार करना भी बड़ी चुनौती है।
बीसीए की नई टीम पर बिहार के युवाओं की खास नज़र है। अंडर-14, अंडर-17, अंडर-19 और अंडर-21 स्तर की क्रिकेट टूर्नामेंटों का अधिक से अधिक आयोजन कराना बीसीए के लिए एक चुनौती है। वैसे तो अब्दुल बारी राजनीति के मझे हुए खिलाड़ी है पर क्रिकेट को भी राजनीति की तरह ऊंचा मुक़ाम हासिल कराना उनके लिए बड़ी चुनौती होगी। दरअसल बिहार में फिलहाल क्रिकेट का कोई बड़ा नाम नहीं है, दूसरी तरफ बीसीसीआई का प्रतिबंध झेल रहा ये राज्य क्रिकेट में धरातल पर है। ऐसे में नई टीम को न सिर्फ ध्वस्त व्यवस्था को सुधारना है बल्कि इस राज्य में क्रिकेट को एक मुकाम भी देना है, जहा प्रतिभाओं की कमी नहीं है।