डॉ अशफाक अहमद
अलीगढ़, यूपी
यूनानी तथा आयुर्वेद समेत विभिन्न परम्परागत चिकित्सा पद्वतियों के विशेषज्ञों तथा शोधकर्ताओं को मौलिक विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग करके अन्तर विषयी शोध के विकास में भाग लेना चाहिये ताकि विज्ञान के आधुनिक मापदण्डों पर उन्हें प्रमाणित किया जा सके। ये बातें अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी में आयोजित यूनानी पर दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के सचिव प्रख्यात वैद्य राजेश कोटेचा ने कहीं।
ये सम्मेलन अजमल खां तिब्बिया कालेज के कुल्लियात विभाग के तत्वाधान में ‘‘यूनानी तिब के मौलिक सिद्धांत संपूर्ण स्वास्थय की गारंटी’’ विषय पर आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में कई देशों के यूनानी डॉक्टर, छात्र, एवं यूनानी एसोसिएशन से जुड़े लोगों ने भाग लिया। सम्मेलन में बीयूएमएस डाक्टर्स एसोसिएशन का एक प्रतिनिधिमंडल भी शामिल हुआ।
आयूष सचिव कोटेचा ने कहा कि परम्परागत ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के मापदण्डों पर प्रमाणित करना एक कठिन प्रक्रिया है। परन्तु इसे फार्माकालोजी, बायोलोजी, कैमिस्ट्री, फिजिक्स आदि विषयों के साथ संयुक्त अध्ययन के उपरान्त अधिक कारगर तथा लाभप्रद बनाया जा सकता है। सचिव राजेश कोटेचा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय आगमन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि वह अमुवि संस्थापक तथा महान समाज सुधारक सर सैयद अहमद खान को श्रद्वांजलि अर्पित करते हैं कि उनकी कुर्बानियों तथा दूरदर्शिता से ही इस विशाल संस्था का अस्तित्व कायम हो सका है।
राजेश कोटेचा ने कहा कि उन्होंने हाल ही में ईरान का दौरा कर चिकित्सीय पौधों के प्रयोग तथा उन पर किये जाने वाले शोध में दोनों देशों के मध्य सहयोग पर एक करार किया है जिससे दोनों देशों के मध्य इस क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि भारत ने हाल ही में विश्व स्वास्थय संगठन के साथ आयुष की शब्दावली के वैश्विक स्तर के निर्धारण के लिये करार किया है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में सहकुलपति प्रो. अख्तर हसीब ने कहा कि परम्परागत चिकित्सा पद्वतियों में जिन पौधों से दवाऐं तैयार की जाती हैं उनकी पैदावार बढ़ाने तथा उनके वर्गीकरण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि चिकित्सीय पौधों की क्वालिटी तथा उसके औषधीय गुणों को संरक्षित रखने पर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि अमुवि के दवाखाना तिब्बिया कालिज में इस दिशा में विशेष ध्यान दिया जाता है और यही कारण है कि दवाखाने की औषधिया भारत के बाहर भी प्रसिद्ध हो रही हैं।
नई दिल्ली स्थित ईरान के कल्चरल काउंसलर डा. मोहम्मद अली रब्बानी ने कहा कि भारत तथा ईरान के सम्बन्ध बहुत पुराने हैं तथा परम्परागत चिकित्सा पद्वति के क्षेत्र में दोनों देशों ने एक दूसरे से बहुत लाभ अर्जित किया हैं। उन्होंने इस अवसर पर एक पुस्तक भी अतिथियों को भेंट की।
कांफ्रेंस के आयोजन अध्यक्ष तथा विभागाध्यक्ष प्रो. फिरासत अली खान ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विभाग के इतिहास तथा कांफ्रेंस के उद्देश्यों पर पर प्रकाश डाला।
यूनानी मेडीसिन संकाय के अधिष्ठाता प्रो. एम मुहिउल हक सिद्दीकी ने शिक्षकों एवं छात्रों की उपलब्धियों का वर्णन करते हुए कहा कि इस कालिज से शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र व छात्रायें देश की बड़ी शिक्षण संस्थाओं में सेवायें दे रहे हैं। उन्होंने यूनानी संकाय में 4 विभागों में नये पीजी कोर्सेज की मंजूरी देने के लिये आयुष मंत्रालय के सचिव का धन्यवाद किया।
सीसीआरयूएम के डायरेक्टर जनरल प्रो. आसिम अली खान ने कौन्सिल की उपलब्धियों का वर्णन करते हुए कहा कि यूनानी पद्वति पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त कर रही है तथा ताजीकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, ईरान तथा बंगलादेश के यूनानी संगठनों एवं संस्थाओं के साथ शोध एवं अध्ययन के कई समझोते किये गये हैं।
अजमल खां तिब्बिया कालिज के प्रिन्सिपल प्रो. सऊद अली खान ने अतिथियों का धन्यवाद किया जबकि आयोजन प्रो. एफएस शीरानी ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस अवसर पर कोटेचा सहित अन्य अतिथियों ने कांफ्रेंस की स्मारिका का विमोचन किया।